महेन्द्र कुमार

महेन्द्र कुमार की कविताएं | Mahendra Kumar Hindi Poetry

विषय सूची

मानवता के सकल प्राण, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

जीवन आभा सहज सरल,
शीर्ष वंश परिवार परंपरा ।
स्नेहिल दृष्टि उदार ह्रदय,
वरित प्राणी जीव जंतु धरा ।
समता समानता भाव दर्शन,
मुखमंडल सौम्य मोहक ललाम।
मानवता के सकल प्राण,मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ।।

तज राजसी ठाठ बाट,
वनवास सहर्ष स्वीकार ।
निज स्वार्थ मोह तिलांजलि,
पितृ आज्ञा वचन साकार ।
मन साधक तन राधक,
प्रकृति उत्संग जप तप प्रणाम ।
मानवता के सकल प्राण,मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।।

नीति रीति सद्भाव अभिव्यंजना ,
अपनत्व पराकाष्ठा व्यवहार ।
शापित शोषित दिव्य उदारक,
उरस्थ मृदुल मधुर नेह धार ।
शौर्य वंदन असुरता प्रहार ,
सर्वत्र विजय भव मंत्र अविराम।
मानवता के सकल प्राण,मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।।

प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व कृतित्व,
उत्तम पुरुष आचार विचार ।
शील शिष्ट सदाचारित शैली,
संघर्ष पथ नित्य मलंग विहार ।
श्रेष्ठ छवि राम लोक मानस,
कलयुग शोभना सम त्रेता धाम ।
मानवता के सकल प्राण,मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ।।

प्रणय प्रसून खिल रहे, चाय की चुस्कियों संग

अधुना लोक जीवन शैली,
चाय महत्ता अद्भुत विशेष ।
भोर काल प्रथम स्मृत बिंदु,
स्पर्श सह आनंद अधिशेष ।
हाव भाव प्रियसी सम,
चुस्की अंतर अपनत्व रंग ।
प्रणय प्रसून खिल रहे,चाय की चुस्कियों संग ।।

मृदुल मधुर संवाद सेतु ,
चिंतन मनन भव्य आधार ।
स्वभाव उष्ण प्रभाव शीत,
हर समस्या हल साकार ।
चिंता तनाव विलोपन बिंदु,
हास्य परिहास परिवेश उत्संग ।
प्रणय प्रसून खिल रहे,चाय की चुस्कियों संग ।।

कार्यालय दावत उत्सव बेला,
सदा सुशोभित श्रेष्ठ स्थान ।
नैराश्य सुस्ती मूल पटाक्षेप ,
उर बिंब समरसता आह्वान ।
अतिथि देवो भव मंत्र साध्य,
स्वभाव अनुपमा मस्त मलंग ।
प्रणय प्रसून खिल रहे,चाय की चुस्कियों संग ।।

हर वय समूह अति चाहना ,
मैत्री रिश्ते सदैव सदाबहार ।
श्रम थकान विश्रांति माध्य,
लक्ष्य साधना ललक अपार ।
नेह प्रस्ताव आदान प्रदान,
मुस्कान पट स्वीकृति उमंग ।
प्रणय प्रसून खिल रहे,चाय की चुस्कियों संग ।।

मधु यामिनी, परिणय की श्री वंदना

अद्भुत अनुपम मधुर बेला,
प्रणय हाव भाव चरम बिंदु ।
स्तुत दाम्पत्य भाल प्रतिष्ठा,
तन मन समागम सुधा सिंधु ।
ज्ञान प्रज्ञान नैसर्गिक अनुपमा,
स्वप्न लड़ियां यथार्थ अंगना ।
मधु यामिनी,परिणय की श्री वंदना ।।

अंग प्रत्यंग यौवन उभार,
पूर्ण प्रिय स्पर्श अभिलाष ।
गमन संकल्प जीवन पथ,
हर पल मनोरमा परिभाष ।
नवल धवल उमंग तरंग,
तृषा तृप्ति प्रयास मंडना ।
मधु यामिनी,परिणय की श्री वंदना ।।

विपरीत कुल द्वि पथिक,
सहर्ष तत्पर वास सुहास संग ।
रग रग जोश उत्साह अपार,
परस्पर मुस्कान जीवन कंग ।
सुषुप्त भाव चैतन्य पटल,
संवाद संकेत निजता संजना ।
मधु यामिनी,परिणय की श्री वंदना ।।

सोलह श्रृंगार मोहक सोहक,
अंतःकरण मृदुल मंगल पावन ।
पुरुषार्थ वेदी अथाह चमक,
सेज सुरभित प्रसून बिछावन ।
वैवाहिक जीवन अनूप अध्याय,
नूतन संबंध नेह रस रंजना ।
मधु यामिनी,परिणय की श्री वंदना ।।

नेह अनुपमा सदा विलक्षण

प्रसून नित्य मस्त मलंग,
निहार उपवन हरियाली ।
कृष्ण मिलिंद सम्मोहित,
दर्श कर कुसुम लाली ।
दीप पतंगा मिलन अद्भुत,
भय रहित प्रणय अभिरक्षण ।
नेह अनुपमा सदा विलक्षण ।।

कुमुदिनी सुधाकर चाह अनूप,
धरा गगन दूरी विलोप ।
जीवन शीर्ष ध्येय दर्शन ,
उत्संग दिव्य प्रीति ज्योत ।
लैला मजनू कहानी अंतर,
प्रेम प्रतिष्ठा आराध्य लक्षण ।
नेह अनुपमा सदा विलक्षण ।।

मात पिता प्रीत अनुपम,
विष पीकर आशीष वृष्टि ।
सहन वहन कपूत अपमान,
पर अंतःकरण शुभता दृष्टि ।
गुरु शिष्य स्नेह अप्रतिम,
प्रकाश पट तिमिर भक्षण ।
नेह अनुपमा सदा विलक्षण ।।

सखा संबंध पुनीत पावन,
दुःख संकट सुरक्षा कवच ।
परम सेतु अंतरंगी आनंद,
प्रेरणा बचाव व्यर्थ प्रपंच ।
हंसी खुशी अनुराग उद्गम,
मंगल प्रयास मैत्री संरक्षण ।
नेह अनुपमा सदा विलक्षण ।।

सनातन धर्म, अनंत नेह की निर्मल धारा

सृष्टि संग अवतरण बिंब,
अनंत अनुपमा आह्लाद ।
मानवता श्री वंदन सेतु,
आनंदिता परम प्रसाद ।
वेद आभा अंतर्निहित,
अविरल ओजस्वी ज्ञान पसारा ।
सनातन धर्म,अनंत नेह की निर्मल धारा ।।

नैतिक सात्विक रंग रुप,
अपार आस्था सत्कार ।
धर्म कर्म पुनीत रश्मियां,
जीवन हर स्वप्न साकार ।
आसुरी हाव भाव विरुद्ध,
सदा शीर्ष प्रतिशोध पारा ।
सनातन धर्म,अनंत नेह की निर्मल धारा ।।

प्रभु राम आदर्श मर्यादा ,
श्री कृष्ण अर्जुन उपदेश ।
मां सीता सी विमल शीलता,
जगदंबे सा प्रतिकार आवेश ।
हनुमान जी जप तप बल,
ब्रह्मांड गूंज शिव ओंकारा ।
सनातन धर्म,अनंत नेह की निर्मल धारा ।।

साधना आराधना शिखर बिंदु,
शोभित सात्विक आचरण ।
स्नेह प्रेम भक्ति मोहक श्रृंगार
अलौकिक शक्ति आवरण ।
मनुज स्वाभिमान रक्षा ध्येय,
सदा बुलंद हिंदुत्व जयकारा ।
सनातन धर्म,अनंत नेह की निर्मल धारा ।।

अंतःकरण अनुरक्त, देख आपका सौम्य व्यवहार

अति उत्तम दर्शन मनोरमा,
अंतर पटल प्रीति निर्झर ।
पुलकित प्रफुल्लित आभा,
तृषा तृप्त आनंद झर झर ।
हाव भाव मस्त मलंग,
अंतर बिंदु प्रीत निखार ।
अंतःकरण अनुरक्त,देख आपका सौम्य व्यवहार ।।

प्रति पल मिलन उमंग,
स्मृति पट मोहिनी छवि ।
रूप श्रृंगार मोहक सोहक,
आकर्षण ओज सम रवि ।
यौवन उभार मद मस्त ,
नयनन स्नेहिल कजरार ।
अंतःकरण अनुरक्त,देख आपका सौम्य व्यवहार ।।

परिध क्षेत्र हर्ष उल्लास,
स्वप्न माला रूप जीवंत ।
चाल ढाल उत्साह आरेख ,
सौंदर्य अनुपमा अत्यंत ।
हिय प्रिय भाव भंगिमा,
मुस्कानी मान मनुहार ।
अंतःकरण अनुरक्त,देख आपका सौम्य व्यवहार ।।

हृदयांगन नेह सरोवर,
अभिव्यक्ति भाव अतरंग ।
शब्द सुरभि चाह अथाह,
चारु चंद्र चंचलता संग ।
निशि दिन रमणीक प्रभा,
रग रग अभिलाष अपार ।
अंतःकरण अनुरक्त,देख आपका सौम्य व्यवहार ।।

हृदयांगन प्रणय धार, सुन पायल की झंकार

आनन शोभित मुस्कान,
चक्षु अंतर नेह सरिता ।
हावभाव मस्त मलंग ,
प्रलंब प्रभा अमिय धारिता ।
चाल ढाल सुधि बिंदु,
मोहक सोहक सौंदर्य अलंकार।
हृदयांगन प्रणय धार,सुन पायल की झंकार ।।

पट प्रसून हिय प्रिय,
आत्मिकता चरम स्पंदन।
सहज सरस वैचारिकी,
शर्म संकोच नैसर्गिक मंडन ।
रूप अनुपमा सम्मोहिनी,
कदम लय मधुर टंकार ।
हृदयांगन प्रणय धार,सुन पायल की झंकार ।।

बिंदी सिंदूर श्रृंगार अहम,
चूड़ी झांझर मधुर खनक ।
अधर पर्याय तृषा तृप्ति,
शब्द संकेत खुशियां जनक ।
पुरात्तन संग अधुना समन्वय,
लोक राग रंग खुशियां संचार।
हृदयांगन प्रणय धार, सुन पायल की झंकार ।।

स्वर मधुरिम कर्ण प्रिय,
प्रीतम सम आकर्षण ।
रग रग अथाह तरूणाई ,
मिलन हेतु सर्वस्व अर्पण ।
जीवन प्रतिपल आनंद निर्झर,
परिणय पथ स्वप्न साकार ।
हृदयांगन प्रणय धार, सुन पायल की झंकार ।।

ललित कलित संविधान हमारा

यथार्थ स्वतंत्रता परम प्रहरी,
हर नागरिक हित रक्षक ।
शासन प्रशासन उत्तम सेवा,
अंकुश राष्ट्र संसाधन भक्षक ।
लिखित प्रथम वैश्विक पटल,
सांविधिक समाहर्त जयकारा।
ललित कलित संविधान हमारा ।।

अनूप अथक प्रयास अंबेडकर,
सर्व वर्ग हितार्थ अहम काज ।
अधिकार कर्तव्य प्रावधान संग,
बुलंद नीति निर्देशक तत्व आवाज।
दो वर्ष ग्यारह मास अठारह दिन,
अनुपम कृति सृजन काल धारा।
ललित कलित संविधान हमारा ।।

वर्तमान चार सौ सत्तर अनुच्छेद,
बारह अनुसूचियां पच्चीस भाग छवि ।
अनुपालन हर नागरिक नैतिक धर्म,
समता समानता नारी वंदन ओज रवि ।
सर्व धर्म समभाव अंतर चेतना,
समग्र प्रगति उन्नति पथ उजियारा ।
ललित कलित संविधान हमारा ।।

नैसर्गिक मूल्य सदा शीर्ष,
निष्पक्ष निर्भीक परिवेश निर्माण ।
अभिरक्षा लोकतंत्र आस्था विश्वास,
गणतंत्र साधना भावेश निर्वाण ।
परम माध्य साध्य तिरंगी मुस्कान,
अभिजागर स्नेह प्रेम भाईचारा ।
ललित कलित संविधान हमारा ।।

वीरांगना जीवन, उत्सर्ग अनुदानों की थाती

जीवन पथ अद्भुत अनूप,
हर पल परिवर्तन ओर ।
स्वप्न मलिका मूल अस्त,
मधुवन अंतर पतझड़ी भोर ।
अष्ट प्रहर प्राण प्रिय स्मृति,
प्रति पल विरह वेदना जगाती ।
वीरांगना जीवन,उत्सर्ग अनुदानों की थाती ।।

रज रज दर्शित शौर्य साहस,
रग रग उत्साह उमंग अनंत ।
कल्पना ओजस्वी राष्ट्र छवि,
भारती उत्संग समृद्ध अत्यंत ।
अनुभूत तिरंगी आन बान शान,
अंतःकरण देश प्रेम ज्योत जलाती ।
वीरांगना जीवन,उत्सर्ग अनुदानों की थाती ।।

परिवार उपमा राष्ट्र धरोहर,
शासन प्रशासन तत्पर सम्मान।
राज अनुग्रह कृपा अथाह,
नित्य प्राणोत्सर्ग भव्य गुणगान ।
स्व सह संतति शिक्षा संस्कार,
सदैव अग्र देश रक्षा संकल्प जताती ।
वीरांगना जीवन,उत्सर्ग अनुदानों की थाती ।।

पुलकित प्रफुल्लित हिंद धरा,
सर्वत्र स्नेह प्रेम भाईचारा ।
नवल धवल राष्ट्र सीमाएं,
पटल बिंदु शांति जयकारा ।
कामना हर्षित गर्वित मातृ भूमि,
उर तरंग देह पट नेह सजाती ।
वीरांगना जीवन,उत्सर्ग अनुदानों की थाती ।।

राष्ट्र चेतना स्वरों में, युवा जोश स्पंदन

विकसित राष्ट्र स्वप्न वेदी,
युवा भूमिका अग्र अहम ।
बोध शोध शक्ति सामर्थ्य,
तज मैं आत्मसात हम ।
दूरी पाश्चात्य मृग मरीचिका,
तत्पर निज संस्कृति वंदन ।
राष्ट्र चेतना स्वरों में, युवा जोश स्पंदन ।।

प्रौद्योगिकी संग राष्ट्र स्तुति,
परम सफलता शीर्ष बिंदु ।
सीमित प्रयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता,
मानवता नमन अंतर सिंधु ।
शिक्षा दर्शित व्यवहार पटल,
परिवेश सुरभि सम चंदन ।
राष्ट्र चेतना स्वरों में, युवा जोश स्पंदन ।।

स्वच्छ स्वस्थ दैनिक जीवन,
वैचारिकी नैतिकता ओतप्रोत।
घर बाहर अनुशासन पालन,
आत्मविश्वास मैत्री श्रोत ।
कर्तव्य प्रति निष्ठ शिष्ट,
अथक श्रम ध्येय रंजन ।
राष्ट्र चेतना स्वरों में, युवा जोश स्पंदन ।।

नारी शक्ति मान सम्मान,
अनुग्रह वृत्ति निर्धन उत्थान ।
वरिष्ठजन आज्ञा शिरोधार्य ,
सदा प्रयास कारक मुस्कान ।
सर्वत्र स्नेह प्रेम भाईचारा,
रग रग सकारात्मकता मंडन ।
राष्ट्र चेतना स्वरों में, युवा जोश स्पंदन ।।

कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर

राजस्थानी साहित्य परम साधक,
लेखनी अंतर जनमानस बिंब ।
सूक्ष्म शोध दैनिक जीवन शैली,
सृजन पथ सरस कलिंग ।
प्रखर स्वर निज संस्कृति,
राजस्थानी भाषा स्वर्णिम भोर ।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।

काव्य अनुपमा आनंद परिपूर्ण,
विज्ञता लोकोक्ति भव्य पटल ।
कहावतें सेतु साहित्य वाचस्पति,
जन झंकार अभिरक्षा अटल ।
शीर्ष उद्धारक सांस्कृतिक विरासत,
लेखन मनोरमा यथार्थ ओर।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।

शब्द अर्थ भाव प्रेरक,
आलेखन बिंदु भागीरथी ।
स्पंदन लोक चैतन्यता,
ओज विहंगम सम रश्मिरथी ।
निर्वाहक लेखन नैतिक धर्म,
निशि दिन अथक प्रयास पुरजोर ।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।

व्यक्तित्व कृतित्व प्रेरणा पुंज,
मृदुल मधुर सौम्य व्यवहार ।
गगन धरा स्वभाव मिश्रण,
निष्ट शिष्ट कर्तव्य बहार ।
अनंत नमन अवतरण बेला,
कामना सुखद अलौकिक ठोर ।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।

एक लड़की, रजनीगंधा सी

मस्त मलंग हाव भाव,
तन मन अति सुडौल ।
अल्हड़ता व्यवहार अंतर,
मधुर मृदुल प्रियल बोल।
अधुना शैली परिधान संग,
चारुता चंचल चंदा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।

अंग प्रत्यंग चहक महक ,
नव यौवन उत्तम उभार ।
आचार विचार मर्यादामय ,
अंतःकरण शोभित संस्कार ।
ज्ञान ध्यान निज सामर्थ्य ,
हौसली उड़ान नंदा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।

चाह अग्र कदम हर क्षेत्र ,
मिटा पुरात्तन सोच आरेख ।
ललक झलक प्रगति पथ,
प्रेरणा आत्मसात मीन मेख ।
तज अंध विश्वास कुरीतियां,
उर भावना पूज्या वृंदा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।

सहन समाज व्यंग्य बाण ,
लैंगिक कटाक्ष अनंत वहन ।
पग पग पहरा शील चरित्र ,
स्वतंत्रता बिंदु मनन गहन ।
अहम भूमिका परिवार राष्ट्र,
निर्मल पुनीत पावन गंगा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।

तुम्हारे नयनन, नेह अमिय धार

नयन सह नयन मिलन,
नेह प्रस्ताव स्वीकृति ।
मृदुल भाव तरंगिणी,
उर शोभ प्रिय आकृति ।
आनंद निर्झर परिवेश,
गौण बिंदु निज आकार ।
तुम्हारे नयनन, नेह अमिय धार ।।

चाल ढाल हाव भाव,
अब परिवर्तन ओर ।
पुनीत भाव भंगिमा,
कामना मिलन छोर ।
जग पटल विजय भव,
पर प्रीत संग हार स्वीकार ।
तुम्हारे नयनन, नेह अमिय धार ।।

विस्मृत निज अस्मिता,
निहार मद मस्त चक्षु ।
उपमा वैभव पराकाष्ठा,
स्व आकलन सदृश भिक्षु ।
कोष्ठ प्रकोष्ठ अभिलाष रस,
भाव विभोर चितवन आधार ।
तुम्हारे नयनन, नेह अमिय धार ।।

स्वर व्यंजना विश्रांत,
मौन रूप शब्द कोश ।
अंतःकरण पट परिशुद्घ ,
मुस्कान सम परितोष ।
अंतरंग दिव्य प्रेम सिंधु,
तृषा तृप्ति अवस्ती अपार ।
तुम्हारे नयनन, नेह अमिय धार ।।

संसर्ग के अभिलाष में, नेह का स्खलन

सृष्टि चक्र शाश्वत नियम,
विपरितता सहज आकर्षण ।
जन्य आंगिक उत्तेजना,
गमन पथ मृदुल घर्षण ।
क्षणिक सुख पराकाष्ठा,
चरम बिंदु दैहिक मिलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन ।।

नेह भाष अभिलाष,
आत्मिक बिंब स्पंदन ।
काय सुगंधि मलयज सम,
आत्मसातता हिय मंडन ।
संयत ओज वेगना ,
आनंद ज्योत प्रज्वलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन।।

अद्यतन युग सर्व परिवेश,
तमो रजो आधिक्य ओतप्रोत ।
अंध भौतिक चकाचौंध कारण,
प्रायः विलुप्त सतो उद्गम श्रोत।
स्नेह प्रेम वास सतोस्थल,
प्रतिरूप छवि भ्रम वलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन ।।

आनन नयनन शब्द स्वर ,
उभार चाल ढाल आवेश ।
आमंत्रण निमंत्रण तृप्ति,
आलिंगन वासना भावेश ।
अवसान नैसर्गिक पर्याय,
अंत अशेष जलन गलन फलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन ।।

अगहन की ठिठुराई में, कान्हा की आशनाई

सनातन धर्म द्वादश मास,
अद्भुत अनूप पावन महत्ता ।
अंतर्निहित मांगलिक प्रभा,
दिग्दर्शन सेतु परम सत्ता ।
मगसर माह दिव्यता अथाह,
रोम रोम अनुभूत कन्हाई ।
अगहन की ठिठुराई में, कान्हा की आशनाई ।।

जनमानस हर्षित गर्वित ,
नदी सरोवर पावन स्नान ।
श्री कृष्ण उपासना आह्लाद,
सर्वत्र जप तप ज्ञान ध्यान ।
प्रेरणा बिंब सुख समृद्धि पथ,
हर पल असीम आनंद रंगाई ।
अगहन की ठिठुराई में, कान्हा की आशनाई ।।

प्रकृति मोहक शीत श्रृंगार,
गर्म खान पान रहन सहन ।
सर्व अनंत कायिक लाभ ,
चिंतन मनन स्तर गहन ।
नीर समीर अठखेलियां,
परिवर्तन प्रभाव रूप ठंडाई ।
अगहन की ठिठुराई में , कान्हा की आशनाई ।।

सतयुग अग्रहायण सदा अग्र,
वर्ष श्री गणेश भव्य उपमा ।
कश्मीर स्थापक श्रेय धारी,
उत्तम उपासनिक भाव रमा ।
परिपूर्ण मनोवांछित कामना ,
सफलता सहज संग पुरवाई ।
अगहन की ठिठुराई में,कान्हा की आशनाई ।।

हर पल उत्सविक, राधे राधे वंदन से

मुखारबिंद पर राधे राधे,
जब भी हुआ उच्चारित ।
कृष्णमय हुआ परिवेश,
अंतर्मन मंगला धारित ।
दिव्य भव्य अनूप दर्शन,
प्रेम भक्ति सुधा मंथन से ।
हर पल उत्सविक,राधे राधे वंदन से ।।

स्नेह प्रेम करुणा सागर ,
अनंत स्नेह कृपा वृष्टि ।
राधा रानी सौंदर्य अप्रतिम,
अथाह अपनत्व भरी दृष्टि ।
राधिका उपासना अद्भुत,
त्वरित फल उर मंडन से ।
हर पल उत्सविक,राधे राधे वंदन से ।।

लाड़ली छवि अति मनोरम,
सदा मंत्र मुग्ध बांसुरी सुन ।
उर वसित केशव अच्युत,
चित शोभा कन्हाई धुन ।
जीवन बिंब आनंद पर्याय,
माधवी जप तप स्पंदन से ।
हर पल उत्सविक,राधे राधे वंदन से ।।

नित अनंत खुशियां निर्झर,
श्री जी मृदु उच्चारण संग ।
मधुर सरस भाव तरंगिनी ,
सुख समृद्धि धरा उत्संग ।
घट शोभित अनुराग प्रसून ,
किशोरी जी स्तुति रंजन से ।
हर पल उत्सविक,राधे राधे वंदन से ।।

श्री सांवरिया सेठ की, महिमा अपरंपार

अद्भुत अनुपम मंदिर छटा,
धर्म आस्था प्रबल प्रवाह ।
सुख समृद्धि वैभव वृष्टि,
दर्शन संग दुःख कष्ट स्वाह ।
मनोरम छवि वैश्विक पटल ,
मनोकामनाएं सदा साकार ।
श्री सांवरिया सेठ की ,महिमा अपरंपार ।।

मंडफिया चित्तौड़ राजस्थान,
मोहक सोहक अनुपम धाम ।
मीरा बाई गिरधर गोपाल घर,
भक्त वत्सल प्रभा अविराम ।
प्रातः संध्या आरती अप्रतिम,
रज रज हर्ष आनंद झंकार ।
श्री सांवरिया सेठ की, महिमा अपरंपार ।।

श्री कृष्ण रूपी सांवरिया सेठ,
कथा प्रेरणास्पद अति अनूप।
ग्वाल भोलाराम प्राप्य त्रि मूर्तियां,
एक्य स्थापित सांवरिया रूप ।
पुलकित प्रफुल्लित सनातन,
उत्संग शुभ मंगल पावन धार ।
श्री सांवरिया सेठ की, महिमा अपरंपार ।।

लोक मान्यता बिंब अतुलित,
अविरल धोक दर्श विहंगम ।
व्यवसाय कृषि अन्य आय क्षेत्र,
कान्हा भूमिका साझेदार निरुपम ।
विमल घट पट स्तुति आराधना,
साक्षात दर्शन वरदान चमत्कार ।
श्री सांवरिया सेठ की, महिमा अपरंपार ।।

गुलाब का फूल, लालित्य का प्रतिनिधि

नेह अभिव्यक्ति परम सेतु,
प्रशंसा आभार भव्य आधार ।
मृदुल मधुर भाव तरंगिणी,
मिलन अभिलाष साकार ।
शुभ मंगल कामना माध्य,
मोहक प्रेरणा पुंज प्रस्तुति ।
गुलाब का फूल,लालित्य का प्रतिनिधि ।।

जीत खुशी प्रणय सह,
सद्भाव उत्सर्ग व्यंजना ।
संचरण अथाह हर्ष उमंग,
हरण तरण मनुज संवेदना ।
महत्ता आई लव यू सम,
अथाह अपनत्व दिव्य युक्ति।
गुलाब का फूल, लालित्य का प्रतिनिधि ।।

प्रीति ज्योत अंतर पटल,
चाह राह श्री अभिनंदन ।
शब्द परे संवाद साध्य,
उरस्थ अनुराग मंडन ।
स्वीकृति सदा आनंद प्रद,
वंदन मर्यादा परंपरा संस्कृति ।
गुलाब का फूल, लालित्य का प्रतिनिधि ।।

इतिहास अनुपमा अद्भुत,
नित्य आकर्षण परम बिंदु ।
प्रीत संज्ञा सर्वनाम विशेषण,
कारक स्पर्श अमिय सिंधु ।
छवि मस्त मलंग मोहिनी,
प्रेम प्रतिष्ठा रिद्धि सिद्धि ।
गुलाब का फूल, लालित्य का प्रतिनिधि ।।

संयम की अरुणाई में, खुशियों की तरुणाई

अंकुश अवांछित वैचारिकी,
आत्म शक्ति परम बोध ।
रग रग विजय भव प्रवाह,
निर्णयन बिंदु सहज शोध ।
विलोप नैराश्य संकीर्णता,
उद्गम सकारात्मकता पुरवाई ।
संयम की अरुणाई में, खुशियों की तरुणाई ।।

शुद्ध सात्विक अंतःकरण,
मानवता श्री वंदन प्रयास ।
व्यवहार अंतर सदाचारिता,
उरस्थ अथाह उमंग उल्लास।
निज स्वार्थ सदा गौण ,
कर तत्पर पर सेवा भलाई ।
संयम की अरुणाई में, खुशियों की तरुणाई ।।

दैनिक जीवन अठखेलियां,
समयबद्ध अनुशासन ओतप्रोत ।
मस्त मलंग आचार विचार,
घट पट मिलनसारिता ज्योत ।
नैतिकता युक्त कर्म परिध,
प्रतिपल आनंद कविताई ।
संयम की अरुणाई में, खुशियों की तरुणाई ।।

माध्य साध्य चरित्र निर्माण,
उत्सविक प्रभा परिवेश उत्संग ।
चुस्ती फुर्ती मय कदम चाल,
स्तुत आत्म विश्वास मैत्री प्रक्रम ।
ध्येय साधना सहज सरल,
नयनन निर्झर नेह मिताई ।
संयम की अरुणाई में, खुशियों की तरुणाई ।।

धर्म मर्यादा शौर्य दर्शन, प्रभु राम की वंशावली में

हिंदू धर्म परम आराध्य श्री राम,
वंदित ब्रह्मा जी सप्तषष्टि वंश ।
सरित प्रवाह उमंग उल्लास सर्वत्र,
निर्वहन रीति नीति संस्कार रंश ।
मान सम्मान परंपरा सदा शीर्ष,
रज रज बिंब नैतिक शब्दावली में ।
धर्म मर्यादा शौर्य दर्शन,प्रभु राम की वंशावली में ।।

ब्रह्मा श्री मरीचि कश्यप,
विवस्वान सूर्य वंश गणेश ।
वैवस्वन दशः सुत परिवार,
इक्ष्वांकु सह कुल परिवेश ।
साकेत आधुनिक अयोध्या,
राजधानी दिव्य पत्रावली में ।
धर्म मर्यादा शौर्य दर्शन,प्रभु राम की वंशावली में ।।

कुक्षि विकुक्षि बाण अनरण्य,
पृथु त्रिशकु युवनाश्व मान्धाता ।
सुसंधि ध्रुव संधि भरत असित,
सगर अद्भुत पराक्रमी राजा ।
असमंज अंशुमान दिलीप,
भागीरथ तप मां गंगे दर्शनावली में ।
धर्म मर्यादा शौर्य दर्शन,प्रभु राम की वंशावली में ।।

ककुत्स्थ रघु प्रवृद्ध नाभाग,
अज दशरथ रामावतार ।
लव कुश पूज्य अग्र कदम,
वचन कर्म संकल्प साकार ।
कलम मृदुल मधुर भाव धन्य,
श्री राम दृश कर नामावली में ।
धर्म मर्यादा शौर्य दर्शन,प्रभु राम की वंशावली में ।।

ओ, सुन मेरे मनमीत

प्रीति समर्पण उपमा राघव,
प्रेम त्याग सुशोभना सिया।
तन मात्र विष वासना पट,
नेह सिक्त रिक्त पावन हिया ।
चाह स्वार्थ वशीभूत सदा ,
अंतर शोभा मृदुल प्रीत ।
ओ,सुन मेरे मनमीत ।।

प्रेम दिव्य ज्ञान सरोवर,
सुवासित पटल गीता ।
जन्म मरण भाव गौण,
सदा अंतःकरण संजीता ।
राधा कृष्ण मैत्री मोहक,
पन्ना गुर्जरी कर्तव्य प्रणीत ।
ओ,सुन मेरे मनमीत ।।

मीरा भक्ति अद्भुत अनुपम,
नवधा पथ शबरी विशेष ।
तज अभिलाष अर्णव सुधा,
गगरी बिंब अपनत्व अधिशेष ।
सहोदर सुगंध भरत सदृश,
लक्ष्मण उज्ज्वल छाया भीत ।
ओ,सुन मेरे मनमीत ।।

अर्जुन लक्ष्य साधना अनूप,
धर्म अभिरक्षा सह विजय ।
समर निकट संबंध परिध
जीत तुलना आनंद पराजय ।
स्वच्छ स्वस्थ आचार विचार ,
नित उद्गम श्रोत प्रणय गीत ।
ओ,सुन मेरे मनमीत ।।

पतझड़ में होती, रिश्तों की परख

मनुज जीवन अद्भुत प्रेहलिका,
धूप छांव सदा परिवर्तन बिंदु ।
दुःख कष्ट सुख वैभव क्षणिक ,
आशा निराशा शाश्वत सिंधु ।
परिवार समाज परस्पर संबंध,
स्वार्थ सीमांत निर्वहन चरख ।
पतझड़ में होती, रिश्तों की परख ।।

आर्थिक सामाजिक अन्य समस्या,
प्रायः संघर्षरत मनुज अकेला ।
घनिष्ठता त्वरित विलोपन,
दर्शन औपचारिक नाट्य नवेला ।
चक्षु आतुर अनुग्रह बिंब ,
मनुज सहन तीक्ष्ण तरख ।
पतझड़ में होती, रिश्तों की परख ।।

ज्ञात अज्ञात कारण वश,
बाधाएं वृहत्त रूप प्रवेश ।
विचलित धैर्य बुद्धि विवेक,
नकारात्मक सोच भावेश ।
आलोचना प्रहार चहुं दिशा,
परिवेश कारक अमैत्री सरख ।
पतझड़ में होती, रिश्तों की परख ।।

संबंध अंतर सहयोग मर्म,
विपरित परिस्थिति साझा ।
समय काल सदैव बलवान,
आरोह अवरोध समग्र माझा ।
हर व्यक्ति नैतिक कर्तव्य धर्म ,
नित सहभागी पीड़ा हरख ।
पतझड़ में होती, रिश्तों की परख ।।

जीवन उपवन सुरभित, आंवला नवमी उपासना से

कार्तिक शुक्ल नवमी महत्ता,
सनातन धर्म पुनीत स्थान ।
मां लक्ष्मी विष्णु आमल वृक्ष,
सर्वत्र पूजन वंदन आह्वान ।
स्वयं सिद्ध मुहूर्त अंतर्निहित ,
सद्यः फल व्रत साधना से ।
जीवन उपवन सुरभित,आंवला नवमी उपासना से ।।

भविष्य स्कंद पद्म विष्णु पुराण,
आंवला नवमी मंगल बखान ।
मां लक्ष्मी भू लोक भ्रमण,
शिव विष्णु स्तुति ध्यान ।
तुलसी हरि बेल शंकर प्रिय,
अमृता पूर्ण दोऊ भावना से ।
जीवन उपवन सुरभित,आंवला नवमी उपासना से।।

जनमानस शीर्ष आस्था भाव,
परिवेश नैतिकता ओत प्रोत ।
शुद्ध सात्विक चिंतन स्तर,
वर चाहना ह्रदय श्रोत ।
माया काया कंचन पावन,
उर पुलकित आराधना से ।
जीवन उपवन सुरभित, आंवला नवमी उपासना से ।।

विधिवत पूजा मंगल पाठ,
दुग्ध अर्पण अमृत फल मूल ।
मोली बंधन सप्त परिक्रमा,
अक्षत रोली सह सुरभि फूल ।
दीप प्रज्वलन नमन स्तुत,
भोजन आमलक छांव विमल कामना से ।
जीवन उपवन सुरभित,आंवला नवमी उपासना से ।।

मृदुल ह्रदय, नेह भावों का कायल

अलौकिकता परम स्पंदन,
उरस्थ पुनीत कामनाएं ।
आशा उमंग उल्लास अथाह,
चितवन मधुर भावनाएं ।
कल्पना पट यथार्थ बिंब,
प्रति आहट स्वर सम पायल ।
मृदुल ह्रदय,नेह भावों का कायल ।।

हर पल अनंत अभिलाष,
मिलन हेतु सौम्य तत्पर ।
मुस्कान वसित भव्य छवि,
आस्था विश्वास परस्पर ।
चाहना तृषा असीम अनूप,
तृप्ति धार अनुपमा मायल ।
मृदुल ह्रदय,नेह भावों का कायल ।।

परिवेश बयार आनंदिका,
नैसर्गिक दृश्य मनमोहक ।
संसर्ग विचार पीठिका,
सृजन सृष्टि सदैव रोहक ।
अंतर बिंदु कमनीय स्पर्श,
अंग प्रत्यंग सदृश घायल।
मृदुल ह्रदय,नेह भावों का कायल ।।

जन्म जन्मांतर प्रणय अनुबंध,
रग रग दैविक आभा व्याप्त ।
जीवन पथ सुपर्याय भाषा,
सर्वत्र खुशियां विलुप्त संताप ।
शुभ मंगल अंतरंग तरंग,
प्रीत प्रतीक्षा शीघ्रता सायल ।
मृदुल ह्रदय,नेह भावों का कायल ।।

हिंद के उत्संग में, शेखावाटी शौर्य दीप जलाती

वीर प्रसूता धरा अति शोभित,
अधुना अंतरतम चार जिला ।
झुंझुनूं सीकर चूरू संग अब,
नीम का थाना प्रसून खिला ।
महाराव शेखा जी कर कमल ,
अवतरण बिंब चौदह सौ पैंतालीस जताती ।
हिंद के उत्संग में,शेखावाटी शौर्य दीप जलाती ।।

खाटू वाले श्याम धनी यहां,
सबका बेड़ा पार लगाते हैं ।
सालासर बाबा आशीष बहा,
सोया भाग्य जगाते हैं ।
जीण भवानी शाकंभरी मात,
नित भक्त वत्सल उमंग जगाती ।
हिंद के उत्संग में,शेखावाटी शौर्य दीप जलाती ।।

पिलानी अंतर विज्ञान अठखेलियां,
शिक्षा सुरभि मलयज सीकर ।
युवा जोश अनुपमा अर्णव,
राष्ट्र प्रेम दिव्य अमृत पीकर ।
खेती सह अथक श्रम साधना,
सुख समृद्धि वैभव बरसाती ।
हिंद के उत्संग में,शेखावाटी शौर्य दीप जलाती ।।

समता समानता सद्भाव ज्योत,
घर परिवार समाज दर्शित ।
दर्श नव पीढ़ी नवल कीर्तिमान ,
जन पटल गर्वित हर्षित ।
अग्र कदम शिक्षा व्यापार देश रक्षा,
निशि दिन प्रगति पंख लगाती ।
हिंद के उत्संग में, शेखावाटी शौर्य दीप जलाती ।।

समय का मानमर्दन,मोबाइल के चक्कर में

मोबाइल क्रांति अद्भुत अनुपम,
हर व्यक्ति पहुंच सहज सरल।
समय महत्ता गौण बिंदु ,
आधिक्य प्रयुक्ति मधुर गरल ।
एकांकी आनंद अनुभूत अथाह ,
पर नैसर्गिक दूरियां मक्कर में ।
समय का मानमर्दन, मोबाइल के चक्कर में ।।

दिशा भ्रमित युक्ति अनुप्रयोग ,
सही गलत समझ अभाव ।
परिवार जन हस्तक्षेप राह ,
शत्रुवत प्रयोगकर्ता बर्ताव ।
अनावशक सामग्री दर्शन कर,
मनो व्यवहार अवांछित टक्कर में ।
समय का मानमर्दन, मोबाइल के चक्कर में ।।

उठना बैठना खाना पीना ,
हर काम संग उपयोग अति ।
एकाग्रता मूल तहस नहस ,
लघु स्तर मनुज मति गति ।
हर वय व्यक्ति जकड़न परिध ,
भविष्य चिंता आरेख़ दर्श लक्कर में ।
समय का मानमर्दन, मोबाइल के चक्कर में ।।

परिवार समाज मुस्कान मंद,
रिश्ते नाते महज औपचारिक ।
स्व चल यंत्र महत्ता परम,
वैचारिक स्तर कृत्रिम अनैतिक ।
मौलिक संवाद विलोपन पथ ,
मानवता संवेदनहीन फक्कर में ।
समय का मानमर्दन, मोबाइल के चक्कर में ।।

वह हॉफ सिटीजन कहलाता है

अथाह दूरी स्वदेश प्रेम,
निज स्वार्थ अति चूर ।
सुस्त भाव परिवेश प्रति,
नैराश्य संकीर्णता भरपूर ।
विभेद पूर्ण व्यवहार संवाद ,
कुरीति अंधविश्वास फैलाता है ।
वह हॉफ सिटीजन कहलाता है ।।

कंटक सर्व धर्म समभाव,
स्नेह प्रेम भाईचारा बाधक।
नारी शोषण प्रोत्साहन सेतु,
वैचारिकी अनैतिकता साधक ।
नित विरुद्ध समता समानता,
तानाशाही परचम लहराता है ।
वह हॉफ सिटीजन कहलाता है ।।

विभाजक जाति धर्म क्षेत्र ,
राजनीति निम्न परिभाषक।
मानवता हित सदा विमुख ,
कर्म परे श्रेय अभिलाषक ।
भौतिक मृगमरीचिका भक्त,
पाश्विक जीवन बिताता है ।
वह हॉफ सिटीजन कहलाता है ।।

कर्तव्य पूर्व अधिकार मांग,
शासन प्रशासन सहयोग शुन्य ।
भ्रष्टाचार अन्याय समर्थक ,
आलोचनाएं अंतर अनुभूत पुण्य ।
प्रकृति संरक्षण पश्च कदम,
नागरिक धर्म नहीं निभाता है ।
वह हॉफ सिटीजन कहलाता है ।।

पूर्ण विराम अंत नहीं, नए वाक्य की शुरुआत है

सकारात्मक सोच प्रशस्त,
नवल धवल अनुपम पथ ।
असफलता अधिगम बिंदु,
आरूढ़ उत्साह उमंग रथ ।
आलोचनाएं नित प्रेरणास्पद,
श्रम साधना उत्तर धात है ।
पूर्ण विराम अंत नहीं, नए वाक्य की शुरुआत है ।।

तज नैराश्य निम्न विचार,
अंतर प्रज्वलन लक्ष्य ज्योत ।
बाधाएं सदा अवसानित,
आत्मविश्वास परम मैत्री श्रोत ।
शोधन उन्नत विगत त्रुटियां,
प्रति प्रश्न घट उत्तर व्याप्त है ।
पूर्ण विराम अंत नहीं, नए वाक्य की शुरुआत है ।।

हर मनुज प्रतिभा पुंज,
शक्ति भक्ति अथाह भंडार ।
अथक श्रम अनवरत प्रयास,
कल्पना प्रदत्त मूर्त आकार ।
समर्पण युक्त कार्य शैली,
सदा विजय भव प्रपात है ।
पूर्ण विराम अंत नहीं, नए वाक्य की शुरुआत है ।।

धर अधर सौम्य मुस्कान,
बन अर्जुन सम दृष्टि पर्याय।
मिटा कर पराजय कलंक,
लिख नूतन स्वर्णिम अध्याय ।
परिश्रम परिणाम मधुर मोहक,
जीवन निरुपमा नित्य कांत है ।
पूर्ण विराम अंत नहीं, नए वाक्य की शुरुआत है ।।

यथार्थ का अवबोधन,श्री कृष्ण कर्ण संवाद में

सूर्य पुत्र कर्ण अद्भुत,
धनुर्विद्या दानवीरता पर्याय ।
पर जीवन अंतर्द्वन्द अथाह,
कदम कदम श्रेय हीन अध्याय ।
मूल कारण ज्ञात उत्कंठा,
प्रश्न प्रस्तुति मार्मिक प्रवाद में ।
यथार्थ का अवबोधन,श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

मातृ त्याग अवैध संतति कलंक,
गैर क्षत्रिय गौ बाण कारण शापित।
समय पट ज्ञान विस्मृतता,
गुरु परशु राम दोषारोपित ।
धर्म संकट दर्शन युद्ध बेला,
कुंती आज्ञा अप्रतिम प्रमाद में ।
यथार्थ का अवबोधन,श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

ध्यान पूर्वक कर्ण पक्ष सुन,
कन्हाई निज व्यथा सुनाई ।
जन्म कारागार मृत्यु भय,
वय पार संदीपनी शिक्षा पाई ।
प्रणय चाह परिणय वंचित,
जन्म संग मात पिता दूरी निर्विवाद में ।।
यथार्थ का अवबोधन,श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

परस्पर निज पक्ष उत्तम,
अंत श्री कृष्ण सत्य उजागर ।
नियति नियत सदा अटल,
चुनौती संघर्ष मर्म भवसागर ।
तज निज कर्म वर्चस्व फल,
नित सहर्ष तत्पर शाश्वतता धन्यवाद में ।
यथार्थ का अवबोधन,श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

यम यमुना सा पावन, भाई बहन का प्यार

कार्तिक मास शुक्ल द्वितीया,
तिथि अद्भुत अनूप विशेष ।
सृष्टि रज रज विमल प्रवाह,
भाई दूज खुशियां अधिशेष ।
परस्पर मंगल कामना अथाह,
शीर्ष वंदित परंपरा संस्कार ।
यम यमुना सा पावन, भाई बहन का प्यार ।।

भाई दूज पौराणिक कथा,
अलौकिकता परम अहसास ।
परम लोक आस्था विश्वास,
जन आभा अति हर्ष उल्लास ।
असीम शुभ कामना उर धर,
स्वसा प्रदत्त अप्रतिम उपहार ।
यम यमुना सा पावन, भाई बहन का प्यार ।।

नेह अनुबंध मृदुल भाव ,
दृढ़ संकल्प रक्षा वचन ।
आन बान शान अभिवृद्धि,
हर पल मुस्कान जतन ।
विपरित काल ढाल बन,
दिशा विमुख कंटक बहार ।
यम यमुना सा पावन, भाई बहन का प्यार ।।

भ्राता भगिनी दिव्य रिश्ता,
देवलोक नित्य हर्षित गर्वित ।
निश्चल प्रेम अर्थ परिभाषा,
अंतर बिंदु दर्शित द्रवित ।
पुनीत बेला अनुपस्थिति भान,
दोऊ नयनन अविरल अश्रु धार ।
यम यमुना सा पावन, भाई बहन का प्यार ।।

गोवर्धन पूजा में, गौ सेवा अनूप संदेश

गोवर्धन पूजा अंतर्निहित,
श्री कृष्ण लीला चमत्कार ।
बाएं कर तर्जनी गिरिराज धर,
त्रिलोक वंदन जय जयकार ।
तदर्थ गोवर्धन पूजन शुभारंभ,
दिवाली अग्र दिवस स्तुत बृजेश ।
गोवर्धन पूजा में,गौ सेवा अनूप संदेश ।।

पौराणिक कथा इन्द्र प्रकोप,
ब्रज क्षेत्र अति वृष्टि शिकार ।
असीम कृपा कृष्ण कन्हाई,
गमन अलौकिक पथ विहार ।
गौ गोप गोपियों सह जीव जंतु,
सानिध्य गोवर्धन गिरि चरण विशेष ।
गोवर्धन पूजा में,गौ सेवा अनूप संदेश ।।

आधुनिक काल पुनः प्रयास,
गऊ माता आदर प्रतिष्ठा ।
उरस्थ सुशोभित देवलोक,
धर्म कर्म पटल अथाह निष्ठा ।
गो सेवा रक्षा महापुण्य काज,
प्राप्य सुख समृद्धि वैभव अशेष ।
गोवर्धन पूजा में,गौ सेवा अनूप संदेश ।।

अन्न कूट दिव्य भव्य परंपरा,
गोवर्धन पूजा अंतर्संबंध ।
छप्पन भोग श्री कृष्ण मुरारी,
शुभ मंगल अथाह उपबंध ।
दृढ़ संकल्प पुनीत पावन पर्व,
सदा अभिनंदन गऊ साक्षात सर्वेश ।
गोवर्धन पूजा में, गौ सेवा अनूप संदेश ।।

बेटियां, दीपावली का पर्याय

मनुज सौभाग्य उदयन,
मंगलता घर द्वार प्रवेश ।
सुख समृद्धि वैभव सेतु,
हर्षित पुलकित परिवेश ।
मृदुल मधुर पावन सरिता,
सदा अनंत आनंद प्रदाय ।
बेटियां, दीपावली का पर्याय ।।

सृजन दिव्य अठखेलियां,
कुल वंश परिवार वंदन ।
धर्म कर्म परम शोभना,
मर्यादा सुसंस्कार मंडन ।
शिक्षा खेलकूद ओज भर,
रचती कीर्तिमानी अध्याय ।
बेटियां, दीपावली का पर्याय ।।

रग रग दर्श शाश्वतता,
शक्ति भक्ति अनन्य बिंदु ।
आत्म विश्वास मैत्री बंधन,
संघर्ष पथ विजयी सिंधु ।
प्रगति विकास भव्य पटल,
प्रेरणा पुंज अनूप संकाय ।
बेटियां ,दीपावली का पर्याय ।।

देहरी प्रांगण अति शोभित,
कुटुंब समाज राष्ट्र रत्न ।
अंतर्मन आत्मविश्वास निर्झर,
सफलता हित घोर प्रयत्न ।
अधिकार संचेतना माध्य,
अविरल खुशियां निकाय ।
बेटियां, दीपावली का पर्याय ।।

दीपावली की राम राम सा

मृदुल मधुर अंतर पटल,
प्रस्फुटित पुनीत कामना ।
शुभ मंगलमय जीवन पथ,
अप्रतिम स्तुति आराधना ।
स्नेह प्रेम आदर सम्मान संग,
अनंत हार्दिक प्रणाम सा ।
दीपावली की राम राम सा ।।

अथाह अपनत्व ओतप्रोत,
सदा वंदित परस्पर संबंध । ।
पुलकित प्रफुल्लित हर पल,
सुख समृद्धि वैभव निर्बंध ।
प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व छवि ,
कृतित्व बिंब अभिराम सा ।
दीपावली की राम राम सा ।।

निर्वहन संस्कार परंपरा,
मर्यादा दर्श व्यवहार बिंदु ।
ध्येय हित श्रमनिष्ठ साधना,
नित स्पर्श सफलता सिंधु ।
भोर रूप स्वर्णिम अनुपम,
सौम्य रमणीक शाम सा ।
दीपावली की राम राम सा ।।

घर देहरी सदैव आलोकित,
कृपा निर्झर लक्ष्मी माता ।
राघव सम नैतिक आचरण,
कर्तव्य बोध शोध कराता ।
असीम बधाइयां दीपोत्सव,
जीवन पथ आनंद धाम सा।
दीपावली की राम राम सा ।।

दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में

जन ह्रदय पुनीत पावन,
सर्वत्र स्नेह प्रेम सम्मान।
कलयुग रूप त्रेता सदृश,
अयोध्या सम सारा जहान।
मर्यादा पुरुषोत्तम दिग्दर्शन,
आराधना स्तुति वंदन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में ।।

चतुर्दश वर्ष वनवास इति श्री,
रघुनंदन साकेत वापसी अनूप ।
मनुज सर्व जीव जंतु विभोर,
विस्मृत निशि दिन छाया धूप ।
जीवन आनंद सार बिंब,
बस रघुराई चरण स्पंदन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में।।

स्वस्थ स्वच्छ सारा परिवेश,
सकारात्मक आचार विचार ।
प्रकाश जीवन दर्शन अब ,
सघन तिमिर विलोप विहार ।
हर आहट स्वर राम मय ,
शुभ मंगल अर्थ मंथन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में ।।

शुद्ध सात्विक जन धारा,
शीर्ष धर्म परंपरा संस्कार ।
चरित्र आदर्श राह गमन,
अपनत्व अंतर्संबंध आधार ।
रीति नीति उत्तम शोभना ,
सृष्टि दृष्टि राम आभा रंजन में ।
दीप वर्तिकाएं ज्योतिर्मय, राघव के अभिनंदन में ।।

नारी सशक्तिकरण स्वर, रूप चतुर्दशी पर्व पर

पंच दिवसीय दीपोत्सव श्रृंखला,
अद्भुत अनुपम द्वितीय छटा ।
संज्ञा छोटी दिवाली रूप चौदस,
अंतर पौराणिक आख्यान घटा ।
संहार बेला नरकासुर दैत्य,
कन्हाई अनुपमा कर्व धर ।
नारी सशक्तिकरण स्वर,रूप चतुर्दशी पर्व पर ।।

जागरण स्वच्छता मुक्ति ,
रूप चतुर्दशी ध्येय बिंदु ।
मृदुल मधुर तन मन श्रृंगार,
निहार विहार सौंदर्य सिंधु ।
शुद्धता स्पंदन प्रति पल ,
उमंगित हिलोर नर्व असर ।
नारी सशक्तिकरण स्वर,रूप चतुर्दशी पर्व पर ।।

चुस्ती फुर्तीमय हर कदम,
परिवेश प्रति संचेतना ।
दमन शमन क्रोध वैमनस्य ,
सहभागी निर्धन शोषित वेदना ।
ब्रह्ममुहूर्त पटल स्नान आदि,
आरोग्य ओज सर्व कर ।
नारी सशक्तिकरण स्वर,रूप चतुर्दशी पर्व पर ।।

छोटी दिवाली दिव्य बेला,
जनमानस वरण नव संकल्प ।
सदा विरोध नारी अत्याचार ,
सेतु भूमिका प्रगति प्रकल्प ।
नित्य अनुसरण श्री कृष्ण पथ,
सबला सम्मान रक्षा गर्व भर ।
नारी सशक्तिकरण स्वर,रूप चतुर्दशी पर्व पर ।।

धनतेरस

सुख समृद्धि आरोग्य वृष्टि, धनतेरस वंदन में

दीपमालिका पर्व अनुपम,
सर्वत्र हर्ष उमंग उल्लास ।
सघन तम नैराश्य अवसानित,
परिवेश उत्संग अनंत उजास ।
पंच पर्विक श्रृंखला शुभारंभ,
धन त्रयोदशी अभिनंदन में ।
सुख समृद्धि आरोग्य वृष्टि,धनतेरस वंदन में ।।

भगवान धन्वंतरि प्राकट्य बेला,
अमृत कलश दिव्य प्रसाद ।
शीर्ष आराधना लक्ष्मी कुबेर,
अंतर पटल असीम आह्लाद ।
यम दीपम स्तुति आराधना,
मृत्युंजय भाव मंथन में ।
सुख समृद्धि आरोग्य वृष्टि,धनतेरस वंदन में ।।

धन त्रयोदशी परम तिथि,
देव चिकित्सक अवतरण ।
आयोजन आयुर्वेद दिवस,
स्वास्थ्य संचेतना संचरण ।
स्वस्थता परम संपदा मंत्र,
मनुज चित्तवन मंडन में ।
सुख समृद्धि आरोग्य वृष्टि,धनतेरस वंदन में ।।

नव काम काज श्री गणेश,
प्रशस्त उन्नत प्रगति पथ ।
सर्वत्र शुभता सरित प्रवाह,
धर्म आरूढ़ आस्था रथ ।
सह्रदय मंगल कामनाएं,
घर द्वार खुशियां स्पंदन में ।
सुख समृद्धि आरोग्य वृष्टि,धनतेरस वंदन में ।।

वह लड़की दीप वर्तिका सी

मनभावन भाव भंगिमा,
तन मन अति सुडौल ।
सौम्यता व्यवहार अंतर,
हिय प्रिय मधुर बोल।
अधुना चमक दमक संग,
शुभ मंगल दर्शिता सी ।
वह लड़की, दीप वर्तिका सी ।।

अंग प्रत्यंग चहक महक ,
मस्त मलंग उभार बिंदु ।
आचार विचार मर्यादामय
उरस्थ परंपरा संस्कार सिंधु ।
ज्ञान ध्यान निज सामर्थ्य ,
हौसली उड़ान गर्विता सी ।
वह लड़की, दीप वर्तिका सी ।।

चाह सर्वत्र आलोक प्रभा,
मिटा सघन तिमिर आरेख ।
ललक झलक प्रेरणा सेतु,
अति आनंद पर खुशियां देख ।
तज अंध विश्वास कुरीतियां,
समता समानता वर्षिता सी ।
वह लड़की, दीप वर्तिका सी ।।

परिवार समाज राष्ट्र पटल,
नित स्थापित नव कीर्तिमान ।
सहर्ष निर्वहन हर भूमिका,
निर्धन शोषित प्रदत्त मुस्कान ।
तज निज स्वार्थ संकीर्णता,
सर्व सुख समृद्धि हर्षिता सी ।
वह लड़की, दीप वर्तिका सी ।।

प्रेम की ड्योढी पर

प्रेम की ड्योढी पर, सदा अस्वीकृत वासनाएं

तन मन विमल मृदुल,
मोहक अनुपम श्रृंगार ।
पूर्णता बन संपूर्णता ,
रिक्तियां सकल आकार ।
भोग पथ परित्याग पर,
अभिस्वीकृत योग कामनाएं ।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।

चाह दिग्भ्रमित राह पर,
सघन तिमिर आच्छादित ।
निज स्वार्थ प्रभाव क्षेत्र,
सोच विचार विमंदित ।
दमन चक्र दामन पर,
नित्य आहत भावनाएं ।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।

नयनन भाषा पटल,
कामुकता अति दूर ।
नैतिकता स्नेह आलिंगन,
पाश्विक मूल चकनाचूर ।
चिंतन मनन लघुता पर,
सदैव दम तोड़ती कल्पनाएं ।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।

अंतर्मन कालिख छवि,
अब विलुप्ति कगार ।
मद मस्त वाहिनियां,
प्रसुप्त जीवन आधार ।
यथार्थ दिव्य स्पंदन पर,
सज रहीं मिलन अल्पनाएं।
प्रेम की ड्योढी पर,सदा अस्वीकृत वासनाएं ।।

प्रेम ईश्वर स्वरूप

प्रेम ईश्वर स्वरूप,वासना एक मनोरोग

अंतःकरण मृदुल कामना,
नेह दिव्य भव्य परिभाषा ।
तन स्पर्श आलिंगन अंतर,
दर्शित वासना अभिलाषा ।
स्पर्श हीन आनंद अनुभूति,
पुनीत पावन प्रणय संजोग ।
प्रेम ईश्वर स्वरूप,वासना एक मनोरोग ।।

वासना पट मर्यादा तार तार,
गौण प्रिय आदर सम्मान ।
पाश्विक आचार विचार,
लैंगिक सुख स्वार्थ ध्यान ।
छल कपट कृत्रिम प्रदर्शन,
संसर्ग हेतु अवांछित प्रयोग।
प्रेम ईश्वर स्वरूप,वासना एक मनोरोग ।।

प्रीत अनुपमा मनमोहिनी ,
सादगी श्रृंगार अति उत्तम।
माध्य साध्य आलोक पुंज ,
सदा हरण हाहाकार तम ।
सहन वहन कष्ट कंटक बाधा ,
सदैव निर्मित मिलन योग ।
प्रेम ईश्वर स्वरूप,वासना एक मनोरोग ।।

अनुरक्ति पटल उद्दीग्नता शांत,
तन मन एकीकरण ओर ।
अमिय सुधा परम स्पंदन,
प्रति पल आनंदित भोर ।
वासना मात्र शारीरिक क्षुधा,
दानव रूपी विलास भोग ।
प्रेम ईश्वर स्वरूप,वासना एक मनोरोग ।।

कृष्ण मृग

कृष्ण मृग, गुरु जम्भेश्वर अवतार

काला हिरण भारतीय एंटीलॉप,
अद्भुत अनुपम अन्य नाम ।
बहुतायत घास भूमि क्षेत्र,
शुभ मंगल पुनीत धाम ।
संचलन सानिध्य कृष्ण रथ,
दर्शन अठखेलियां आनंद अपार ।
कृष्ण मृग, गुरु जम्भेश्वर अवतार ।।

हरियाणा पंजाब आंध्र प्रदेश,
राज्य पशु पदवी अनूप ।
विश्नोई समाज स्नेहिल संरक्षण,
सुख समृद्धि वैभव भूप ।
संबंध अंतर अपनत्व अथाह ,
निज संतति सम प्रेम दुलार ।
कृष्ण मृग,गुरु जम्भेश्वर अवतार ।।

तन मन सौष्ठव अनुपम,
चुस्ती फुर्ती मनमोहक ।
शुद्ध शाकाहारी आहार,
अन्य प्राणी सह भाव रोहक ।
प्रकृति उत्संग दिव्य उपमा ,
पर खुशियां जीवन आधार ।
कृष्ण मृग,गुरु जम्भेश्वर अवतार ।।

अप्रतिम उन्नतीस नियम,
सदा निर्वहन विश्नोई समाज ।
वन वन्य प्राणी उपासना सह ,
कृष्ण मृग सेवा रक्षा काज ।
मातृ बिछोह पर विश्नोई माताएं,
प्रदत्त निज स्तन्य अमिय धार ।
कृष्ण मृग, गुरु जम्भेश्वर अवतार ।।

सारा तमस मिटाओ

बहा ज्योति निर्झर,सारा तमस मिटाओ

मृदुल मधुर हिय तरंग,
स्वर श्रृंगार अनुपम ।
विमल वाणी ओज गायन,
ज्योतिर्मय अन्तरतम ।
गुंजित कर मधुमय गान ,
नव रस लहर बरसाओ ।
बहा ज्योति निर्झर,सारा तमस मिटाओ ।।

दुर्बल छल बल मद माया,
प्रसरित जग जन जन ।
कर निर्मल विमल मति,
तम हर कण कण ।
नवगति नवलय जग अनूप,
नव दृष्टि नवल ज्ञान फैलाओ ।
बहा ज्योति निर्झर,सारा तमस मिटाओ ।।

बन कृपानिधि करुणामय,
दया नीर कण छलका दो ।
प्यासे नयन अंतरस्थ,
निज स्वरूप झलका दो ।
पुलकित पावन अंतर बिंदु,
स्तुति भाव अष्ट याम जगाओ ।
बहा ज्योति निर्झर, सारा तमस मिटाओ ।।

समय काल स्वर्ण आभा,
सर्वत्र मोद हर्ष उल्लास ।
अनवरत अथाह कृपा वृष्टि,
प्रबल आस्था उमंग विश्वास ।
नेह सौरभ परिपूर्ण जीवन ,
संबंध पटल अपनत्व दीप जलाओ ।
बहा ज्योति निर्झर, सारा तमस मिटाओ ।।

आपसे परिचय कर

ह्रदय नेह सिक्त हुआ,आपसे परिचय कर

अंतरंग विमल प्रवाह,
प्रीत ज्योति प्रज्वलन ।
मृदुल मधुर चाह बिंब,
तन मन अनंत मगन ।
निहार अक्स अनुपमा,
मोहित राग रंग लय पर ।
हृदय नेह सिक्त हुआ,आपसे परिचय कर ।।

मंत्रमुग्ध व्यवहार पटल,
हिय प्रिय स्वर व्यंजना ।
शील शिष्ट हाव भाव,
चारु चंद्र सम ज्योत्स्ना ।
सहज सरल मुक्ता मुखी,
प्रीत पल अविस्मय धर ।
ह्रदय नेह सिक्त हुआ,आपसे परिचय कर ।।

दृष्टि सृष्टि परिध वसित,
सौम्य कोमल अनूप छवि ।
मनमोहिनी श्रृंगार छटा,
परिधान संग प्रेरणा नवि ।
अति आकर्षक अंग सौष्ठव,
उरस्थ सुरभि मलय असर ।
ह्रदय नेह सिक्त हुआ,आपसे परिचय कर ।।

अंतःकरण पुनीत पावन,
तत्पर स्पर्श प्रणय बिंदु ।
दर्शन आनन रमणीयता ,
संकेत अंतर अपनत्व सिंधु ।
देख मद मस्त यौवन अंगड़ाई,
तृषा तृप्ति सह निलय तर ।
ह्रदय नेह सिक्त हुआ,आपसे परिचय कर ।।

युवा जोश, भगत सिंह बनने की राह पर

अनैतिकता विरुद्ध प्रखर ,
अंतःकरण राष्ट्रीयता ज्योत ।
निर्वहन सामाजिक संस्कार,
हर कदम परंपरा ओतप्रोत ।
उर सरित शौर्य साहस,
अहंकार लक्षित निगाह पर ।
युवा जोश,भगत सिंह बनने की राह पर ।।

सनातन संस्कृति शिखर स्पर्श,
सर्वत्र भारत वंदन अभिलाषा ।
पथ कंटक व्यवधान समाधान,
सहज शहीदे आजम परिभाषा ।
शालीन शिष्ट नैतिक आचरण ,
सदा विरोध अमैत्री काह पर ।
युवा जोश,भगत सिंह बनने की राह पर ।।

संचेतना हित अवांछित कृत्य,
अंतर भाव सात्विक परिशुद्ध ।
चाह सशक्त दिव्य राष्ट्र छवि,
धर्म आस्था पथ अनिरुद्ध ।
स्वाभिमान रक्षित योजना नीति,
भारती स्तुति स्वर पावन गाह पर ।
युवा जोश,भगत सिंह बनने की राह पर ।।

सोच विचार सकारात्मक,
देश विरोधी भाव प्रतिकार ।
स्वप्न सुख समृद्ध हिंद पटल,
परस्पर स्नेह प्रेम सत्कार ।
वृक्ष जीव जंतु हित करुणा,
बाधक तत्व सदैव स्वाह पर ।
युवा जोश,भगत सिंह बनने की राह पर ।।

वन व वन्य जीव संरक्षण

वन व वन्य जीव संरक्षण में,सदा अग्र विश्नोई समाज

विशुद्ध शाकाहारी जीवन शैली,
दया करुणा अनंत सागर ।
वृक्ष प्राणी अंतर देव दर्शन,
प्रदत्त मानव सम स्नेह आदर ।
जीवन ध्येय रक्षा अभिरक्षा,
कर बुलंद ओजस्वी आवाज ।
वन व वन्य जीव संरक्षण में,सदा अग्र विश्नोई समाज ।।

उन्नतीस नियम अद्भुत अनुपम,
मानवता उत्थान ओतप्रोत ।
सत्य अहिंसा शील समर्पण,
उर शोभित परोपकार ज्योत ।
हरित वृक्ष बचाव संचेतना,
सदैव तत्पर जीव जंतु सेवा काज ।
वन व वन्य जीव संरक्षण में,सदा अग्र विश्नोई समाज ।।

सत्रह सौ तीस खेजड़ली घटना,
साक्षात वृक्ष अनुराग उदाहरण ।
उत्सर्ग तीन सौ तिरेसठ नर नारी,
खेजड़ी बचाव अहम कारण ।
अदम्य साहस नेतृत्व अमृतादेवी,
वृक्ष हित घोर संघर्ष विरुद्ध राज ।
वन व वन्य जीव संरक्षण में,सदा अग्र विश्नोई समाज ।।

कृष्ण मृग सह आत्मिक संबंध,
निज संतति सदृश प्रेम दुलार ।
मादा मृग मृत्यु उपरांत काल,
विश्नोई माताएं प्रदत्त पीयूष धार ।
स्थापना सन् पंद्रह सौ बियालीस,
पुनीत कर कमल श्री जाम्भो जी महाराज ।
वन व वन्य जीव संरक्षण में, सदा अग्र विश्नोई समाज ।।

करवा चौथ व्रत 2024

बना रहे सौभाग्य,सजा रहे श्रृंगार

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी बेला,
नारी जगत साधना पथ ।
मृदुल मधुर भाव तरंगिणी,
खुशहाल वैवाहिकी मनोरथ ।
करवा चौथ व्रत अद्भुत अनूप,
सर्वत्र दांपत्य खुशियां बहार ।
बना रहे सौभाग्य,सजा रहे श्रृंगार ।।

इतिहास व्यंजना अनुपम,
नारी पतिव्रता अग्नि परीक्षा ।
सुफलित व्रत स्तुति दिव्यता ,
वचन अटल जीवन रक्षा ।
तदंतर परंपरा भव्य निर्वहन,
परिणय प्रीत दिव्य निखार ।
बना रहे सौभाग्य,सजा रहे श्रृंगार ।।

कर कमल शोभित हिना,
देह मनमोहक परिधान ।
मुस्कान मोहिनी धर अधर,
आलिंगन धर्म आस्था विधान ।
परिवेश उत्संग चमक दमक,
उपासना अंतर आनंद अपार ।
बना रहे सौभाग्य, सजा रहे श्रृंगार ।।

सुख समृद्ध वैवाहिक जीवन,
समानता अभिवंदन अहम ।
परस्पर अथाह स्नेह सम्मान,
संबंध आत्मिक आह्लाद पैहम ।
पुलकित प्रफुल्लित लोकरंग,
अंतःकरण शुभ मंगल सरित धार ।
बना रहे सौभाग्य, सजा रहे श्रृंगार ।।

सोलह श्रृंगार महत्ता अनूप

बिंदी शोभा आभा मंडल,
शीतलता अप्रतिम ज्योत ।
कुमकुम सह पुनीत अर्णव,
गुरुत्व बल अभिवृद्धि श्रोत ।
मांग अंतर सिंदुर मनोरम,
प्रिय दीर्घ आयुष अनुरूप ।
सोलह श्रृंगार महत्ता अनूप ।।

नयनन निखार काजल संग,
मंगल दोष तीव्र निवारण ।
मेहंदी कर कमल श्रृंगार,
नेह अभिव्यंजना उदाहरण ।
लाल हरी रंग बिरंगी चूड़ियां,
सदा अनंत खुशियां प्रतिरूप ।
सोलह श्रृंगार महत्ता अनूप ।।

मंगलसूत्र सुहाग अनुपमा ,
दाम्पत्य पर्याय परिभाषा ।
नथ पट नित सौंदर्य निर्झर,
गजरा केश सुरभि अभिलाषा ।
सात्विक शालीन मांग टीका,
झुमके झुम आनंद कूप ।
सोलह श्रृंगार महत्ता अनूप ।।

बाजूबंद उद्गम धन वैभव ,
स्वामित्य आहूत कमरबंद ।
बिछिया साहस शौर्य सेतु ,
पायल स्वर जीवन मकरंद ।
अंगूठी अंतर प्रणय अनुबंध ,
स्नान अंग प्रत्यंग यौवन भूप ।
सोलह श्रृंगार महत्ता अनूप ।।

श्री राम कथा शुभ मंगलकारी

त्रेता युग हिंद अखंड धरा,अयोध्या नगरी अनूप ।
दिव्य भव्य रघुवंश कुल,दशरथ लोकप्रिय भूप ।
कैकयी सुमित्रा कौशल्या,त्रि राज राज्ञी गुणधारी ।
श्री राम कथा शुभ मंगलकारी ।।

राम भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण,चार आज्ञाकारी पुत्र ।
श्रवण प्राण हरण कारक,राजा दुःख कष्ट सूत्र ।
कैकयी प्रदत्त वर अहम,राम श्रृंगार वल्कलधारी ।
श्री राम कथा शुभ मंगलकारी।।

चौदह वर्ष वनवास,पतिव्रता धर्म भ्राता प्रेम शीर्ष ।
सीता लक्ष्मण संग गमन,समर्पण व्यंजना उत्कर्ष।
भरत चाह उर्मिला विरह,युग युगांतर उत्कंठाधारी ।
श्री राम कथा शुभ मंगलकारी ।।

शापित वन्य प्राणी हित,वनवास सम वरदान।
विमुक्ति पाप शाप,सौभाग्य राम दर्शन विधान ।
मैत्री सुग्रीव विभीषण संग,हनुमान सेवाचारी ।
श्री राम कथा शुभ मंगलकारी।।

ऋषि कृपा भरद्वाज तापस,वाल्मिकी सह वशिष्ठ ।
अत्रि अनुसया सुतीक्ष्ण,शरभंग अगस्त्य भेंट शिष्ट ।
जटायु शबरी नारद दर्श, पुनीत प्रेरणा अधिकारी ।
श्री राम कथा शुभ मंगलकारी।।

लंका नरेश रावण वध,अहंकार असुरता मूल अंत ।
सत्य अच्छाई नित वरण,विजय श्री आह्लाद अनंत ।
मर्यादा पुरुषोत्तम चरित्र ,आदर्श नैतिक आज्ञाकारी।
श्री राम कथा शुभ मंगलकारी ।।

गौ सेवा

आनंद की पराकाष्ठा,गौ सेवा भक्ति से

संपूर्ण देव लोक उर वसित,
समुद्र मंथन विमल रत्न ।
सदा पुलकित मनुज जीवन,
कर तत्पर सेवा प्रयत्न ।
पावन मंगल भाव उपमा,
सनातन गौरव दर्शन स्तुति से ।
आनंद की पराकाष्ठा,गौ सेवा भक्ति से ।।

सिंग शोभा शिव शंकर ,
उदर शिव सुत कार्तिकेय ।
मस्तक ब्रह्मा ललाट रुद्र,
सिंग अग्र इंद्र देव अजेय ।
कर्ण विराजित अश्वनीकुमार ,
नयनन अनुपमा सूर्य चंद्र ज्योति से ।
आनंद की पराकाष्ठा,गौ सेवा भक्ति से ।।

दंतस्थ गरुड़ जिह्वा शारदे ,
तैंतीस कोटि दैवीय आगार ।
श्री कृष्ण प्रियल गौ परम,
पदमा संग अलौकिक श्रृंगार ।
हिंद संस्कृति संस्कार निहित,
शुभ कवच दुःख कष्ट भय मुक्ति से ।
आनंद की पराकाष्ठा,गौ सेवा भक्ति से ।।

समग्र नागरिक नैतिक धर्म,
गाय माता सेवा दृढ़ संकल्प ।
परिवेश उत्संग संचेतना प्रसार,
गऊ साध्य वर्तमान काया कल्प ।
तन मन धन योगदान अहम,
जीवन ज्योतिर्मय शुभ प्रयास युक्ति से ।
आनंद की पराकाष्ठा,गौ सेवा भक्ति से ।।

तुम रसिक भव भामिनी हो

मृदुल मधुर अंतस बिंदु,
अंग प्रत्यंग यौवन बहार ।
संवाद पटल रस माधुर्य ,
मद मस्त नयनन श्रृंगार ।
हाव भाव चितचोर बिंब,
मेघ रिझावत दामिनी हो।
तुम रसिक भव भामिनी हो ।।

स्वर अभिव्यंजना मधुरिम,
प्रस्तुति अंतर प्रीत स्पंदन ।
आचार विचार हिय प्रिय,
नित्य तत्पर प्रणय वंदन ।
रग रग तरूणाई दर्शन,
सदा विशद मंदाकिनी हो।
तुम रसिक भव भामिनी हो ।।

उरस्थ निर्मल नेह सरिता,
अभिव्यक्ति अंतर अपनत्व ।
शब्द सुरभि मैत्री ओतप्रोत,
ज्योत्स्ना सदृश प्रीति घनत्व ।
अनूप रमणीक सौष्ठव छटा,
ललित नवित मालिनी हो।
तुम रसिक भव भामिनी हो ।।

अति सुरभित मन उपवन ,
विचार तरंगिनी अनुपम ।
चाल ढाल मोहक सोहक,
ललक झलक मंगल उत्तम ।
तन मन मंदिर सा पावन,
स्नेह सिक्त कामिनी हो।
तुम रसिक भव भामिनी हो ।।

हे कलाम , तुम्हें प्रणाम

प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व कृतित्व,
शोध अनुसंधान शीर्ष स्थान ।
मिसाइल मैन भव्य उपमा,
सदा राष्ट्र प्रगति आह्वान ।
विद्यार्थी हित चिंतन मनन,
उज्ज्वल भविष्य सुकाम ।
हे कलाम, तुम्हें प्रणाम ।।

डीआरडीओ इसरो कर्म स्थली,
नित्य परचम तिरंगी शान ।
सफल पोखरण परमाणु परीक्षण,
वैश्विक पटल हिंद पहचान ।
जीवन पर्यंत कामना भावना ,
पुलकित गर्वित भारती धाम ।
हे कलाम, तुम्हें प्रणाम ।

निर्मल पावन आचार विचार ,
अग्र कदम मानवता उत्थान ।
उर स्वप्न सुख समृद्ध देश धरा ,
असीम सहयोग शिक्षा विज्ञान ।
रामायण गीता कुरान कंठस्थ,
आराधना स्तुति आठों याम ।
हे कलाम, तुम्हें प्रणाम ।।

लेखनी उत्तम प्रेरणास्पद,
विज्ञान सह राष्ट्रीयता बोध ।
समस्या अंतर समाधान अन्वेषण,
मुस्कान संग दूर अवरोध ।
भारत रत्न सह अनंत पुरस्कार,
प्रथम नागरिक छवि अभिराम ।
हे कलाम, तुम्हें प्रणाम ।।

साधक ही बाधक बना

साधक ही बाधक बना, सामाजिक न्याय में

स्वतंत्रता उपरांत अहम कदम,
वंचित शोषित निर्धन उत्थान ।
आरंभ आरक्षण व्यवस्था,
दस वर्षीय लक्षित आह्वान ।
पर गहन समीक्षा अभाव,
भटकाव राजनैतिक स्वार्थ संकाय में ।
साधक ही बाधक बना, सामाजिक न्याय में ।।

सात दशक दीर्घकाल सार,
आरक्षण परिणाम ध्येय परे ।
बाधित राष्ट्र एकता अखंडता,
युवा पीढ़ी आक्रोश उभरे ।
प्रतिभा अंतर नैराश्य कुंठा,
सामाजिक ढांचा असहाय में।
साधक ही बाधक बना, सामाजिक न्याय में ।।

सत्य धरातल स्थिति प्रतिकूल,
अंतिम व्यक्ति सुविधा वंचित ।
अर्थ भाव अधिकार सदृश,
लाभ विशेष वर्ग सिंचित ।
आरक्षण मात्र राज दया,
उपमा बैसाखी पर्याय में ।
साधक ही बाधक बना,सामाजिक न्याय में ।।

सकारात्मक सोच विचार संग,
तज संरक्षण मूलक प्रावधान ।
क्रांतिकारी कदम शिक्षा क्षेत्र,
यथार्थ पात्र अनुग्रह अनुदान ।
न्यून लाभ आधिक्य हानि रूपी,
आरक्षण अब इति श्री अध्याय में ।
साधक ही बाधक बना, सामाजिक न्याय में ।।

श्रृंगार से अंगार तक

श्रृंगार से अंगार तक, नारी महिमा अपार

बिंदी शोभा मुखमंडल ,
गात सौम्य पुनीत पावन ।
रग रग उत्साह उमंग,
संवाद रस निर्झर सावन ।
झुमकों अंतर गहरा राज,
जूड़ा गजरा मृदु अलंकार ।
श्रृंगार से अंगार तक,नारी महिमा अपार ।।

कर कमल कंगन खनक,
भ्रमर गुंज कर्ण बिंदु ।
दामिनी तड़क मुक्ताहार ,
रवि गगन तिरोहित सिंधु ।
अंग प्रत्यंग कांति कड़क,
मस्त मलंग यौवन बहार ।
श्रृंगार से अंगार तक,नारी महिमा अपार ।।

सौंदर्य अनुपमा मन मोहिनी,
दर्पण अथाह शर्म ओर।
तर्पण समर्पण भाव अद्भुत,
भूषण परिधान प्रणय भोर ।
चाल ढाल उभार लचक,
मोहित रोहित जन अंबार ।
श्रृंगार से अंगार तक,नारी महिमा अपार ।।

वसन रक्त रंजित माध्य ,
शुभ्र सुनहरी कोमल काया ।
इंद्र अप्सरा आकर्षण मंद,
उर हिलोर प्रकृति मातृ माया ।
दुःख कष्ट मूल निवारक,
योग भोग पट आनंद धार ।
श्रृंगार से अंगार तक, नारी महिमा अपार ।।

सजल हुए नेत्र,मां दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर

दिव्य भव्य शारदीय नवरात्र,
विधि विधान पूर्वक सुसंपन्न।
नौ दिवसीय अप्रतिम साधना,
अग्रसर परम बिंदु स्पंदन ।
जनमानस हर्षित पुलकित ,
मां कृपा प्रसाद अर्जन कर ।
सजल हुए नेत्र, मां दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर ।।

मां भवानी नव रूप दर्शन,
अद्भुत अनुपम व विशेष ।
सर्वत्र आध्यात्मिक उजास,
अंतःकरण आनंद अधिशेष ।
शीर्ष लोक रंग अठखेलियां,
मां वंदन गीत भजन कीर्तन धर ।
सजल हुए नेत्र, मां दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर ।।

शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा ,
कुष्मांडा स्कंध मात अनूप छवि ।
करुणामयी कात्यायनी कालरात्रि,
महागौरी सिद्धिदात्री आभा नवि ।
नव श्रृंगार भक्त वत्सल अनुपमा,
दर्श जीवन खुशियां संवर्धन असर ।
सजल हुए नेत्र, मां दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर ।।

धर्म आस्था शिखर स्पर्श ,
मां मूर्ति सह आत्मीय संबंध ।
रग रग रज रज भाव विभोर ,
निर्वहन परंपरा संस्कार बंध ।
निर्झर अश्रु अलौकिक गम्य बेला,
कामना मां आशीष नित गर्जन भर ।
सजल हुए नेत्र,मां दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर ।।

विजयादशमी पर्व – 2024

शक्ति के वंदन से, विजय श्री अभिनंदन

दृढ़ संकल्प लक्ष्यबद्ध कर्म ,
सकारात्मक सोच परम बिंदु ।
आशा उमंग हर्ष हिलोरित,
सरित आनंद अंतर सिंधु ।
सत्य अटल शाश्वत अप्रतिम ,
सदा अस्त असत्य क्रंदन ।
शक्ति के वंदन से,विजय श्री अभिनंदन ।।

स्वस्थ स्वच्छ तन मन,
सफलता प्राप्य अहम ।
परास्त पथ कंटक बाधा,
आत्मविश्वास मैत्री पैहम ।
धर्म रक्षा प्रतिज्ञा शीर्ष,
निज संस्कृति संस्कार मंडन ।
शक्ति के वंदन से,विजय श्री अभिनंदन।।

चिंतन मनन भाव तरंगिणी,
पुरुषार्थ पथ दिव्य गमन ।
आचमन आध्यात्म ओज,
नैराश्य वैमनस्य मूल शमन ।
शौर्य पराक्रम साहस संग,
रणभूमि जयकार रंजन ।
शक्ति के वंदन से,विजय श्री अभिनंदन।।

पाप काम क्रोध लोभ ,
प्रगति राह वृहत बाधा ।
मोह मद अहंकार आलस्य,
सुख समृद्धि वैभव आधा ।
हिंसा चोरी जड़ तज ,
जीवन सुरभित सम चंदन ।
शक्ति के वंदन से,विजय श्री अभिनंदन।।

शारदीय नवरात्र – महानवमी

अष्ट सिद्धि नव निधि प्राप्य, मां सिद्धिदात्री स्तुति से

शारदीय नवरात्र परम रूप,
सर्वत्र आस्था निष्ठा असीम ।
भक्तजन उर अति आह्लाद,
महानवमी साधना अप्रतिम ।
संपूर्ण नवरात्र एक्य सुफल,
मां सरस्वती सम उपमा भक्ति से ।
अष्ट सिद्धि नव निधि प्राप्य,मां सिद्धिदात्री स्तुति से ।।

केहरी वाहन विराजत मैया,
छटा अद्भुत अनुपम अनूप ।
चार भुजा कर कमल श्रृंगार,
मां पराशक्ति आभा प्रतिरूप ।
साधक उपासना शीर्ष स्पर्शन,
जगत मातृ वंदना अभिव्यक्ति से ।
अष्ट सिद्धि नव निधि प्राप्य,मां सिद्धि दात्री स्तुति से।।

गुलाबी वर्ण प्रिया मोहक छवि,
भक्तजन प्रति स्नेह विशेष ।
परिपूर्ण मनोवांछित कामनाएं,
सुख समृद्धि वैभव अधिशेष ।
भोग चना पूड़ी खीर हलवा सह,
नारियल कन्या पूजन प्रयुक्ति से ।
अष्ट सिद्धि नव निधि प्राप्य, मां सिद्धि दात्री स्तुति से ।।

शिव शंकर अर्द्ध नारीश्वर पद,
मां दुर्गा नवम रूपा वरदान ।
ब्रह्मांड विजय संकल्प पूर्ण,
कर साधना शास्त्रीय विधान ।
भत्सल मैया आशीष अहम,
आनंद मंगल कष्ट पीड़ा मुक्ति से ।
अष्ट सिद्धि नव निधि प्राप्य, मां सिद्धि दात्री स्तुति से ।

शारदीय नवरात्र – दुर्गाष्टमी

अलौकिक सिद्धियों की वृष्टि, मां महागौरी श्री वंदन से

सनातन धर्म दिव्य मनोरमा,
दुर्गाष्टमी पुनीत महापर्व ।
नवरात्र आध्यात्म उजास,
सृष्टि रज रज क्षेत्र सर्व ।
जगदंबें नव रूप अति हर्षित ,
मां श्वेतवर्णी आभा मंथन से ।
अलौकिक सिद्धियों की वृष्टि, मां महागौरी श्री वंदन से ।।

चतुर्भुजा मां शक्ति ऐश्वर्य सह,
सौंदर्य अप्रतिम प्रतिमूर्ति ।
वृषभारूढ़ा शोभित छवि,
शंख चंद्र कुंद उपमा कीर्ति ।
करस्थ भव्य त्रिशुल डमरू,
मुद्रा अभय वर स्पंदन से ।
अलौकिक सिद्धियों की वृष्टि, मां महागौरी श्री वंदन से ।।

उज्ज्वला स्वरूपा मां दुर्गा,
सुख समृद्धि शांति प्रदायक।
चैतन्यमयी त्रैलोक्य मंगला,
सर्व ग्रह दोष मूल निवारक ।
करूणामयी साधना उपासना ,
साधक विमुक्त कष्ट दुःख क्रंदन से ।
अलौकिक सिद्धियों की वृष्टि, मां महागौरी श्री वंदन से ।।

कैलाश वासिनी मृदुला दर्शन,
जीवन उपवन नित सुरभित ।
मोरपंखी मोगरा प्रिया भवानी,
कन्या पूजन विधान निहित ।
हिम श्रृंखला शाकंभरी अवतरण,
देवगण विनय अर्चना मंडन से ।
अलौकिक सिद्धियों की वृष्टि, मां महागौरी श्री वंदन से ।।

शारदीय नवरात्र – सप्तम

हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं

रूप विकराल रुद्र श्रृंगार,
छटा अद्भुत अनूप मनोहारी ।
सघन तिमिर सम वर्णा दर्शन,
साधक जन अति शुभकारी ।
संपूर्ण ब्रह्मांड सिद्धि वृष्टि,
अनंत खुशियां पटल मही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।

महायोगीश्वरी महायोगिनी शुभंकरी,
मां कालरात्रि अन्य नाम ।
रौद्र छवि अप्रतिम झलक,
दानवी शक्ति काम तमाम ।
शुम्भ निशुम्भ रक्त बीज संहार,
देवलोक अग्र पद काज सही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।

चार भुजा त्रिनेत्र विशाल ,
कर खड़ग लौह अस्त्र धारी ।
गर्दभारुढा अभय वर मुद्रा,
सदैव भक्तजन हितकारी ।
शत्रु विजय दृढ़ संकल्प पथ,
मां भक्ति शक्ति सदा अपार रही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।

नील वर्ण प्रिया माता,
भय रोग संताप हरण ।
भूत प्रेत अकाल मृत्यु,
सहज समाधान श्री चरण ।
महासप्तमी परम साधना,
सुख समृद्धि वैभव वर कही ।
हे कालरात्रि कल्याणी, तेरे जैसा जग में कोई नहीं ।।

खुल रहे अंतस द्वार, प्रेम की दिव्य शक्ति से

मृदुल मधुर अनुभूति बिंब,
पुनीत पावन हर भावना ।
एक्य चिंतन स्मृत पटल,
प्रिय दर्शन हित कामना ।
अनवरत अलौकिक स्पंदन,
आनंद निर्झर अशाब्दिक युक्ति से ।
खुल रहे अंतस द्वार, प्रेम की दिव्य शक्ति से ।।

द्वेष नैराश्य क्रोध विलोपन,
अवसानित विभेद नीति ।
संज्ञा सर्वनाम प्रभाव सीमित,
विशेषण संग अनंत प्रीति ।
दुःख सुख अंतर सम भाव,
असीम खुशियां प्रणय भक्ति से ।
खुल रहे अंतस द्वार,प्रेम की दिव्य शक्ति से ।।

हिय उपमा नेह सरोवर,
स्व प्रति आकर्षण श्रोत ।
अपनत्व धार परिध क्षेत्र,
संबंध वेदी स्नेहिल ज्योत ।
परिपूर्ण प्रीत रिक्त छोर,
आरेखन मौन अभिव्यक्ति से ।
खुल रहे अंतस द्वार, प्रेम की दिव्य शक्ति से ।।

प्रतिपल हर्ष उल्लास उमंग,
आत्मविश्वास परम बिंदु ।
सोच विचार सकारात्मक ,
रिक्ति पर्याय सिक्ति सिंधु ।
प्रीत अनुबंध जन्म जन्मांतर ,
कल्पना नित साकार अनुरक्ति से।
खुल रहे अंतस द्वार, प्रेम की दिव्य शक्ति से ।।

शारदीय नवरात्र – षष्ठम

पुरुषार्थ सहज सुफलन, मां कात्यायनी उपासना से

वर्तमान विज्ञान प्रौद्योगिकी युग,
मां दुर्गा षष्ठी छवि पूजन विशेष ।
शोध अनुसंधान दक्षता मैया,
जीवन कृपा दृष्टि अधिशेष ।
जन्म जन्मांतर पाप मुक्ति,
ब्रजमंडल अधिष्ठात्री साधना से ।
पुरुषार्थ सहज सुफलन, मां कात्यायनी उपासना से ।।

केहरी आरूढ़ा मात भवानी,
दिव्य आभा चार भुजा धारी ।
दाएं कर अभय वर मुद्रा,
बाएं खड़ग कमल शोभा न्यारी ।
रोग संताप भय मूल विनिष्ट,
मां श्री चरण स्तुति प्रार्थना से ।
पुरुषार्थ सहज सुफलन, मां कात्यायनी उपासना से ।।

महर्षि कात्यायन सुता हित,
सौम्य सुशील नामकरण ।
भगवान श्री कृष्ण कुलदेवी,
पराशक्ति आस्था आवरण ।
सुख समृद्धि आनंद अथाह,
मां जगदंबे शक्ति भक्ति कामना से ।
पुरुषार्थ सहज सुफलन,मां कात्यायनी उपासना से ।।

महिषासुर मर्दिनी पराम्बा दुर्गे,
नवरात्र महिमा अपरम्पार ।
स्वर्ण भास्वर सम भव्य रूप,
साधक मन आज्ञा चक्र धार ।
जीवन पथ सदा शुभ मंगल,
अमोघ फलदायिनी आराधना से ।
पुरुषार्थ सहज सुफलन, मां कात्यायनी उपासना से ।।

प्रेम की भाषा, शब्दों से बहुत परे

रग रग मृदुलता स्पंदन,
अंतःकरण माधुर्य निर्झर ।
पुलकित भाव तरंगिनी ,
तृषा तृप्त आनंद झर झर ।
हाव भाव मस्त मलंग,
अंतर अनंत निखार भरे ।
प्रेम की भाषा, शब्दों से बहुत परे ।।

प्रति पल दर्श अभिलाष,
स्मृति पटल मनोरम आरेख ।
रूप श्रृंगार मोहक सोहक,
हाव भाव आकर्षण पारेख ।।
यौवन उभार अंग प्रत्यंग,
नयनन स्नेहिल भाव उभरे।
प्रेम की भाषा,शब्दों से बहुत परे ।।

परिध क्षेत्र हर्ष उल्लास,
स्वप्न माला जीवंत रूप ।
चाल ढाल उत्साह उमंगी ,
सौंदर्य बिंदु अर्णव प्रतिरूप ।
हिय प्रिय मौन अभिव्यक्ति,
मुस्कान मान मनुहार करे ।
प्रेम की भाषा,शब्दों से बहुत परे ।।

ह्रदय अनुपमा नेह सरोवर,
अनुभूति पुनीत पावन ।
स्वर सुरभि आत्मिक झंकार,
उर चंचल चंद्रिका बिछावन ।
निशि दिन रमणीक प्रभा,
कदम चाल मिलन ओर धरे ।
प्रेम की भाषा,शब्दों से बहुत परे ।।

शारदीय नवरात्र – पंचम

मां दुर्गे का पंचम रूप, स्नेह प्रेम अभिजागर

पंचम चैत्र नवरात्र अद्भुत ,
मां स्कंद माता परम दर्शन ।
पूजा अर्चना स्तुति शीर्षस्थ,
ममतामयी अनुपम स्पर्शन ।
योग ज्ञान क्षेत्र प्रभारी भवानी,
मृदु मधुर विमल ओज सागर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप, स्नेह प्रेम अभिजागर।।

उर स्थिति विशुद्ध चैतन्य,
साधना मार्ग फलन छोर ।
उपमा गौरी पार्वती माहेश्वरी ,
भक्ति शक्ति सिद्धता ठोर ।
जन वैचारिकी सकारात्मक ,
नारी जगत स्पंदन आदर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप,स्नेह प्रेम अभिजागर।।

शुभ्र वर्णी दिव्य उद्घोष संग,
जन जन मंगलता संचरण ।
दुःख कष्ट मूल विलोपन,
रज रज खुशियां अवतरण ।
सूर्य मंडल अधिष्ठात्री मां,
परिपूर्ण सुख समृद्धि गागर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप,स्नेह प्रेम अभिजागर।।

वंदन अभिनंदन स्कंद मात,
धर्म निष्ठता अप्रतिम पथ ।
सरित प्रवाह भक्ति रस,
सफल साधकगण मनोरथ ।
ऊर्जस्वित उपासना भाव,
जीवन दिशा दशा नागर ।
मां दुर्गे का पंचम रूप,स्नेह प्रेम अभिजागर।।

चतुर्थ नवरात्र

शारदीय नवरात्र चतुर्थ,अद्भुत अनुपम विशेष

चतुर्थ नवरात्र अहम आभा,
सर्वत्र भक्ति शक्ति वंदना ।
असीम उपासना स्तुति आह्लाद,
दर्शन आदर सत्कार अंगना ।
अनंत नमन मां मंद मुस्कान,
त्रिलोक आलोक दर्शित अधिशेष ।
शारदीय नवरात्र चतुर्थ,अद्भुत अनुपम विशेष ।।

अनूप छवि अष्ट भुजाधारी,
रज रज ओज प्रसरण।
भक्तजन अलौकिक स्पर्शन,
तन मन कांति संचरण ।
सौर मंडल अधिष्ठात्री मां,
पटाक्षेप सघन तिमिर द्वेष ।
शारदीय नवरात्र चतुर्थ,अद्भुत अनुपम विशेष ।।

वनराजारूढ़ अक्षय फलदायिनी,
मां रूप भव्य श्रृंगार निराला ।
कर कमंडल धनुष बाण कमल चक्र गदा,
अमृत कलश सिद्धि निधि जपमाला ।
सुख सौभाग्य कृपालु मैया,
दूर सर्व दुःख कष्ट संकट निमेष ।
शारदीय नवरात्र चतुर्थ,अद्भुत अनुपम विशेष ।।

