जिन्हें ज़िन्दगी हम बनाने लगे थे | Ghazal Jinhen Zindagi
जिन्हें ज़िन्दगी हम बनाने लगे थे
( Jinhen zindagi hum banane lage the )
वो ख्वाबों की दुनिया सजाने लगे थे
हमें देखने आने जाने लगे थे ।।
छुपाने पड़े थे हमें भी तो आँसूँ ।
सनम दूर हमसे जो जाने लगे थे ।।
नज़र जब कभी इत्तफाकन मिली तो
उन्हें देख कर मुस्कराने लगे थे ।।
यहाँ चाँद सबको कहाँ मिल सका है ।
चरागों से जीवन बिताने लगे थे ।।
कभी चैन हमको न आया किसी पल ।
सभी अपना दुखड़ा सुनाने लगे थे ।।
अभी भी तरसती है आँखें उन्ही को ।
जिन्हें दिल में अपने बसाने लगे थे ।।
हुए दूर हमसे वही आज फिर से ।
जिन्हें ज़िन्दगी हम बनाने लगे थे ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर