नज़र से सलाम
( Nazar se salam )
मेरे सुकूँ का वो यूँ इंतज़ाम करता है
ज़ुबां बना के नज़र से सलाम करता है
वफ़ाएं और निभाता भी इससे क्या बढ़कर
वो मेरे क़ल्बो-जिगर में क़याम करता है
ख़बर उसे है मुलाक़ात हो नहीं सकती
मगर वो कोशिशें फिर भी मुदाम करता है
दुआ में ख़ैर मनाऊँ मैं क्यों नहीं उसकी
हयात कौन भला किसके नाम करता है
निकालनी हो ज़रूरत यहाँ किसी से जब
बशर दिखावे का तब एहतराम करता है
सितारे चाँद क्या सूरज भी आये बारी से
कोई तो है जो ये सारा निज़ाम करता है
मैं जाके बस्ती में साग़र की देखता क्या हूँ
वहाँ सलाम उसे ख़ासो-आम करता है
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
मुदाम–निरंतर, हमेशा