सृष्टि रचना महाकाज,
त्रिदेव अप्रतिम सहयोग ।
हरित वर्ण अति प्रिया मां ,
चाहना कुम्हड़ बलि योग ।
दैहिक दैविक भौतिक ताप मुक्ति,
मां आदि शक्ति दर्शन उन्मेष ।
शारदीय नवरात्र चतुर्थ,अद्भुत अनुपम विशेष ।।

शारदीय नवरात्र

भू लोक गूंज रहा,जय माता दी उद्घोष से

शारदीय नवरात्र अद्भुत अनुपम,
रज रज दर्शित हर्षित पुलकित ।
ज्योतिर्मय जन मानस पटल,
भक्ति शक्ति प्रभाव प्रफुल्लित ।
धर्म आस्था परम स्पंदन,
उत्साह उमंग वासर प्रदोष से ।
भू लोक गूंज रहा,जय माता दी उद्घोष से ।।

गृह मंदिर पांडाल आदि स्थल,
मां दुर्गा नव रूप साक्षात ।
भव्य भजन कीर्तन प्रस्तुतियां,
अंतर पुनीत संकल्प आत्मसात ।
विधिवत पूजा पाठ अर्चना,
असीम आनंद कृपा परितोष से ।
भू लोक गूंज रहा,जय माता दी उद्घोष से ।।

अप्रतिम छटा मनहर श्रृंगार,
आभा मंडल अथाह तेज ।
दुःख कष्ट पीड़ा मूल हरण,
शोभा सुख समृद्धि बंधेज ।
अनूप महिमा मंडन मां शेरों वाली,
वर वैभव स्नेहिल कोष से ।
भू लोक गूंज रहा,जय माता दी उद्घोष से ।।

जप तप उपासना सिद्धि ओर ,
सत्त्व रजो तमो गुण संधान ।
धर्म श्री वंदन अधर्म विनाश,
जीवन परिष्करण विधान ।
ज्योति पुंज परिवेश उत्संग ,
मुक्ति अनैतिकता स्व दोष से ।।
भू लोक गूंज रहा, जय माता दी उद्घोष से।।

मां चंद्रघंटा

मां चंद्रघंटा, अनंत सद्यःफलदायक

शारदीय नवरात्र तृतीय बेला,
शीर्षस्थ आस्था भक्ति भाव ।
सर्वत्र दर्शित आध्यात्म ओज,
जीवन आरूढ़ धर्म निष्ठा नाव ।
चंद्रघंटा रूप धर मां भवानी,
शांति समग्र कल्याण प्रदायक ।
मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यःफलदायक ।।

साधक पुनीत अंतर्मन आज,
मणिपूर चक्र श्री प्रवेश ।
मां स्व विग्रह पूजन अर्चन,
दर्शन अलौकिकता परिवेश ।
युद्ध उद्यत मुद्रा मां जगदंबे,
दुःख कष्ट पाप मुक्ति नायक ।
मां चंद्रघंटा, अनंत सद्यःफलदायक ।।

शीश अर्द्ध चंद्र शोभना,
सिंहारूढ़ मनमोहनी छवि ।
दशम कर खड्ग श्रृंगार,
दूर मंगल दोष कर पवि ।
मां असीम कृपा दृष्टि नित,
बाधा संघर्ष हल परिचायक ।
मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यःफलदायक ।।

अनुभूत सुरभि स्वर लहरी,
मां अनूप स्तुति साधना ।
सुख समृद्ध विमल जीवन ,
परिपूर्ण मनोवांछित कामना ।
वीरता पराक्रम वर संग मां,
सौम्यता विनम्रता विधायक ।
मां चंद्रघंटा,अनंत सद्यःफलदायक ।।

शिक्षक

शिक्षक एक प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व

मृदुल मधुर ह्रदय तरंग,
स्वर श्रृंगार अनुपम ।
विमल वाणी ओज गायन,
ज्योतिर्मय अन्तरतम ।
मानस सर नवरस लहर,
गुंजित मधुमय गान अस्तित्व ।
शिक्षक एक प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व ।।

दुर्बल छल बल मद माया,
प्रसरित जग जन जन ।
प्रदत्त निर्मल विमल मति,
तमस हर कण कण ।
नवगति नवलय जग अनूप,
नव दृष्टि नवल ज्ञान तत्व ।
शिक्षक एक प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व ।।

कृपा निधि करुणामय,
दया नीर पुनीत सागर ।
तृष नयन तृप्ति कारक ,
नेह सिक्त अपनत्व गागर ।
पुलकित पावन चरण बिंदु,
स्पर्श स्तुति अष्ट याम घनत्व ।
शिक्षक एक प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व ।।

समय काल स्वर्ण आभा,
सर्वत्र मोद उल्लास ।
आजीवन अथाह कृपा,
प्रबल आस्था विश्वास ।
प्रेम सुमन महके जीवन ,
सर्व सुख समृद्धि हित कृतित्व ।
शिक्षक एक प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व ।।

शारदीय नवरात्र – द्वितीय

जीवन पथ ज्योतिर्मय, मां ब्रह्मचारिणी आराधना से

नवरात्र द्वितीय छटा मनहर,
रज रज आध्यात्म सराबोर ।
भक्तजन शीर्ष स्तुति भाव,
आस्था आह्लाद चारों ओर ।
मां ब्रह्मचारिणी मृदुल वंदना,
शुभ मंगल हिय भावना से ।
जीवन पथ ज्योतिर्मय, मां ब्रह्मचारिणी आराधना से ।।

अमोध फलदायिनी आभा,
अद्भुत अनुपम व विशेष ।
दुःख कष्ट पीड़ा विलोपन,
सुख समृद्धि आनंद अधिशेष ।
सुयश, विजय भव आशीष ,
मां श्री चरण उपासना से ।
जीवन पथ ज्योतिर्मय,मां ब्रह्मचारिणी आराधना से ।।

स्व अधिष्ठान चक्र स्थिरता ,
मां साधना अति फलकारी ।
ब्रह्म रूपा दिव्य दर्शन कर,
लोक परलोक बलिहारी ।
त्याग तपस्या सदाचार संयम,
श्रृंगारित अभिवृद्धि कामना से ।
जीवन पथ ज्योतिर्मय, मां ब्रह्मचारिणी आराधना से ।।

कुंडलिनी शक्ति चैतन्यता,
निर्मित अहम भव्य संजोग ।
अखंड जप तप साधना,
ज्ञान सह आत्मबल अनुप्रयोग ।
उपमा अर्पणा ,उमा ,तपश्चरिणी,
मां असीम कृपा स्तवन पूजा अर्चना से ।
जीवन पथ ज्योतिर्मय, मां ब्रह्मचारिणी आराधना से ।।

शारदीय नवरात्र – प्रथम

शैल पुत्री दर्शन से,खिल रही जीवन फुलवारी

वंदन मां भवानी प्रथम रूप,
रज रज आध्यात्म उजास ।
नवरात्र भव्य शुभारंभ बेला,
परिवेश उत्संग उमंग उल्लास ।
योग साधना दिव्य श्री गणेश,
साधक मूलाधार चक्र धारी ।
शैलपुत्री दर्शन से, खिल रही जीवन फुलवारी ।।

हिमालय सुता पुनीत दर्श,
असीम मंगल फलदायक ।
सुख समृद्धि सरित प्रवाह,
जन चेतना स्नेह प्रेम नायक ।
वर्षभ आरूढ़ त्रिशूल कमल धर,
मां दुःख कष्ट पीड़ा उपचारी ।
शैलपुत्री दर्शन से, खिल रही जीवन फुलवारी ।।

पूर्व जन्म मां शैल पुत्री,
प्रजापति दक्ष सुकन्या ।
परिणय शिव शंकर संग,
शोभित सती नाम अनन्या ।
फिर पितृ यज्ञ पति अपमान ,
निज प्राण योगाग्नि वारी ।
शैलपुत्री दर्शन से, खिल रही जीवन फुलवारी ।।

हिमपुत्री स्वरूपा मां दुर्गा,
महत्ता अलौकिक अपार ।
जीवन सम वैभव अर्णव,
अंतर्मन सुरभि आनंद बहार ।
कोटि कोटि नमन श्री चरण,
मां सदा कृपासिंधु अवतारी ।
शैलपुत्री दर्शन से, खिल रही जीवन फुलवारी ।।

गांधी जयंती/शास्त्री जयंती

द्वि विभूति एक्य जयंती, हिंद पटल हर्षोल्लास

दो अक्टूबर अद्भुत अनुपम,
द्वि महापुरुष अवतरण बेला ।
प्रथम अहिंसा परम पुजारी,
द्वितीय सादगी भाव नवेला ।
कोटि कोटि नमन अभिवंदन,
दोऊ सुशोभित भारती अंतरांस ।
द्वि विभूति एक्य जयंती, हिंद पटल हर्षोल्लास ।।

सत्य प्रयोग शांति महत्ता,
बापू जीवन अमिय सार
ईमानदारी सह कर्म निष्ठा,
शास्त्री जी सोच शासन आधार ।
सहज सरल व्यक्तित्व कृतित्व ,
हर कदम राष्ट्र उत्थान प्रयास।
द्वि विभूति एक्य जयंती, हिंद पटल हर्षोल्लास ।।

सत्याग्रह पथ राष्ट्रपिता,
सदैव प्रगाढ़ अंतर्संबंध ।
जनप्रिय लाल बहादुर,
हर कर्तव्य आदर्श बंध ।
स्वतंत्रता आंदोलन संघर्ष,
सविनय अहिंसा सूत्र सुहास ।
द्वि विभूति एक्य जयंती, हिंद पटल हर्षोल्लास ।।

भारत छोड़ो ,करो या मरो,
गांधी जी प्रेरणा पुंज उद्घोष ।
जय जवान जय किसान ,
शास्त्री जी स्नेहिल परितोष ।
प्रातः स्मरणीय विराट छवि,
अहम श्रोत देश धरा उजास ।
द्वि विभूति एक्य जयंती, हिंद पटल हर्षोल्लास ।।

उर से उर मिले

उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के

शमन दमन निज स्वार्थ,
अंकुश व्यर्थ अभिलाषा ।
हृदयंगम अनूप प्रीत रंग,
हर पल आनंद परिभाषा ।
लांघ कर नैराश्य देहरी,
समीप आशा उमंग पराग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

क्रोध वैमनस्य मूल हरण,
आमंत्रण स्नेहिल मैत्री ।
तज शत्रुवत व्यवहार ,
पीर सरित पटल नेत्री।
कर्म धर्म नित फलीभूत,
सात्विक भाव सम प्रयाग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

अबोध मन दिशाभ्रमित ,
वहन सहन कंटक शूल ।
प्रतिकार सदा अनैतिकता ,
प्रयोग साहस शौर्य त्रिशूल ।
आलिंगन यथार्थ चरित पट,
अविचलन दर्श मंचन काग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

आत्मविश्वास परम सखा ,
नित्य प्रशस्त धवल पथ ।
सकारात्मकता ओज संग,
आरूढ़ बाधा संघर्ष रथ ।
प्रीति कल्पना साकार रूप ,
बस संकल्प वासना त्याग के ।
उर से उर मिले,जलज खिले अनुराग के ।।

हर रंग तुम पर खिलता है

लाल रंगी साड़ी पहन,
नेह मृदुल मधुर परिभाषा।
महत्वाकांक्षी आचार विचार
उत्साह जोश शौर्य भाषा ।
अंगित जब पीत वसन,
सर्वत्र प्रकाश फिसलता है ।
हर रंग तुम पर खिलता है ।।

हरित वर्णी चुनरिया सह,
ताजगी परम अनुभूति ।
बैंगनी अंग वस्त्र सहित,
ज्ञान शांति दिव्य ज्योति ।
धारित जब कृष्ण चीर,
यथार्थ बिंदु पिघलता है ।
हर रंग तुम पर खिलता है ।।

देखकर भूरा रंग सदैव,
ईमानदार शांत चितवन ।
श्वेत वर्णी आभा पटल,
विमलता सादगी रमन ।
दर्श मोहक सौम्य मुस्कान ,
हर पल आनंद मिलता है ।
हर रंग तुम पर खिलता है ।।

नीले वर्णी पोशाक पर्याय,
जीवन चंचल गतिमान ।
सुशोभित नवरंगी अंबर,
प्रखरता संग शक्तिमान ।
निहार विविध पट रश्मियां ,
यौवन सुख निखिलता है ।
हर रंग तुम पर खिलता है ।।

कल्पना की अल्पना में

निज आरेखित जग पटल,
स्व परिध मस्त मगन ।
पृथक दृष्टि सोच विचार,
नित निहार धरा गगन।
हृदयंगम मनोरम छटा,
शब्द मौन संकेत प्रज्ञान ।
कल्पना की अल्पना में, पागल प्रेमी कवि समान ।।

विक्षिप्त अनुपमा उन्माद ,
निशि वासर एक्य बिंदु ।
प्रेमी प्रेयसी अनुबंध नेह ,
परस्पर दर्श आनंद सिंधु ।
कवि आह्लाद सृजन संग,
परिवेश स्पंदन काव्य शान ।
कल्पना की अल्पना में,पागल प्रेमी कवि समान ।।

उपर्युक्त त्रि आयामी उपमा,
स्वप्निल जगत अनूप पथिक ।
दृश्य परिदृश्य बिंब अंतर ,
मनोभाव चित्रण भव्य रसिक ।
चाल ढाल भाव भंगिमा ,
नित्य आतुर नव कीर्तिमान ।
कल्पना की अल्पना में,पागल प्रेमी कवि समान ।।

उन्मत्त संज्ञा सनक खनक ,
चकोर चातक तत्पर रोमांस ।
मोहक सोहक काव्यकार छवि,
शब्द संरचना पट भाव रोमांच ।
सृष्टि सदृश कर्म धर्म निर्वहन ,
ध्येय सौंदर्य माधुर्य दिव्य बखान ।
कल्पना की अल्पना में,पागल प्रेमी कवि समान ।।

भगत सिंह जयंती

हर शब्द लघु, भगत सिंह शौर्य वंदन में

उत्साह उमंग साहस उपमा,
रग रग सरित देश भक्ति धार ।
हिंद स्वतंत्रता परम ध्येय,
राष्ट्र सेवा स्तुति जीवन सार ।
सशस्त्र क्रांति सह अवश संघर्ष ,
खुले विद्रोह शासन नींव स्पंदन में ।
हर शब्द लघु,भगत सिंह शौर्य वंदन में ।।

अठाईस सितंबर उन्नीस सौ सात,
शहीदे आजम अवतरण दिवस ।
सर्व अनंत हार्दिक शुभकामनाएं,
हिंद रज रज दर्शित भाव पियस ।
स्मृत कर प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व,
राष्ट्र धरा सुरभि सम चंदन में ।
हर शब्द लघु, भगत सिंह शौर्य वंदन में ।।

मात पिता किशन सिंह विद्यावती ,
जन्म स्थल बंगा गांव पंजाब ।
लालन पालन संस्कारमय ,
तरुणाई अंतर बिंब जाबांज ।
अहम योग लाहौर सैंडर्स हत्या,
केंद्रीय संसद बम कांड व्यूह मंडन में ।
हर शब्द लघु,भगत सिंह शौर्य वंदन में ।।

पुनीत स्थापना नौजवान भारत सभा ,
हिंदुस्तान सोशलिस्ट संग संलग्नता।
सिंचन प्रयास रिपब्लिक एसोसिएशन,
राष्ट्र पिता सह वैचारिक भिन्नता ।
धर आत्मविश्वासी अभय कदम,
सहर्ष फांसी स्वीकार्यता राष्ट्र रंजन में ।
हर शब्द लघु,भगत सिंह शौर्य वंदन में ।।

विश्व पर्यटन दिवस

पर्यटन की अठखेलियों से,शांति का परम संदेश

संपूर्ण विश्व परिवार सम,
विविधता अंतर एकता भाव ।
रंग बिरंगी लोक कला झंकार,
परिधान व्यंजन स्वाद प्रभाव ।
सर्व धर्म समभाव
मानवता वंदित सौम्य परिवेश ।
पर्यटन की अठखेलियों से,शांति का परम संदेश ।।

प्रीत अनुबंध प्रकृति संग,
वन्य जीव जंतु प्रति स्नेह ।
संरक्षण हित नैतिक प्रयास,
समुचित पोषण प्रबंधन गेह ।
जैव विविधता अनुपम बिंदु ,
जनमानस वैचारिकी संजेश ।
पर्यटन की अठखेलियों से,शांति का परम संदेश ।।

परा संस्कृति ज्ञान अवबोध,
सदा प्रशस्त प्रगति पथ ।
समन्वय वर्तमान दिनचर्या,
इतिहास अनुपमा शपथ ।
अद्यतन ज्ञान विज्ञान तथ्य,
भ्रांति अंधविश्वास अंकेश ।
पर्यटन की अठखेलियों से,शांति का परम संदेश ।।

यात्रा भ्रमण रोमांच जन्य,
प्रेरणास्पद जानकारी अनंत ।
चिंतन सोच विस्तार प्रभाव,
सुख समृद्ध परिवेश बसंत ।
पुनीत प्रखर अपनत्व लड़ियां,
सांस्कृतिकता उन्मुख मंजेश ।
पर्यटन की अठखेलियों से,शांति का परम संदेश ।।

तुम सुंदर कविता सी हो

तुम प्रेम पत्र में लिखी,सुंदर कविता सी हो

अंग प्रत्यंग किसलय,
अंतःकरण हर्ष उमंग ।
संवाद पटल रस माधुर्य ,
निर्झर आनंद जीवन कंग ।
हाव भाव सौम्य वासंतिक,
आलोक पुंज सविता सी हो ।
तुम प्रेम पत्र में लिखी,सुंदर कविता सी हो ।।

स्वर मधुरिमा मनभावन,
जीवन उत्सविक अनुपमा ।
श्रृंगार अनुपम हिय प्रिय,
प्रीतम सम प्रणय रमा ।
रग रग तरूणाई दर्शन,
तृषा तृप्त गविता सी हो ।
तुम प्रेम पत्र में लिखी,सुंदर कविता सी हो ।।

ह्रदय बिंदु नेह सरोवर,
अभिव्यक्ति अंतर अपनत्व ।
शब्द सुरभि मैत्री ओतप्रोत,
चारु चंद्र सदृश प्रीत घनत्व ।
निशि वासर रमणीक प्रभा,
छवि ललित नविता सी हो।
तुम प्रेम पत्र में लिखी, सुंदर कविता सी हो ।।

अति सुरभित मन उपवन ,
विचार तरंगिनी अनुपम ।
चाल ढाल मोहक सोहक,
हाव भाव मंगल उत्तम ।
तन मन मंदिर सा पावन,
अनंत स्नेह सिक्त पविता सी हो।
तुम प्रेम पत्र में लिखी, सुंदर कविता सी हो ।।

वैदेही अनुपमा से, राम बने भगवान

जनक दुलारी महिमा अद्भुत,
प्रातः वंदनीय शुभकारी ।
राम रमाकर रोम रोम,
पतिव्रता दिव्य अवतारी ।
शीर्ष आस्था सनातन धर्म,
संस्कृति परंपरा संस्कार ज्ञान ।
वैदेही अनुपमा से, राम बने भगवान ।।

मृदु विमल अर्धांगिनी छवि,
प्रति पल रूप परछाया ।
प्रासाद सह वनवास काल,
अगाथ जप तप नेह निभाया ।
शील समर्पण त्याग उपमा,
पर्याय अपराजिता वैभव शान ।
वैदेही अनुपमा से, राम बने भगवान ।।

जनमानस प्रश्न समाधान हित,
उत्तीर्ण कठिन अग्नि परीक्षा ।
शक्ति भक्ति अप्रतिम पर्याय ,
नित राम रूप सकल प्रतीक्षा ।
पुत्री वधु रूप जानकी प्रभा,
पावन गीता सम मान सम्मान ।
वैदेही अनुपमा से, राम बने भगवान ।।

रामवल्लभा तो साक्षात ,
मां लक्ष्मी भव्य अवतार ।
जीवन पथ मंगल कंवल,
प्रेरणा सरित अमृत धार ।
अवश संघर्ष कर राघव संग,
हर कदम अग्र मानवता उत्थान ।
वैदेही अनुपमा से, राम बने भगवान ।।

जयति जय जय भारत वंदन

पावन संकल्प विकसित राष्ट्र,
उज्ज्वल छवि वैश्विक पटल ।
स्वस्थ स्वच्छ भारती प्रांगण,
स्वाभिमान रक्षा ध्येय अटल ।
अग्र कदम शिक्षा प्रौद्योगिकी,
स्नेह भाई चारा नयनन अंजन ।
जयति जय जय भारत वंदन ।।

उत्तर शोभा पर्वतराज श्री,
दक्षिण पावन हिंद सागर ।
पूर्व सुरभि मलयज वनवाई,
पश्चिमी मरु आनंद गागर ।
छटा मोहिनी मध्य बिंदु,
सुख समृद्धि शांति मंडन ।
जयति जय जय भारत वंदन । ।

स्वच्छमेव जयते अनूप मंत्र ,
दैनिक जीवन अभिन्न अंग ।
देश प्रेम ज्योति मनोरम,
अंतःकरण निर्झर आशा उमंग ।
परा विरासत प्रेरणा पुंज ,
परंपरा संस्कार संस्कृति रंजन ।
जयति जय जय भारत वंदन ।।

संविधान सम्मत राज काज,
नागरिक संचेतना अद्भुत ।
अधिकार पूर्व कर्तव्य भान ,
भारती गौरव शौर्य अच्युत ।
समता समानता सजग प्रयास ,
परिवेश उत्सविक प्रभा स्पंदन ।
जयति जय जय भारत वंदन ।।

यादों के घन

यादों के घन, सघन ह्रदय पर

मिलन सानिध्य परम सौभाग्य,
जीवन अंतर आनंद अथाह ।
निमिष बिंब सौंदर्य दर्शन,
रग रग सरित माधुर्य प्रवाह ।
वैचारिकी पट सकारात्मकता,
सहज संवाद सरस विलय कर ।
यादों के घन, सघन ह्रदय पर ।।

व्यक्तित्व पटल जीवटता,
श्रम निष्ठा ओतप्रोत कृतित्व ।
लोक दृष्टांत संप्रेषण माध्य,
सजग प्रयास परा अस्तित्व ।
अंकुश लघु अवांछित घटक,
आदर्श पावन निलय असर ।
यादों के घन, सघन ह्रदय पर ।।

जन्म जन्मांतर स्नेहिल अनुबंध ,
पर नियति नियत अति कठोर ।
विछोह वेदना असहनीय बिंदु ,
कदम दिशा अलौकिकता ओर ।
उरस्थ अनूप उर्मिल भाव श्रृंगार ,
नयन अश्रु कंप किसलय अधर ।
यादों के घन, सघन ह्रदय पर ।।

मुदित मना मानस मुनियों सा,
ध्यान चिंतन उत्तम ज्ञान ।
नीतिमान निष्कपट सुनिष्ठ,
सतत निरत नैतिक आह्वान ।
आधार स्तंभ परिवार समुदाय,
प्रीत ज्योत राग रंग जय भर ।
यादों के घन, सघन ह्रदय पर ।।

जयपुर

मरती है सारी दुनिया,मद मस्त गुलाबी अदाओं पर

राजसी ठाठ बाट वैभव,
परा विरासत पावन धरा ।
समृद्ध भवन निर्माण शैली,
सरस जीवंत संस्कृति परंपरा ।
वास मनोरमा अद्भुत अनुपम,
सुशोभा अरावली कंदराओं पर ।
मरती है सारी दुनिया,मद मस्त गुलाबी अदाओं पर ।।

