जज़्बात से
( Jazbaat se )
ज़िंदगी चलती नहीं है आज़कल जज़्बात से
जूझना पड़ता सभी को रात दिन हालात से।
गीत ग़ज़लें और नज़्में भूल जाता आदमी
ज़िंदगी जब रूबरू होती है अख़राजात से।
क्यूं चलाते गोलियां क्यूं लड़ रहे सब इस क़दर
रंजिशों के मामले अक्सर हुए हल बात से।
अब के बारिश झूम के आई है बंगलो में मगर
मुफ़लिसों के घर टपकते बेरहम बरसात से।
बंट रहे घर उठ रही दीवार बीचो बीच में
बेतहाशा रो रही है मां सुना कल रात से।
मुंह पे मीठी बात पीछे जो बुराई कर रहे
बच के रहना चाहिए इस तरह के हज़रात से।
देख कर चादर पसारो पांव तुम अपने नयन
ख़र्च करना चाहिए बढ़कर नहीं औकात से।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )