वक़ार भूल बैठे | Waqar Bhool Baithe
वक़ार भूल बैठे
( Waqar bhool baithe )
जो मिला था क़ुर्बतों में, वो क़रार भूल बैठे
वो ज़रा सी देर में क्यों, मेरा प्यार भूल बैठे
लगे हर ख़ुशी पराई, लगे ग़म ही आशना अब
यूँ ख़िज़ाँ ने दिल है तोड़ा, कि बहार भूल बैठे
मुझे फ़िक्र रोटियों की , ये कहाँ पे खींच लायी
जहां बचपना गुज़ारा, वो दयार भूल बैठे
कभी वालिदैन की हम, यहाँ कर सके न ख़िदमत
वो जो सर पे था हमारे, वो उधार भूल बैठे
उसे याद और कुछ हो, ये यक़ीन ही ग़लत है
कोई बच्चा अपनी माँ का, जो दुलार भूल बैठे
उसे किस तरह ‘अहद’ फिर, कोई याद भी दिलाये
कोई शख़्स ख़ुद ही अपना, जो वक़ार भूल बैठे !