भोर तरुण दोपहर यौवन ,
शाम अल्हड़ता अति मोहक ।
झलक रजपूती आन बान शान,
रग रग पुरात्तन ओज सोहक ।
गौरव स्वाभिमान राजस्थान,
राजधानी उपमा शासन कलाओं पर ।
मरती है सारी दुनिया,मद मस्त गुलाबी अदाओं पर ।।

महल गृह प्रतिष्ठान सर्वत्र,
प्रयुक्ति गुलाबी वर्ण प्रस्तर ।
इतिहास पटल राजा राम सिंह,
अल्बर्ट अभिनंदन वर्ण असर ।
स्वर्णिम त्रिकोण छटा मोहिनी ,
पर्यटन उमंग आरेख़ फिजाओं पर ।
मरती है सारी दुनिया,मद मस्त गुलाबी अदाओं पर ।।

हवा महल जंतर मंतर सह ,
नाहर गढ़ दिव्य भव्य धरोहर ।
मोती डूंगरी गणेश कृपा अनंत,
भारत पेरिस मान सरोवर ।
रज रज साहस शौर्य दर्शन ,
सदा प्रगति पंख कल्पनाओं पर ।
मरती है सारी दुनिया,मद मस्त गुलाबी अदाओं पर ।।

स्पर्श की अनुभूति को, अभिव्यक्ति बन जाने दो

हर पर स्पर्श अंतर,
छिपा हुआ एक मर्म ।
सुखद हो या अवांछित ,
प्रणीत इसी संग कर्म ।
मृदुल विमल अंतर्मन ,
स्पंदन भाव बताने दो ।
स्पर्श की अनुभूति को,अभिव्यक्ति बन जाने दो ।।

परिवार समाज कार्यस्थल,
अभिमंडित गिद्ध दृष्टि ।
परिवेश उत्संग अनवरत,
वासनमय वैचारिक वृष्टि ।
तज शर्म संकोच अब,
संचेतना भाव जगाने दो ।
स्पर्श की अनुभूति को,अभिव्यक्ति बन जाने दो ।।

परिचित हो या अनजान,
स्पर्श सदा हो अभिव्यक्त ।
माता पिता शिक्षकवृंद सह,
निसंकोच भाव हो व्यक्त ।
रूढ़िवादी जकड़न छोड़,
अब सत्य सामने आने दो ।
स्पर्श की अनुभूति को,अभिव्यक्ति बन जाने दो ।।

अच्छे स्पर्श संग सदैव,
असीम आनंद प्रवाह ।
बुरे स्पर्श पट भाव अर्थ ,
असहजता नित अथाह ।
स्वच्छ सुंदर समाज हित,
निम्न स्पर्श सोच हराने दो ।
स्पर्श की अनुभूति को,अभिव्यक्ति बन जाने दो ।।

बेटियां जीवन की मुस्कान

मनुज सौभाग्य जागृत,
मंगलता घर द्वार प्रवेश ।
सुख समृद्धि वैभव असीम,
आह्लादित सौम्य परिवेश ।
पावन पुनीत दर्शन अनुपमा,
अनंत आशा उमंग खान ।
बेटियां जीवन की मुस्कान ।।

सृजन दिव्य अठखेलियां,
कुल वंश परिवार वंदन ।
धर्म कर्म परम शोभना,
मर्यादा सुसंस्कार मंडन ।
हृदय स्नेहिल धार अथाह ,
नित रक्षित आन बान शान।
बेटियां जीवन की मुस्कान ।।

रग रग अंतर शाश्वतता,
शक्ति भक्ति अनन्य बिंदु ।
आत्म विश्वास मैत्री बंधन,
संघर्ष पथ विजयी सिंधु ।
उत्तम श्रेष्ठ नैतिक छवि,
हर कदम नित नव कीर्तिमान ।
बेटियां जीवन की मुस्कान ।।

देहरी प्रांगण अति शोभित,
कुटुंब समाज राष्ट्र रत्न ।
अंतर्मन आनंद निर्झर,
सफलता हित घोर प्रयत्न ।
मृदुल मधुर संवाद पर्याय,
उरस्थ शुभ मंगल गुणगान ।
बेटियां जीवन की मुस्कान ।।

एक कली मुरझा गई

( सुयोग्य कर्मठ युवा आर.ए.एस .अधिकारी प्रियंका जी विश्नोई के आकस्मिक निधन पर शाब्दिक श्रद्धांजलि )

एक कली मुरझा गई, प्रसून बनने से पहले

स्नेहिल समर्पित भव्य कार्यशैली,
प्रेरणा पुंज आर ए एस अधिकारी ।
कर्तव्य निष्ठ शीर्ष नैतिक छवि,
त्वरित जन समस्या उपचारी ।
नियति नियत अत्यंत दारुण,
अवसान बेला राजस्थान दहले।
एक कली मुरझा गई, प्रसून बनने से पहले ।।

उत्तम उन्नत प्रशासनिक दक्षता,
जन संवाद अति उत्तम ।
व्यक्तित्व कृतित्व मिलनसारी,
कार्य मनोरमा अनुपम ।
संस्कृति परंपरा मृदु व्यंजना,
स्वभाव अंतर अपनत्व अहले ।
एक कली मुरझा गई, प्रसून बनने से पहले ।।

सम्पूर्ण समाज परिवार उपमा,
हर कदम मानवता उत्थान ।
निर्धन किसान शोषित हित ,
नव आशा ज्योत उमंगी शान ।
नारी शक्ति वंदन सुपर्याय,
जोश उत्साह भाव रुपहले ।
एक कली मुरझा गई, प्रसून बनने से पहले ।।

लक्ष्यबद्ध जन उन्नयन प्रयास,
तंत्र अंतर अहम योगदान ।
यथार्थ पटल राज योजनाएं ,
सदा प्रगति पथ आह्वान ।
कोटि कोटि सह्रदय नमन,
अलौकिक जग पद सुनहले ।
एक कली मुरझा गई, प्रसून बनने से पहले ।।

प्रीत की रीत पर

प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे

अंतर अथाह निर्मल पावन,
निहार रहा धरा गगन ।
देख सौम्य काल धारा,
निज ही निज मलंग मगन ।
परम बिंदु स्तुत कामनाएं,
चाह नेह पथ बाधा भागे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे थे आईमन्नतों के धागे ।।

नवल धवल तन मन प्रभा,
स्नेहिल मृगनयनी दृष्टि ।
प्रसूनी बहार परिवेश उत्संग,
असीम चाह ज्योत्सना वृष्टि ।
मंत्रमुग्ध अंतरतम भावनाएं,
दिव्य मिलन अभिलाष जागे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे ।।

आशा उत्साह जोश उमंग,
अंतर्मन अथाह संचरण ।
प्रीति अनुबंधित पथ गमन,
खुशियां अनंत अवतरण।
अतरंगी तिमिर अवसानित,
आलोक अनुपमा घट विराजे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे ।।

विखंडित वैमनस्य वैर भाव ,
अखंड यशस्वी प्रेम पथ ।
प्रणय उपमित अनुभूति,
आनंद पर्याय जीवन रथ ।
उरस्थ मधुर स्वर लहरियां,
मंद मंद सौम्य मुस्कानों आगे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे ।।

मुझे सिर्फ तुम्हीं से प्यार है

अति उत्तम दर्शन मनोरमा,
अंतर पटल प्रीति निर्झर ।
पुलकित प्रफुल्लित आभा,
तृषा तृप्त आनंद झर झर ।
हाव भाव मस्त मलंग,
अंतर बिंदु प्रीत निखार है ।
मुझे सिर्फ तुम्हीं से प्यार है ।।

प्रति पल मिलन उमंग,
स्मृति पट मोहिनी छवि ।
रूप श्रृंगार मोहक सोहक,
आकर्षण ओज सम रवि ।
यौवन उभार मद मस्त ,
नयनन स्नेहिल कजरार है ।
मुझे सिर्फ तुम्हीं से प्यार है ।।

परिध क्षेत्र हर्ष उल्लास,
स्वप्न माला रूप जीवंत ।
चाल ढाल उत्साह आरेख ,
सौंदर्य अनुपमा अत्यंत ।
हिय प्रिय भाव भंगिमा,
मुस्कानी मान मनुहार है ।
मुझे सिर्फ तुम्हीं से प्यार है ।।

अंतःकरण नेह सरोवर,
अभिव्यक्ति भाव अतरंग ।
शब्द सुरभि चाह अथाह,
चारु चंद्र चंचलता संग ।
निशि दिन रमणीक प्रभा,
रग रग अभिलाष अपार है।
मुझे सिर्फ तुम्हीं से प्यार है ।।

मस्त मलंग यौवन बहार

अंग प्रत्यंग नव अंकुरण,
घट पट उमंग लहर ।
संवाद पटल माधुर्य,
सर्वत्र खुशियां महर ।
हर छवि प्रेयेसी सम,
रग रग नेह दर्शन साकार ।
मस्त मलंग यौवन बहार ।।

नूतन ओज मधुर स्वर,
जीवन उत्सविक अनुपमा ।
तन मन प्रचंड वेग बिंदु,
अनंत प्रणय भाव रमा ।
तरूणाई पर्याय अरुणाई ,
तृषा स्पर्शित तृप्ति आगार ।
मस्त मलंग यौवन बहार ।।

अल्हड़ता पूर्ण व्यवहार,
मैत्री परिध हास्य परिहास ।
उग्र जोश अठखेलियां,
चाह राह शौर्य साहस ।
असंभवता मूल विलोपन,
कीर्तिमानी आरेख आधार ।
मस्त मलंग यौवन बहार ।।

अति सुरभित भाव भंगिमा,
अंतःकरण शुभता स्पंदन ।
कदम चाल मोहक सोहक,
लक्ष्य पथ सतत अभिवंदन ।
पावन दृष्टि सकारात्मक सोच,
मन मंदिर अविरल राग मल्हार ।
मस्त मलंग यौवन बहार ।।

श्रीमद्भागवत

श्रीमद्भागवत,साक्षात भगवंता

हिंदू धर्म अनुपमा अद्भुत,
जीवन यथार्थ परम बोध ।
पथ प्रशस्त नैतिक जीवन,
कर्म दिशा दशा चरम शोध ।
अठारह पुराण दिव्य प्रभा,
ज्ञान प्रज्ञान बोध अनंता ।
श्रीमद्भागवत,साक्षात भगवंता ।।

महापुराण उपमा श्रीमद्भागवत,
श्री कृष्ण भक्ति अप्रतिम ग्रंथ ।
अथाह रास रस भाव प्रवाह,
आध्यात्म ओज प्रभाव मंथ ।
ज्ञान वैराग्य भक्ति महानता,
हर्ष उमंग जन चेतना कंता ।
श्रीमद्भागवत,साक्षात भगवंता ।।

तीन सौ पैंतीस अध्याय सह,
बारह शोभित भव्य खंड ।
अठारह हजार अनूप श्लोक,
अमृत स्वरिका धार प्रचंड ।
वेदव्यास जी अतुल्य लेखनी,
श्रवण पठन दुःख कष्ट अंता ।
श्रीमद्भागवत,साक्षात भगवंता ।।

वेद उपनिषद परा शीर्ष महत्ता,
भव सागर पार मूल मंत्र ।
वैष्णव जन पर्याय धन संपदा
मुकुट पौराणिक संहिता तंत्र ।
ज्ञानी चिंतन संत मनन भक्त वंदन,
मानस जीवन सदा जयंता ।
श्रीमद्भागवत,साक्षात भगवंता ।।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी

हर कदम, दिव्य भव्य राष्ट्र निर्माण की ओर

सुशोभित लोकतंत्र शीर्ष पद,
हिंद रज रज सादर नमन ।
नव आशा नवल अभिलाषा,
नवल धवल राष्ट्र सेवा वंदन ।
उर भाव वसुधैव कुटुंबकम्,
मानवता उत्थान प्रयास पुरजोर ।
हर कदम, दिव्य भव्य राष्ट्र निर्माण की ओर ।।

समग्र विकास सर्व उन्नति,
दृढ़ संकल्प परम ध्येय ।
अखंड धर्म कर्म साधना,
सनातनी स्वर मृदुल गेय ।
सबका साथ सबका विकास,
मूल मंत्र अथाह अपनत्व छोर ।
हर कदम, दिव्य भव्य राष्ट्र निर्माण की ओर ।।

सकारात्मक सोच अथक परिश्रम,
हर क्षेत्र सफलता पर्याय ।
विज्ञान प्रौद्योगिकी रक्षा सह,
परा विरासत समृद्धि प्रदाय ।
पुनः प्रतिष्ठित विश्व गुरु छवि,
संचेतना सबल नेतृत्व भोर ।
हर कदम, दिव्य भव्य राष्ट्र निर्माण की ओर ।।

योजना क्रियान्वन पारदर्शिता,
सर्वत्र अनूप सुशासन झलक ।
विचार तरंगिनी सात्विक प्रवाह,
सदा दर्शित नवाचारी ललक ।
स्वप्न ओजस्वी विकसित राष्ट्र ,
हिंद स्वाभिमान नित शीर्ष ठोर ।
हर कदम, दिव्य भव्य राष्ट्र निर्माण की ओर ।।

श्री मद्भागवत

शब्द अर्थ अति उत्तम,भाव सारे अनुपम हैं

तीन सौ पैंतीस दिव्य अध्याय,
बारह प्रेरणा पुंज स्कंध ।
अठारह हजार भव्य श्लोक ,
श्री कृष्ण प्रेम आनंद बंध ।
कथा श्रवण शुभ मंगल,
सौभाग्य उदयन प्रक्रम हैं ।
शब्द अर्थ अति उत्तम,भाव सारे अनुपम हैं ।।

हिंद वांग्मय मुकुटमणि प्रभा,
संपूर्ण वेदांत सार सरिता ।
पटाक्षेप उग्र आवेश मूल,
मनुज चरित्र उन्मुख नमिता ।
प्रसंग दैनिकचर्या समावेशी,
परिवेश अठखेलियां सिंघम हैं ।
शब्द अर्थ अति उत्तम,भाव सारे अनुपम हैं ।।

परित्राण बिंदु सहज सरस,
सुख समृद्धि वैभव वृष्टि ।
सद्गुण सदाचार श्री वंदन,
स्नेह वत्सल आगार दृष्टि ।
कल्प वृक्ष सम ओज उपमा,
कन्हाई स्तुत सरगम हैं ।
शब्द अर्थ अति उत्तम,भाव सारे अनुपम हैं ।।

पारिवारिक सुख शांति सागर,
सनातन धर्म संस्कृति विश्वकोश ।
अमिय धार मानवता उत्संग ,
अंतःकरण महा शुद्धि परितोष ।
विमल मन स्थिर चितवन संज्ञा,
माध्य साध्य खुशियां रिदम हैं ।
शब्द अर्थ अति उत्तम,भाव सारे अनुपम हैं ।।

राष्ट्रीय अभियंता दिवस

प्रगति के रंग,अभियांत्रिकी के संग

हिंद धरा स्मृत पट सुशोभित,
एम. विश्वेश्वरय्या अहम यौगदान ।
बांध जलाशय जल विद्युत क्षेत्र,
शीर्ष प्रौद्योगिकी समाधान ।
उर अभिलाष राष्ट्र निर्माण,
सर्वत्र खुशियां उत्साह उमंग ।
प्रगति के रंग,अभियांत्रिकी के संग ।।

कर्म साधना प्रेरणा पुंज,
व्यक्तित्व अथाह सदाचारिता ।
आदर्श जीवन नैतिक चरित्र,
अनुशासन सह शिष्टाचारिता ।
मानवीय मूल्य सतत रक्षा,
संस्कृति संस्कार अनूप कंग ।
प्रगति के रंग,अभियांत्रिकी के संग ।।

पंद्रह सितंबर अठारह इकसठ,
मैसूर कर्नाटक अवतरण ।
शिक्षा दीक्षा अनंत मेघा ,
उच्च विचार कृतित्व संचरण ।
अभियंता पद सेवा काज,
दूरदर्शिता वैचारिकी उत्संग ।
प्रगति के रंग,अभियांत्रिकी के संग ।।

शुभ वर्ष उन्नीस सौ पचपन,
अलंकृत भारत रत्न सम्मान ।
सतत उन्नीस सौ अड़सठ जन्म दिन,
शोभित अभियंता दिवस पहचान ।
उपमा आधुनिक विश्व कर्मा,
समग्र विकास मस्त मलंग ।
प्रगति के रंग,अभियांत्रिकी के संग ।।

अपनी हिंदी सदा सुहागन

पुनीत पावन ममत्व आभा,
राष्ट्र धरा अप्रतिम शान ।
राज भाषा परम पदवी,
नित्य अभिरक्षक स्वाभिमान ।
सहज सरल शब्द अर्थ भाव,
अंतर बिंदु चिन्मयता जागन।
अपनी हिंदी सदा सुहागन ।।

शिक्षण अधिगम सुबोधन,
संवाद संप्रेषण अनूप माध्य ।
चितवन अविरल स्नेह धार,
स्तुति व्यंजना सदृश आराध्य ।
राष्ट्र प्रेम मनोरम ज्योति ,
रज रज अपनत्व बिछावन ।
अपनी हिंदी सदा सुहागन ।।

अंतःकरण नव रस छंद ,
देशज विदेशज निमज्जित ।
समता ममता भाव तरंगिणी,
सर्व भाषा प्रीत सुसज्जित ।
मधुर चारु नवगीता उपमा,
मोहक नव यौवनी श्रृंगार आंगन ।
अपनी हिंदी सदा सुहागन ।।

बिंदी शोभा विश्व चंद्रिका,
मुख मंडल अथाह कांति ।
सर्व धर्म समभाव नायक ,
नित अग्र कदम प्रेम शांति ।
मानवता उत्थान शीर्ष ध्येय ,
कामना सर्वत्र आनंद मनभावन ।
अपनी हिंदी सदा सुहागन ।।

वीर तेजाजी महाराज

गौ रक्षा के सरताज, वीर तेजाजी महाराज

प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व कृतित्व,
शिव शंकर ग्यारहवें अवतार ।
अवतरण बिंदु खरनाल नागौर ,
उर अविरल साहस शौर्य धार ।
शोषित पीड़ित निर्धन किसान हित,
सदा अग्र कदम कर बुलंद आवाज ।
गौ रक्षा के सरताज,वीर तेजाजी महाराज ।।

मात पिता ताहर जी रामकुंवरी ,
प्रिया पेमल भगिनी राजल।
अलौकिक घोड़ी लीलण,
विरुद्ध धर्म जाति काजल ।
राजस्थान छह सिद्धों अंतर गिनती,
नित्य तत्पर नैतिक उत्थान काज ।
गौ रक्षा के सरताज,वीर तेजाजी महाराज ।।

बहन ससुराल गमन बेला,
अवगत लाछा गुर्जरी गौ चोरी ।
गौ खोज हेतु जंगल प्रस्थान ,
भासक नाग बना राह रोड़ी ।
विनय प्रार्थना सर्प समक्ष ,
पुनः मिलन वचन अंदाज।
गौ रक्षा के सरताज,वीर तेजाजी महाराज।।

घोर मुठभेड़ डाकुओं संग,
गौ मुक्ति अथक प्रयास ।
तत्पश्चात भासक सम्मुख,
नाग असहमत दर्श घायल दास ।
अंत जिह्हा बिंदु दंश सहन,
तेजल शोभित लोक देवता ताज ।
गौ रक्षा के सरताज,वीर तेजाजी महाराज ।।

बाबा राम देव मंदिर

अश्व धोक संग,अलौकिक ज्योत चमत्कार

शेखावाटी स्वर्ण नगरी नवलगढ़,
छटा अद्भुत अनुपम विशेष ।
अति कृपा नगर सेठ बाबा रामदेव,
रज रज मंदिर अनुपमा अधिशेष ।
सुबह शाम आरती दर्शन मनोरमा,
भाद्रपद दशमी लक्खी मेला साकार ।
अश्व धोक संग,अलौकिक ज्योत चमत्कार ।।

मेला पूर्व दिवस भाद्रपद नवमी,
परा परंपरा उत्साह अथाह ।
श्वेत ध्वज वाहक अश्व धोक,
जनमानस साक्षात गवाह ।
उत्सविक उमंग नगर परिध,
मेला श्री गणेश दिव्य आधार ।
अश्व धोक संग,अलौकिक ज्योत चमत्कार ।।

वात्सरिकी ज्योत भव्य दर्शन,
सदैव मंगल शुभकारी ।
सुख समृद्धि मय जीवन पथ,
दुःख कष्ट पीड़ा उपचारी ।
अहो भाग्य दर्शन प्रसाद ,
बाबा महिमा अपरम्पार ।
अश्व धोक संग,अलौकिक ज्योत चमत्कार ।।

अनंत नमन बाबा रामदेव जी,
मेला उत्संग मोहक नजारा ।
लोक रंग अट्टहास अठखेलियां ,
अविरल सरस कौमी एकता धारा ।
खान पान मनोरंजन पसंद क्रय ,
मेलार्थी आभा आनंद अपार ।
अश्व धोक संग,अलौकिक ज्योत चमत्कार ।।

राधा कृष्ण प्रेम अनंत

राधा कृष्ण प्रेम अनंत,बांसुरी की धुन पर

अलौकिकता परम स्पंदन,
उरस्थ पुनीत कामनाएं ।
आशा उमंग उल्लास अथाह,
चितवन मृदुल भावनाएं ।
प्रति आहट स्वर मधुरिम ,
दिव्य स्वप्न माला बुन कर ।
राधा कृष्ण प्रेम अनंत,बांसुरी की धुन पर ।।

हर पल विमल अभिलाष,
मिलन हेतु सौम्य तत्पर ।
मुस्कान वसित भव्य छवि,
अपार अखंड विश्वास परस्पर ।
चाहना तृषा असीम अनूप,
हृदय पटल तृप्ति गुन असर ।
राधा कृष्ण प्रेम अनंत,बांसुरी की धुन पर ।।

परिवेश बयार आनंदिका,
नैसर्गिक दृश्य मनमोहक ।
संसर्ग विचार पीठिका,
सृजन सृष्टि सदैव रोहक ।
अंतर बिंदु कमनीय स्पर्श,
मोहक मृदु गीत सुन कर ।
राधा कृष्ण प्रेम अनंत,बांसुरी की धुन पर ।।

जन्म जन्मांतर सहगम अनुबंध,
रग रग दैविक आभा व्याप्त ।
आह्लाद जीवन सुपर्याय भाषा,
सर्वत्र खुशियां विलुप्त संताप ।
श्री विष्णु लक्ष्मी अंतरंग तरंग,
अति आनंद प्रीत प्रतीक्षा चुन कर ।
राधा कृष्ण प्रेम अनंत, बांसुरी की धुन पर ।।

कृष्ण प्रिया राधा रानी

कृष्ण प्रिया राधा रानी, प्रेम भक्ति करुणा सागर

मृदुल मधुर नेह मनोरमा,
साक्षात लक्ष्मी अवतार ।
पर्याय कान्हा स्त्री रूप,
अंतर शक्ति परम आधार ।
हर कदम गोपाल सानिध्य ,
आध्यात्म मैत्री अभिजागर ।
कृष्ण प्रिया राधा रानी,प्रेम भक्ति करुणा सागर ।।

