महेन्द्र कुमार
महेन्द्र कुमार

वासंतिक नवरात्र चतुर्थ

पिंड से ब्रह्मांड तक,मां कूष्मांडा का सहारा

चतुर्थ नवरात्र अहम आभा,
सर्वत्र भक्ति शक्ति वंदना ।
असीम उपासना स्तुति आह्लाद,
दर्शन आदर सत्कार अंगना ।
अनंत नमन मां मंद मुस्कान,
त्रिलोक आलोक मंगल धारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

अनूप छवि अष्ट भुजाधारी,
रज रज ओज प्रसरण।
भक्तजन अलौकिक स्पर्शन,
तन मन कांति संचरण ।
सौर मंडल अधिष्ठात्री मां,
पटाक्षेप सघन तिमिर सारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

वनराजारूढ़ अक्षय फलदायिनी,
मां रूप भव्य श्रृंगार निराला ।
कर कमंडल धनुष बाण कमल चक्र गदा,
अमृत कलश सिद्धि निधि जपमाला ।
सुख सौभाग्य कृपालु मैया,
सर्व दुःख कष्ट संकट पार उतारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक,मां कूष्मांडा का सहारा ।।

सृष्टि रचना महाकाज,
त्रिदेव अप्रतिम सहयोग ।
हरित वर्ण अति प्रिया मां ,
चाहना कुम्हड़ बलि योग ।
दैहिक दैविक भौतिक ताप मुक्ति,
बोलो मां आदि शक्ति जय जयकारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

कदम तरंगिनी चाह में

तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में

अंध अनुकरण अज्ञान वश,
दिशा भ्रमित मनुज पथ ।
मृग मरीचिका चमक दमक,
अर्जित अंतराल यथार्थ रथ ।
विलोप निज प्रतिभा शक्ति,
प्रतीक्षित अनुपम गाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

अस्वस्थ परस्पर प्रतिस्पर्धा,
गौण नैसर्गिक जीवन आधार ।
प्रदर्शन मंचन भौतिक सुख,
आलिंगन बिंदु स्वर हाहाकार ।
स्नेह प्रेम अपनत्व रिक्ति,
स्वार्थ सिद्धि अनंत निगाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

उत्साह उमंग रसातल,
उग्र आवेश अस्थिर चितवन ।
संसर्ग अभिलाष प्रणय पथ,
वासना आच्छादित मधुवन ।
तन सुख अनुबंधित क्षणिकाएं,
अनवरत स्पंदन जीवन थाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

अतुलित सामर्थ्य भाग्य विभेद,
कर्म धर्म निष्ठा परिणाम ।
चिन्मयी प्रभा विस्मृत बिंब,
हित निहित साध्य प्रणाम।
अपूर्ण धूमिल स्व आकलन,
लक्ष्य साधना पर सलाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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