मुसाफ़िराना है | Ghazal Musafirana Hai
मुसाफ़िराना है
( Musafirana Hai )
हम ग़रीबों का यह फ़साना है
हर क़दम ही मुसाफ़िराना है
यह जो अपना ग़रीबख़ाना है
हमको मिलकर इसे सजाना है
कितना पुरकैफ़ यह ज़माना है
रूठना और फिर मनाना है
बीबी बच्चों की परवरिश के लिए
जाके परदेश भी कमाना है
सारे घर के ही ख़्वाब हैं इसमें
यह जो छोटा सा आशियाना है
ज़ीस्त लेकर वहाँ ही जायेगी
जिस जगह उसका आबोदाना है
एक दूजे के साथ से हमको
मुश्किलों को सरल बनाना है
ज़िंदगी की कड़ी है धूप सही
खैर है सर पे शामियाना है
आज भी गुफ्तगू में ऐ सागर
उसका भाता मुझे लजाना है
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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