सफलता समृद्धि पूर्णता संग,
अथाह वैभव संज्ञा संबोधन ।
भू देवी सरित विराजा पद,
अलौकिक ओज अवबोधन ।
राधिका किशोरी माधवी ,
केशवी श्री जी उपमा आदर ।
कृष्ण प्रिया राधा रानी,प्रेम भक्ति करुणा सागर ।।

मात पिता वृषभानु कीर्ति,
अवतरण रावल पुनीत धरा ।
अप्रतिम साधना फल मातु ,
कमल प्रसून पट सौम्य भरा ।
कन्हाई प्रीत रीत बरसाना ,
सृष्टि पटल अथाह उजागर ।
कृष्ण प्रिया राधा रानी,प्रेम भक्ति करुणा सागर ।।

मंत्रमुग्ध दर्श श्याम छवि ,
भाव विभोर सुन बांसुरी ।
प्रीति पराकाष्ठा शीर्ष उत्तम,
हर्षित गर्वित त्रिलोक धुरी ।
मुखार बिंद जप राधे राधे ,
अनंत कृपा वृष्टि अनूप गागर ।
कृष्ण प्रिया राधा रानी,प्रेम भक्ति करुणा सागर ।।

गिद्दों की बुरी नजरें

गिद्दों की बुरी नजरें, तोड़ रहीं स्नेह की लड़ियां

मानव अंतर दानव रुप,
वासनामय आचार विचार ।
भोग तृप्ति उत्कंठा हित,
अबला शील पर प्रहार ।
जीर्ण शीर्ण जीवन ज्योत,
टूट रहीं मानवता कड़ियां ।
गिद्दों की बुरी नजरें,तोड़ रहीं स्नेह की लड़ियां ।।

अंध भौतिक विकास कारण,
परिवर्तित जीवन परिभाषा ।
स्वच्छंद दिनचर्या व्यवहार,
पाश्विक भोग अभिलाषा ।
कुदृष्टि नारी तन मन पर ,
सहमी सी आज हर गुड़िया ।
गिद्दों की बुरी नजरें,तोड़ रहीं स्नेह की लड़ियां ।।

चल चित्र हो या विज्ञापन,
नारी अंग अवांछित प्रदर्शन ।
अति प्रोत्साहन अश्लीलता ,
वस्तु सम श्रृंगार दर्शन ।
परिवेश पट कामुकता अथाह ,
प्रयोग प्रभाव सदृश विष पुड़िया ।
गिद्दों की बुरी नजरें,तोड़ रहीं स्नेह की लड़ियां ।।

अभिवृद्धित दुष्कर्म घटनाएं ,
अति गंभीर सोचनीय बिंदु ।
दिशा दशा प्रकृति विपरित,
जीवन रूप अनैतिकता सिंधु ।
मुरझा रहीं नव कलियां आज,
सिसक रहीं सारी फुलझड़ियां ।
गिद्दों की बुरी नजरें,तोड़ रहीं स्नेह की लड़ियां ।।

नेह मकरंद

मन गंगा सा निर्मल पावन,
निहार रहा धरा गगन ।
देख सौम्य काल धारा,
निज ही निज मलंग मगन ।
कर सोलह श्रृंगार कामनाएं,
आतुर प्रीत पल चंद पाने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।

नवल धवल कायिक आभा,
स्नेहिल मृगनयनी दृष्टि ।
प्रसूनी बहार परिवेश उत्संग,
असीम चाह ज्योत्सना वृष्टि ।
मंत्रमुग्ध अंतरतम भावनाएं,
दिव्य मिलन सुगंध फैलाने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।

आशा उत्साह जोश उमंग,
अंतर्मन अथाह संचरण ।
प्रीति अनुबंधित पथ गमन,
खुशियां अनंत अवतरण।
अतरंगी तिमिर अवसानित,
अनुपम प्रकाश रंद सजाने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।

विखंडित वैमनस्य वैर भाव ,
अखंड यशस्वी प्रेम पथ ।
प्रणय उपमित अनुभूति,
आनंद पर्याय जीवन रथ ।
घट सुरभित स्वर लहरी,
हाव भाव मंद मंद मुस्काने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।

गणेश चतुर्थी

शिवजी ने दिया गणेश को,प्रथम पूज्य वरदान

देव लोक पटल सदा अग्र ,
गणपति पावन आराधना ।
कर्म धर्म शुभारंभ माध्य,
साध्य पूर्ण मनोकामना ।
सद्बुद्धि अधिष्ठाता उपमा,,
सृष्टि अंतर पहला ध्यान ।
शिवजी ने दिया गणेश को,प्रथम पूज्य वरदान ।।

महादेव श्री गणेश मध्य,
जब हुआ नैतिक युद्ध ।
कर मतंग शीश रोपण,
वचन परिध सह प्रतिबद्ध ।
पाकर अलौकिक रूप श्रृंगार,
मिला अप्रतिम मान सम्मान ।
शिवजी ने दिया गणेश को,प्रथम पूज्य वरदान ।।

देवाधिदेव गजानन अनुपम,
नित्य रिद्धि सिद्धि प्रदायक ।
पवित्रक भव्य स्वामी पद,
आदि देव शोभा विनायक ।
देवताध्यक्ष परम पदवी पर,
घोषित करते शुभता फरमान ।
शिवजी ने दिया गणेश को, प्रथम पूज्य वरदान ।।

धूम्रकेतु अनुपमा एकदंत,
राहु दृष्टि शुभ समाधान ।
धर गणपति दिव्य स्वरूप ,
सर्वजन भरपूर संभाल विधान ।
चंद्रदोष त्वरित निवारण कर,
अनंत खुशियां करते प्रदान ।
शिवजी ने दिया गणेश को,प्रथम पूज्य वरदान ।।

हरतालिका तीज

मां पार्वती धन्य हुई, महादेव सा वर पाकर

हिमराज पुत्री संकल्प पथ,
पुनीत अनुपम निराला ।
चाहत छवि अंतर वसित ,
शिव शंकर त्रिनेत्र वाला ।
त्रिपुरारी वरण कामना हित,
अखंड जप तप वन जाकर ।
मां पार्वती धन्य हुई ,महादेव सा वर पाकर ।।

शिव शिव जाप स्वर संग,
ब्रह्मांड अथाह गूंजित ।
उरस्थ शुभ मंगल धार,
शब्द अर्थ शिव सिंचित ।
सप्तऋषि वृंद अति पुलकित,
मां गौरा परीक्षा उत्तीर्ण कराकर ।
मां पार्वती धन्य हुई ,महादेव सा वर पाकर ।।

स्नेहिल मार्गदर्शन कैलाशी,
पर मां अडिग प्रतिज्ञा बिंदु ।
परस्पर तुलना आकलन ,
विनय पुनर्विचार प्रज्ञा सिंधु ।
पर उत्तम उत्तर पा हर ,
मुस्कराए भोला सा मुंह बनाकर ।
मां पार्वती धन्य हुई, महादेव सा वर पाकर ।।

विविधायामी भव्य श्रृंगार सह,
अद्भुत अनूप बारात प्रबंधन ।
समदृष्टि रख जीव जगत,
अलौकिक आनंद स्पंदन ।
गगन भाव पुष्प वृष्टित ,
देवता गण संग खुशियां मनाकर ।
मां पार्वती धन्य हुई, महादेव सा वर पाकर ।।

शिक्षक चालीसा

कोटि कोटि नमन वंदन,देव तुल्य अनूप छवि ।
कर्म क्षेत्र नित्य पुनीत,ओज अनुपमा सम रवि ।।

निर्मल पावन अंतर बिंदु,ज्ञान प्रदान शीर्ष ध्येय ।
मिटा सघन तिमिर रेखा, सृजित भाव अजेय ।।

ऊर्जस्वित कदम चाल, भाव भंगिमा प्रेरणा पुंज ।
स्वच्छ स्वस्थ आचार विचार,सात्विकता निकुंज ।।

सदाचारी जीवन शैली,अनुशासित सौम्य व्यवहार।
प्रकृति संग अथाह नेह, आदर्श युक्त चरित्र श्रृंगार ।।

सहज शिक्षण विधाएं, समावेशी सरस नवाचार ।
वंदना निज संस्कृति ,साधक मर्यादा सुसंस्कार ।।

परम नैतिक भूमिका, नवल धवल राष्ट्र निर्माण ।
अविचल संघर्ष पथ,बाधा समस्या मूल निर्वाण ।।

सजग प्रहरी भारती गौरव, रक्षक देश स्वाभिमान ।
जागृत सुषुप्त जनमानस, नूतन चेतना आह्वान ।।

संचरण आशा उमंगी भाव,नैराश्य वैमनस्य विलोपन ।
संबंध अंतर अपनत्व ,स्पंदक स्नेह अथाह लोचन ।।

मिलनसार मृदु भाषी, परिधान सात्विकता संदेश ।
गमन प्रकृति आंचल,संरक्षित संकल्प प्राणी संजेश ।।

स्नेहिल प्रबोधन हर क्षेत्र ,विज्ञान वाणिज्य कला ।
सरल क्लिष्ट अवधारणाएं ,ध्येय जीव मात्र भला ।।

परिवार समाज विकास हित,शिष्यवृंद उर चेतना ।
कर्म वचन भेद रहित,परिवेश प्रति अनंत संवेदना ।।

सतत प्रयास अनुपालन, विधि संहिता संविधान ।
अधिकार पूर्व कर्तव्य ,समग्र प्रगति आह्वान ।।

आदर सम्मान ,परा ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत ।
मत शक्ति उत्तम प्रयोग,कामना जन हितैषी सियासत ।।

निजी सार्वजनिक जीवन,भव्य अभिप्रेरणा ओतप्रोत ।
पर हित विमल भावनाएं हृदय पटल करुणा ज्योत ।।

शुद्ध सात्विक आहार विहार,आरोग्यता आनंद कल्प ।
संयमित भाव तरंगिनी ,उन्मुख श्रमेव जयते प्रकल्प ।।

उत्थान निर्धन शोषित वर्ग,प्रोत्साहन नारी शक्ति वंदन ।
जन्म धरा अति प्रिय,उत्संग सौहार्द सुरभि सम चंदन ।।

सर्व धर्म समभाव छटा ,आस्था भक्ति मनोरम धारा ।
दूर जाति धर्म क्षेत्र विभेद, बुलंद एकता भाईचारा ।।

तज संकीर्ण वैचारिकी,आत्मसात सकारात्मक सोच ।
परस्पर संबंध अंतरंग ,संवाद संप्रेषण मनहर लोच ।।

अंतःकरण तरंग कोमल,आराधना आराध्य मनोरम ।
विमल वाणी ओज पुंज, साध्य ज्योतिर्मय अंतरतम ।।

सहर्ष प्रौद्योगिकी स्वीकार्यता,सर्व कल्याण शुभ भावना ।
हिंद शोभित विश्व गुरु पदवी,फलीभूत तिरंगी कामना ।।

शिक्षक चेतना की नव ज्योत

मृदुल मृदु विमल वाणी,
श्री चरण कमल वरदान ।
कृत कृत्य श्रेष्ठ उपमा,
हृदय पुनीत संधान ।
दर्शन दिव्य दीप्त आभा ,
सुषुप्त सौभाग्य न्योत ।
शिक्षक चेतना की नव ज्योत ।।

उर तरंग पावन झंकार,
अलस सदा अति दूर ।
शोभित मन मुकुलिका,
बसंती आभा भरपूर ।
मुदित मगन अंतर्मन,
यथार्थ संगीत स्वर पोत ।
शिक्षक चेतना की नव ज्योत ।।

शांति शीतलता सरसता,
अनंत तृप्ति प्रीति कारक ।
सकारात्मक नैतिक सोच,
समस्या जड़ मूल निवारक ।
शिक्षण अधिगम बोधगम्य,
विधा शैली विद्यार्थी ओतप्रोत ।
शिक्षक चेतना की नव ज्योत ।

वाणी वेणु श्रवण चिंतन मनन,
नैतिकता मोहक श्रृंगार ।
संस्कृति सुसंस्कार मर्यादा,
सदाहित अपनत्व आगार ।
राष्ट्र वंदन मानवता स्तुति,
सुखद भविष्य निर्माण श्रोत ।
शिक्षक चेतना की नव ज्योत।।

नारी शक्ति वंदन

खुशियां भी खुश हो रहीं,नारी शक्ति वंदन से

परम माध्य सृष्टि सृजन,
परिवार समाज अनूप कड़ी ।
सदा उत्सर्गी सोच व्यंजना,
पर आनंद हित सावन झड़ी ।
संस्कृति परंपरा शीर्ष बिंदु,
धर्म आस्था संस्कार मंडन से।
खुशियां भी खुश हो रहीं,नारी शक्ति वंदन से ।।

मृदुल मधुर अंतर भाव,
नैसर्गिकता अंग प्रत्यंग ।
मिलनसारी विमल व्यवहार,
मुख मंडल मुस्कान उमंग ।
विनम्रता सामंजस्यता अद्भुत,
द्वि कुल शोभा अभिनंदन से ।
खुशियां भी खुश हो रहीं,नारी शक्ति वंदन से ।।

अज्ञानवश जनमानस भ्रमित,
दृष्टि पात मात्र सुडौल तन ।
वासना मय आचार विचार,
कुंठित मानसिकता रमन ।
पुरुष प्रधान समाज अहंकारी,
अबला शील समर्पण स्पंदन से ।
खुशियां भी खुश हो रहीं,नारी शक्ति वंदन से ।।

महिला शक्ति प्रतिभा अनुपम,
हर क्षेत्र अग्रणी भूमिका ।
शिक्षा विज्ञान खेलकूद गृह,
नित वंदित कीर्तिमानी तूलिका ।
स्नेहगार दया उद्गम स्थल,
अदम्य साहस अनैतिकता खंडन से।
खुशियां भी खुश हो रहीं,नारी शक्ति वंदन से ।।

रानी सती दरबार

आनंद की पराकाष्ठा,रानी सती दरबार में

वीर प्रसूता धरा झुंझुनूं उत्संग,
सुशोभित मां सती पावन धाम ।
भाद्रपद अमावस्या वार्षिक पूजन,
धन्य जनमानस कर कोटि प्रणाम ।
रज रज रग रग हर्षित गर्वित,
धर्म आस्था प्रबल बहार में ।
आनंद की पराकाष्ठा,रानी सती दरबार में ।।

प्रबुद्ध प्रवासी स्थानीय जन,
पुनीत दर्शन कर भाव विभोर ।
स्मृति पटल मां गौरव गाथा,
अलौकिक स्पंदन चारों ओर ।
लोकरंग कलियां अति मनोरम,
नारायणी स्नेह प्रेम दुलार में ।
आनंद की पराकाष्ठा, रानी सती दरबार में ।।

छह दिसंबर बारह सौ पिच्चानवें,
श्री सतीत्व दिव्य भव्य बेला ।
आन बान शान अभिरक्षा हित,
साहस शौर्य श्रृंगार नवेला ।
महाभारत काल श्री कृष्ण वरस्थ,
अर्धांगिनी धर्म वंदना संसार में ।
आनंद की पराकाष्ठा,रानी सती दरबार में ।।

ग्रामीण शहरी मिश्रित आभा,
सर्वत्र असीम खुशियां उल्लास ।
शुभ मंगल वात्सरिकी आराधना,
अंतःकरण मां प्रेरणा पुंज इतिहास ।
अशेष नमन दादी जीवन वृत्त,
महिमा स्तुति संस्कृति संस्कार में ।
आनंद की पराकाष्ठा,रानी सती दरबार में ।।

जीवन के रंग,ए.आई.के संग

वर्तमान विज्ञान प्रगति प्रयास,
मनुज दिव्यता प्रतिस्थापन ।
यंत्रवत परिवर्तन उपमा,
तीव्रता शुद्धता कार्य संपादन ।
लघु काल लाभ आधिक्य,
सकारात्मक प्रयोग मानव कंग ।
जीवन के रंग,ए.आई .के संग ।।……

जॉन मैकार्थी प्रतिपादक ,
उन्नीस सौ छप्पन अमेरिका ।
स्वदेश प्रणेता राज रेड्डी,
विज्ञान वरदान स्वरिका ।
स्नेहिल कदम आलोक पथ,
समस्या हल सह उत्साह उमंग ।
जीवन के रंग,ए.आई.के संग ।।……

सतत सीमित स्मृति मन सिद्धांत,
आत्म जागरूक अनूप चार प्रकार ।
प्रश्न समझ अधिग्रहण अन्वेषण,
प्रस्तुति मूल्यांकन चरण आधार ।
न्यून श्रम दक्षता अभिवृद्धि,
वंदन सेवा मानवता उत्संग ।
जीवन के रंग,ए.आई.के संग ।।…….

नीरसता श्रृंगार सरस रूप,
काम काज सक्रियता दर्शन ।
औद्योगिक क्रांति कल्पनातीत,
अद्यतन प्रौद्योगिकी आनंद स्पर्शन ।
चिकित्सा अभियांत्रिकी शिक्षा क्षेत्र,
मनोरंजन बिंदु सम मस्त मलंग ।
जीवन के रंग,ए.आई .के संग ।।…….

मनुज आविर्भाव अद्भुत,
कृत्रिम बुद्धिमत्ता छद्म रूप ।
भावनाहीन संश्लेषण विश्लेषण,
वैचारिक शून्यता प्रतिरूप ।
नियोजन अवसर संकुचन,
विलोपन संवेदना पुरुषार्थ पंग ।
जीवन के रंग,ए.आई.के संग ।।……

नारी अंग प्रत्यंग

नारी अंग प्रत्यंग ,कमनीयता पर्याय

मुखमंडल शोभित मुस्कान,
दृष्टि अंतर नेह सरिता ।
हावभाव मस्त मलंग ,
वक्ष प्रभा अमिय अनिता ।
चाल ढाल चैतन्य स्फूर्त,
सौंदर्य बिंब संसर्ग अध्याय ।
नारी अंग प्रत्यंग, कमनीयता पर्याय ।।

हिय प्रियल परिधान,
आत्मिकता चरम बिंदु ।
सरस सरल वैचारिकी,
शर्म संकोच नैसर्गिक सिंधु ।
रूप अनुपमा सम्मोहिनी,
सहज मिलन अवसर प्रदाय ।
नारी अंग प्रत्यंग,कमनीयता पर्याय ।।

बिंदी सिंदूर श्रृंगार अहम,
चूड़ी पायल मधुर खनक ।
अधर पर्याय तृषा तृप्ति,
शब्द संकेत खुशियां जनक ।
पुरात्तन संग अधुना समन्वय,
शिक्षा संग आत्मविश्वास झलकाय ।
नारी अंग प्रत्यंग, कमनीयता पर्याय।।

शील सह मर्यादा ओज,
निर्वहन नैतिक संस्कार ।
व्रत उपासना भाव तरंगिनी ,
धर्म आस्था पथ साकार ।
सृष्टि संचलन शक्ति भक्ति,
जीवन उपमित सृजन संकाय ।
नारी अंग प्रत्यंग, कमनीयता पर्याय।।

फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान

कंटक पथ संघर्ष अथाह,
समय चक्र विपरीत गति ।
हर कदम उपेक्षा तिरस्कार,
दिग्भ्रमित सी मनुज मति ।
दूर दूर तक कर्ण प्रिय ,
किंचित नहीं मधुर गान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।

जीवन डगर पर नहीं,
जब कोई सच्चा मित्र ।
अनुपम भाव विलोपन,
धुंधले सम सारे चित्र ।
सदाचार मार्ग पर भी चाहे,
मिल रहा हो खूब अपमान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।

जब संकट मेघ आच्छादित,
विचरण परिध चारों ओर ।
क्रोध घृणा वैमनस्य अनंत,
नैराश्यता परिपूर्ण हो भोर ।
घोर परिश्रमी तपिश पर भी,
अधूरे रहें सारे अरमान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।

जब पग पग दिखता हो,
सत्य थोड़ा परेशान ।
धर्म कर्म नैतिक राह पर ,
घट रही हो मनुज शान ।
भौतिक चकाचौंध कारण,
वंचित रहे योग्यता पहचान ।
फिर भी चेहरे पर हो मुस्कान ।।

लौट रहीं वासनाएं

नेह की दहलिज से,लौट रहीं वासनाएं

तन मन विमल मृदुल,
मोहक अनुपम श्रृंगार ।
पूर्णता बन संपूर्णता ,
रिक्तियां सकल आकार ।
भोग पथ परित्याग पर,
अभिस्वीकृत योग कामनाएं ।
नेह की दहलीज से,लौट रहीं वासनाएं ।।

चाह दिग्भ्रमित राह पर,
सघन तिमिर आच्छादित ।
निज स्वार्थ प्रभाव क्षेत्र,
सोच विचार विमंदित ।
दमन चक्र दामन पर,
आहत होने लगीं भावनाएं ।
नेह की दहलीज से ,लौट रहीं वासनाएं ।।

नयनन भाषा पटल,
कामुकता अति दूर ।
नैतिकता स्नेह आलिंगन,
पाश्विक मूल चकनाचूर ।
चिंतन मनन लघुता पर,
दम तोड़ रहीं कल्पनाएं ।
नेह की दहलीज से,लौट रहीं वासनाएं ।।

अंतर्मन कालिख छवि,
अब विलुप्ति कगार ।
मद मस्त वाहिनियां,
प्रसुप्त जीवन आधार ।
यथार्थ दिव्य स्पंदन पर,
सज रहीं मिलन अल्पनाएं।
नेह की दहलीज से,लौट रहीं वासनाएं ।।

बाबा मालकेतु

आस्था के प्रसून खिलें हैं ,अरावली की कंदराओं में

शेखावाटी हरिद्वार उपमित,
लोहार्गल आकर्षण अद्भुत ।
पाप मोक्ष लक्षित जन मानस,
परम उपासना अंतर स्तुत ।
संस्कार परंपराएं अभिवंदन,
सनातन जोश उमंग फिजाओं में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में ।।

रंग बिरंगी संस्कृति वेशभूषा,
ग्रामीण शहरी जीवन मिश्रण ।
नर नारी वरिष्ठ युवा बाल वृंद ,
हृदय आनंद अथाह संचरण ।
गीत भजन संवाद नृत्यों संग,
लोक झंकार मस्त अदाओं में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में।।

निखर बिखर रही खुशियां,
मिट रहा दुःख कष्ट संताप ।
तीर्थ यात्रा भक्ति आराधना ,
धुल रहे मनुज संपूर्ण पाप ।
अनुपम सामाजिक समरसता ,
परिक्रमार्थी सेवा भाव निगाहों में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में।।

गोगानवमी पुनीत पावन बेला ,
चौबीस कोसीय परिक्रमा आरंभ ।
समाज शासन प्रशासन पुलिस,
सहयोग शांति समुचित प्रबंध ।
दर्शन सर्व धर्म समभाव छटा ,
निर्मल हिलोर उर भावनाओं में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में।।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी

द्वापर सी सौरभ से,कलयुग आज सराबोर

अनंत नमन सर्व आकर्षित उपमा,
कर्म ज्ञान भक्ति प्रेरणा पुंज ।
नवनीत सम सांस्कृतिक पटल,
अपरिमित आस्था जन निकुंज ।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी अनूप,
कान्हा जन्मोत्सव तैयारी पुरजोर ।
द्वापर सी सौरभ से,कलयुग आज सराबोर ।।

लड्डू गोपाल रण छोड़ बिट्ठल,
माघव बनमाली दिव्य नाम ।
नटवर नागर राधावर मुकुंद,
गोविंद केशव छवि अविराम ।
नंदलाल वृंदावन बिहारी सह
एक सौ आठ संज्ञा छोर ।
द्वापर सी सौरभ से, कलयुग आज सराबोर ।।

निर्वहन सहज सरस भूमिका,
नायक प्रेमी योद्धा व मित्र ।
योगी सारथी नीति विशारद ,
धूप छांव स्थितप्रज्ञ चित्र ।
सदा प्रशस्त कर्मयोग पथ ,
हर कदम अधर्म कंदन ओर ।
द्वापर सी सौरभ से, कलयुग आज सराबोर ।।

कान्हा जीवन अनुपमा अद्भुत,
वर्तमान समय अति महत्ता ।
तज नैराश्य वैमनस्य क्रोध ,
नित उन्मुख कर्तव्य सत्ता ।
मनुज सामर्थ्य प्रतिभा अथाह,
पर कर्म स्पंदन सफलता भोर ।
द्वापर सी सौरभ से,कलयुग आज सराबोर ।।

हिंद उत्संग मनोरम नजारा

पर्वतराज मुखमंडल शोभा,
मुकुट दिव्य भव्य कश्मीर।
पंजाब बंगाल सुदृढ़ स्कंद,
नयनन पावन सम गंगा नीर ।
पश्चिमी घाट जैव विविधता ,
पूर्वी नियंत्रण जल पसारा ।
हिंद उत्संग मनोरम नजारा ।।

कन्या कुमारी चरण बिंब,
पग साधक हिंद महासागर ।
ह्रदय स्थल चंदन सुरभि,
रज रज साहस शौर्य गागर ।
अर्पण तर्पण अठखेलियों संग,
परिवेश मस्त मलंग सारा ।
हिंद उत्संग मनोरम नजारा ।।

कंकर कंकर उपमा शंकर ,
बिंदु बिंदु भागीरथी जल ।
स्वाभिमान रक्षा परम ध्येय,
भिन्नता सह एकता सकल ।
सर्व धर्म समभाव वंदित,
अभिनंदित स्नेह प्रेम भाईचारा ।
हिंद उत्संग मनोरम नजारा ।।

इतिहास पटल गर्व व्यंजना,
मार्ग दर्शक संस्कृति संस्कार ।
मर्यादा वसित लोक जीवन,
परंपराएं उत्सविक आधार ।
शिक्षा विज्ञान खेलकूद क्षेत्र,
सदा बुलंद तिरंगी जयकारा ।
हिंद उत्संग मनोरम नजारा ।।

आओ, फिर से दीया जलाएं

जब जनमानस उद्वेलित हो,
अथाह नैराश्य भावों से ।
हिम्मत नतमस्तक होने लगे,
अनंत संघर्षी घावों से ।
तब सकारात्मक सोच संग,
लक्ष्य ओर कदम बढ़ाएं ।
आओ, फिर से दीया जलाएं ।।

जीवन पर मंडराने लगे,
जब काली घटा घनघोर ।
दिशाभ्रमित हों प्रगति राहें,
आत्म विश्वास मंदित ठोर ।
तब आशा उमंग संचरित कर,
सफलता भव्य परचम लहराएं ।
आओ, फिर से दीया जलाएं ।।

जब अभिव्यक्ति पटल पर,
क्रोध समावेशित होने लगे ।
परंपराएं मर्यादाएं संस्कार,
निज अस्तित्व खोने लगे ।
तब सांस्कृतिक अभिरक्षा कर,
अपनत्व परम अहसास कराएं ।
आओ, फिर से दीया जलाएं ।।

जब शासन प्रशासन अंतर,
भ्रष्टाचार मुंह बोल रहा हो ।
पूरा तंत्र सही गलत तथ्य,
एक तराजू पर तोल रहा हो ।
तब प्रखर विरोध स्वर संग,
राष्ट्र सुषुप्त स्वाभिमान जगाएं ।
आओ ,फिर से दीया जलाएं ।।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस

चारु चंद्र की चंचल किरणें, तिंरगे पर मोहित हुईं

हिंद विज्ञानी तपन जपन,
अद्य दिवस सिद्धि ओर ।
चंद्रयान तीन अपार सफलता,
व्योम क्षेत्र कीर्तिमानी भोर ।
धर कदम चंद्र दक्षिणी धुर्वी केंद्र,
प्रथम राष्ट्र छवि शोभित हुईं ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें, तिंरगे पर मोहित हुईं ।।

इसरो सजग अथक प्रयास,
दिव्य भव्य सुफलन बिंदू ।
रूस अमेरिका चीन उपरांत,
चतुर्थ स्थान खुशियां सिंधु ।
हर्षित गर्वित देश पावन धरा,
व्योम अठखेलियां सुरभित हुईं ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें, तिंरगे पर मोहित हुईं ।।

चंद्र यान तीन लैंडिंग अनूप,
अद्भुत अनुपम व विशेष ।
सोम स्पर्श विक्रम लेंडर,
आर्यावर्त पट आनंद अधिशेष ।
प्रज्ञान रोवर परिक्रमा संग,
नव प्रयोग राहें बोधित हुईं ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें, तिंरगे पर मोहित हुईं ।।

तेईस अगस्त दो हजार तेईस,
तिथि मनोरमा ऐतिहासिक ।
साकार रूप स्वप्न मालाएं,
भाव विभोर सर्व वैज्ञानिक ।
कामना अंतरिक्ष महाशक्ति पद,
देश प्रेम भावनाएं रोहित हुईं ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें, तिंरगे पर मोहित हुईं ।।

देश हमारा

जग की आंखों का तारा,ललित कलित देश हमारा

धरा अंतर सौंधी सुगंध,
अनंत स्नेह प्रेम वंदन ।
अद्भुत मनोरम संस्कृति,
रग रग अपनत्व स्पंदन ।
अतिथि देवो भव मूल मंत्र,
उत्संग अविरल समरसता धारा ।
जग की आंखों का तारा,ललित कलित देश हमारा ।।

अदम्य साहस शौर्य गाथा ,
स्वाभिमान रक्षित इतिहास ।
प्रतिदिन उत्सविक परिवेश,
संघर्ष सह विजित उल्लास ।
सर्व धर्म समभाव सर्वत्र,
नित अंकुरित भाई चारा ।
जग की आंखों का तारा,ललित कलित देश हमारा ।।

विविधता अंतरंग एकता,
जनमानस देशभक्ति सराबोर ।
शिक्षा विज्ञान अग्र कदम,
विकास क्षेत्र सशक्ति भोर ।
नारी जगत खुशियां पर्याय,
घर द्वार प्रगति उजियारा ।
जग की आंखों का तारा,ललित कलित देश हमारा ।।

संबंध शोभा समर्पण भाव ,
मर्यादा संस्कार अनुपालन ।
परा परंपरा अमूल्य विरासत,
अंतःकरण आत्मीयता बिछावन ।
पर्यावरण संरक्षण चेतना अथाह,
वसुधैव कुटुंबकम् वत्सल नारा ।
जग की आंखों का तारा,ललित कलित देश हमारा ।।

आरक्षण पूर्णिमा नहीं,अमावस्या है

जन तरंग पट अकुलाहट,
सर्वत्र जाति धर्म विभेद।
विलापित स्नेह प्रेम भाईचारा,
मंदित मानवता मूल संवेद ।
संकीर्णता जीवन वसित ,
कुंठित कौशल श्रम तपस्या है ।
आरक्षण पूर्णिमा नहीं,अमावस्या है ।।

बाधित नैसर्गिक पथ आभा,
सोच विकास सीमा बंधन ।
अंकुश स्वाभिमानी दिनचर्या,
अल्प लाभ आधिक्य हानि स्पंदन ।
ग्रहण चक्र सम सर्व विकास खुशियां ,
सभ्य राष्ट्र हेतु ज्वलंत समस्या है ।
आरक्षण पूर्णिमा नहीं,अमावस्या है ।।

हर नागरिक स्वदेश धरा,
आदर सम्मान अधिकारी।
संबलन दायित्व शासन तंत्र,
यथोचित अनुग्रह शुभकारी ।
अल्प सहयोग पुरजोर प्रयास,
पर स्थायित्व भंग राष्ट्र व्रतस्या है ।
आरक्षण पूर्णिमा नहीं,अमावस्या है ।।

वर्तमान समय एक्य भाव सह,
गहन समीक्षा चिंतन अहम ।
विकसित राष्ट्र स्वप्न माला बिंदू ,
प्रति व्यक्ति महत्ता प्रगति पैहम ।
प्रतिभा उन्नयन समान अवसर संग
सदा पूर्ण समता समानता मनस्या है
आरक्षण पूर्णिमा नहीं,अमावस्या है ।।

श्री कृष्ण कन्हाई

अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई

भोगवाद स्याह घटाएं ,
आच्छादित चारों ओर ।
क्रूर कंस सम मानव कृत्य,
धुंधली सी जीवन भोर ।
मंदित गुरु गौ सम्मान ज्योत ,
सर्वत्र अबला उत्पीड़न रुलाई ।
अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई ।।

हर कदम सही गलत ,
एक तराजू सह तोल ।
मौन व्रत पर सच्चाई,
बेईमानी प्रखर बोल ।
नैतिकता चीर हरण पर ,
प्रकृति सहमी संकुचाई ।
अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई।।

परिवार समाज संबंध,
अथाह स्वार्थ परिपूर्ण ।
मर्यादा विहीन आचरण,
सद्गुण सदाचार अर्थ अपूर्ण ।
देख पाश्चात्य चकाचौंध,
निज संस्कृति अकुलाई ।
अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई ।।

धर्म आस्था पर प्रहार ,
वासनामय चिंतन मनन ।
पाश्विकता का दामन थाम ,
दानवी राहों पर गमन ।
अब फिर सुदर्शन चक्र धर,
बनो जनमानस परछाई ।
अब तो आओ ,श्री कृष्ण कन्हाई ।।

स्नेह से खिल रही आज कलाई

अंतर्मन अनंत आह्लाद,
मोहक उत्सविक परिवेश ।
शुभ कामना सरित प्रवाह,
बहन बेटी घर द्वार प्रवेश ।
अभिवंदित पावन संस्कार,
संबंध पट अपनत्व तरुणाई ।
स्नेह से खिल रहीं आज कलाई ।।

सनातनी संस्कृति पटल,
मनहर परंपराएं शोभित ।
आत्मिकता अद्भुत अनूप,
रक्षा संकल्प भाव रोहित ।
परम आनंद अप्रतिम बेला,
सर्वत्र खुशियां ओज अरुणाई ।
स्नेह से खिल रही आज कलाई ।।

भगिनी ह्रदय प्रस्फुटित,
भ्राता हित मंगल कामना ।
सुख समृद्धि आरोग्य हेतु,
प्रतिपल घट स्तुत आराधना ।
दृढ़ संकल्पित राह सहोदर ,
प्रदत्त रक्षा वचन निभाई ।
स्नेह से खिल रही आज कलाई ।।

रक्षा बंधन पर्व अद्भुत अनुपम,
अंतर नारी सशक्ति सम्मान संदेश ।
देवलोक भी अति भाव विभोर,
दर्शन कर अथाह प्रीत धरा देश ।
बांध राखी शहीद मूर्तियों पर ,
बहनें हर्षित गर्वित संग रुलाई ।
स्नेह से खिल रही आज कलाई ।।

सीता बनकर देख लिया

सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर

दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं,
नारी दुष्कर्म उत्पीड़न घटनाएं ।
पाश्विक हुआ सामाजिक परिवेश,
सोच अंतर वसित वासनाएं ।
शासन प्रशासन मौन धारण,
पर प्रतिशोध हित हुंकार भर।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।

अनुभूत निज शक्ति सामर्थ्य,
उर स्वाभिमानी ज्योत जला ।
अभय पथ पर गमन कर,
दिखा अबला जलजला ।
जो डाले तन पर कुदृष्टि,
उनके विरुद्ध ललकार धर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।

ज्ञान विज्ञान शिक्षा खेलकूद,
हर क्षेत्र अग्र कदम रख ।
अभिव्यक्त सही गलत स्पर्श ,
फिर भावी परिणाम परख ।
तज शर्म संकोच मर्यादाएं ,
खोज दानव प्रहार अवसर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।

उरस्थ संपूर्ण सृष्टि ओज ,
साहस शौर्य दिव्य सरिता ।
नैतिकता मुख मंडल स्वर,
परिवार समाज भव्य संहिता ।
सदा अभिवंदित नारीत्व प्रभा
सहर्ष हर चुनौती स्वीकार पर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।

सत्य पर सदा विजयी सेहरा

भाग्य विधान सुलेखन,
कंटक पथ पर चलना ।
संघर्ष कर बाधाओं संग,
गिरना उठना व लड़ना ।
बीच मझधार छोड़ते साथी,
प्रतिकूल परिवेश देहरा ।
सत्य पर सदा विजयी सेहरा ।।

निर्दोष पर आलोचना सहन,
शंकर सदृश विष घूंट पीता ।
वहन निराधार लांछन कलंक,
प्रदत्त अग्नि परीक्षा सम सीता ।
जब उंगली उठती चरित्र पर ,
तब उर स्पंदन शौर्य नेहरा ।
सत्य पर सदा विजयी सेहरा ।।

अथक परिश्रम अठखेलियां ,
कारक आशा उत्साह उमंग ।
मैत्री निर्वहन आत्मविश्वास ,
प्रेरणा ज्योत जीवन उत्संग ।
कर्म धर्म आस्था दिव्य कवच ,
शब्द स्वर पट जोश केहरा ।
सत्य पर सदा विजयी सेहरा ।।

असंभवता प्रकृति धूमिल,
संभवता दर्शन चारों ओर ।
परेशानियां मूल अवसान ,
उदय नव स्वाभिमानी भोर ।
अंत सफलता अनूप वरण,
सर्वत्र जीत खुशियां चेहरा ।
सत्य पर सदा विजयी सेहरा ।।

अटल बिहारी वाजपेयी

राष्ट्रवाद अप्रतिम प्रेणता ,
विचार ओजस्वी प्रखर ।
गमन सदा सत्य पथ,
स्वर नैतिक उच्च मुखर ।
सुशासन संग नव ओज,
हिंद लोकतंत्र भाल पर ।
लिखे सदा उच्च आदर्श, राजनीति के कपाल पर ।।

राज काज पारदर्शी रूप ,
अनुपम प्रेरक पहचान ।
संयुक्त राष्ट्र दिव्य उद्बोधन,
अभिवंदित हिंदी शान ।
अमेरिका सह जग नतमस्तक,
परमाणु परीक्षण कमाल पर ।
लिखे सदा उच्च आदर्श, राजनीति के कपाल पर ।।

काव्य आभा अद्भुत अनूप,
सरस मधुर साहित्यिक भाषा ।
शब्द अर्थ भाव श्रृंगार अंतर,
राष्ट्र स्वाभिमान रक्षा अभिलाषा ।
सिंहासन स्वार्थ विमुख विरक्त,
लघुत्तर राजनीति सवाल पर ।
लिखे सदा उच्च आदर्श, राजनीति के कपाल पर ।।

जवान किसान व विज्ञान ,
नित्य प्रदत्त आदर सत्कार ।
निर्वहन सजग विपक्ष भूमिका ,
सत्ता लोक निर्णय आधार ।
स्मरण कर व्यक्तित्व शिखरता,
विश्व गौरव अनुभूत अटल सदृश लाल पर ।
लिखे सदा उच्च आदर्श, राजनीति के कपाल पर ।।

वो फिर लौट के घर ना आए

मात पिता भार्या बच्चे,
उस दिन अति उत्साहित ।
तारीख वार शुभ मंगल,
उर खुशियां समाहित ।
ज्यों ज्यों ढली दोपहरी,
पर देहरी आहट ना पाए।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।

भाई बहिन हर्षित गर्वित,
मित्रों संग सैनिक बखान ।
निहार अग्रज छाया चित्र ,
आतुर तत्पर हार्दिक सम्मान ।
बीत गए सारे प्रतीक्षा पल,
अब दर्शन बिन रहा ना जाए ।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।

गांव चौक पर यार दोस्त,
कर रहे बस का इंतजार ।
फौजी मुख सेना बातें सुनने ,
दिल हो रहे थे बेकरार ।
ठीक समय बस आती देख ,
मन ही मन खूब हर्षाए ।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।

देर शाम सरपंच मोबाइल पर,
मिला अप्रतिम सेना संदेश ।
सीमा रक्षा हित शहादत सुन,
सिहर उठा सारा परिवेश ।
पूरा गांव उमड़ा चौखट पर,
अमर शहीद जयकार लगाए ।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।

आओ, स्वतंत्रता दिवस मनाएं

सर्वत्र सर्व धर्म समभाव छटा,
परस्पर स्नेह प्रेम भाईचारा ।
स्वस्थ स्वच्छ राष्ट्र तन मन,
अविरल सुख समृद्धि धारा ।
अधिकार पूर्व कर्तव्य बोध ,
अंतःकरण नव ज्योत जलाएं ।
आओ, स्वतंत्रता दिवस मनाएं ।

वंदन अभिनंदन निज संस्कृति,
गर्व अनुभूत स्वर्णिम इतिहास ।
निर्वहन मर्यादा परंपरा संस्कार,
संबंध पट माधुर्य उमंग उल्लास ।
शिक्षा संग नैतिक पथ प्रशस्त,
समता समानता भाव जगाएं ।
आओ, स्वतंत्रता दिवस मनाएं ।

तज अंध भौतिक मृग मरीचिका,
प्रौद्योगिकी मानवता हित उपयोग ।
उचित सही मार्गदर्शन युवा पीढ़ी ,
अंकुश नशा मोबाइल अति प्रयोग।
परिवार समाज परिवेश सौहार्द पूर्ण ,
प्रकृति संरक्षण ओर कदम बढ़ाएं ।
🇮🇳आओ, स्वतंत्रता दिवस मनाएं ।

प्रगति गलियारों अंतर सुरभित ,
सदा भारती आन बान शान ।
वसुधैव कुटुंबकम् भाव प्रसार,
पुनः शोभित विश्व गुरु पहचान ।
स्वाभिमान अभिरक्षा देश प्रेम हेतु ,
घर घर प्राण प्रिय तिरंगा फहराएं ।
आओ, स्वतंत्रता दिवस मनाएं ।।

तिरंगी लहरें उठ रहीं,भारती के उत्संग में

मन गंगा सा निर्मल पावन,
निहार रहा धरा गगन ।
देख सौम्य राष्ट्र प्रेम धारा,
निज ही निज मस्त मगन ।
कर उत्सर्गी श्रृंगार कामनाएं,
दृढ़ संकल्पित सेवा उमंग में ।
तिरंगी लहरें उठ रहीं,भारती के उत्संग में ।।

साहस शौर्य बुलंद हौसले,
अपनत्व पूर्ण स्नेहिल दृष्टि ।
सर्व धर्म समभाव छटा,
मृदुल मधुर ज्योत्सना वृष्टि ।
मंत्रमुग्ध अंतरतम भावनाएं,
एकता उद्घोष स्वर संग संग में ।
तिरंगी लहरें उठ रहीं,भारती के उत्संग में ।।

आशा उत्साह जोश हर्ष,
अंतर्मन अथाह संचरण ।
आजादी रक्षा संकल्प सह,
खुशियां अनंत अवतरण ।
अतरंगी तिमिर अवसानित,
आलोक प्रभा सुखद भविष्य कंग में ।
तिरंगी लहरें उठ रहीं,भारती के उत्संग में ।।

विखंडित वैमनस्य वैर भाव ,
अखंड स्नेह भाईचारा ज्योत ।
स्वतंत्रता प्रणय दिव्य अनुभूति,
रज रज आनंद ओतप्रोत ।
पुलकित प्रफुल्लित जनमानस,
मातृभूमि नेह अंग प्रत्यंग में ।
तिरंगी लहरें उठ रहीं, भारती के उत्संग में ।।

अब तो प्रणय स्वीकार कर

अलौकिकता परम स्पंदन,
उरस्थ पुनीत कामनाएं ।
आशा उमंग उल्लास अथाह,
चितवन मृदुल भावनाएं ।
प्रति आहट स्वर मधुरिम,
कल्पना रूप साकार धर ।
अब तो प्रणय स्वीकार कर ।।

हर पल अनंत अभिलाष,
मिलन हेतु सौम्य तत्पर ।
मुस्कान वसित भव्य छवि,
अपार अंध विश्वास परस्पर ।
चाहना तृषा असीम अनूप,
हृदय पटल तृप्ति धार भर ।
अब तो प्रणय स्वीकार कर ।।

परिवेश बयार आनंदिका,
नैसर्गिक दृश्य मनमोहक ।
संसर्ग विचार पीठिका,
सृजन सृष्टि सदैव रोहक ।
अंतर बिंदु कमनीय स्पर्श,
हाव भाव सुरभित बहार पर ।
अब तो प्रणय स्वीकार कर ।।

सप्त जन्म सहगम अनुबंध,
रग रग दैविक आभा व्याप्त ।
आह्लाद जीवन सुपर्याय भाषा,
सर्वत्र खुशियां विलुप्त संताप ।
राधा कृष्णमय अंतरंग तरंग,
दृश प्रीत प्रतीक्षा आभार असर ।
अब तो प्रणय स्वीकार कर ।।

बजरंग लाल जी पारीक “लाल”

कलम सदा सुरभित रही,लोकरंग नेह से

प्रेरणा पुंज व्यक्तित्व कृतित्व,
लेखनी अंतर यथार्थ भाव ।
शब्द आरेख़ लोक संस्कृति,
अर्थ सहज सरस प्रभाव ।
अखंड साहित्यिक तप साधना,
काव्य श्रृंगार नव रस मेह से ।
कलम सदा सुरभित रही,लोकरंग नेह से ।।

अवतरण सौभाग्य नवलगढ़ धरा,
लेखनी विख्यात वैश्विक मंच ।
अनूप सृजन हिंदी सह मायड़ ,
लेखन प्रतिभा परम संच ।
मृदुल मधुर स्वर लहरियां,
गीत संगीत पुनीत देह से ।
कलम सदा सुरभित रही, लोकरंग नेह से ।।

सृजन अनुपमा अद्भुत अनूप,
प्रांत राष्ट्र विराट काव्य छवि ।
भाव विभोर पाठक श्रोता वृंद,
प्रस्तुति कला मनभावन नवि ।
जीवंत शब्द आभा हर विधा,
प्रेम विरह वीर रस लेखनी गेह से ।
कलम सदा सुरभित रही, लोकरंग नेह से ।।

चांद चढियो गिगनार गीत,
जन तरंग अभिन्न अंग ।
उत्साह उमंग जोश सुधा,
आह्लाद पर्याय जीवन उत्संग ।
राजस्थानी साहित्य द्रोणाचार्य,
राष्ट्र जन कवि पदवी अनंत स्नेह से ।
कलम सदा सुरभित रही, लोकरंग नेह से ।।

तुलसीदास जयंती

रामचरितमानस,कलयुग में मोक्ष प्राप्ति द्वार

राम रसायन सद्य: फलदायक,
पर अंतर बिंदू विश्वास ज्योत ।
परम सौभाग्य राम भक्ति अवसर,
चिंतन मनन पठन आनंद श्रोत ।
दिशाभ्रमित जनमानस पटल ,
प्रेरणा पुंज आदर्श मर्यादामय संसार ।
रामचरितमानस,कलयुग में मोक्ष प्राप्ति द्वार ।।

मानस प्रभा अद्भुत मनोरम,
स्पर्श सानिध्य पारस रूप ।
शब्द अर्थ भाव मधुर मृदुल,
हर मनुज तुलसी सम प्रतिरूप ।
दुःख कष्ट पीड़ा पाप हरण,
शीर्ष सेतु अगम निगम सार ।
रामचरितमानस,कलयुग में मोक्ष प्राप्ति द्वार ।।

पूर्ण लौकिक अलौकिक कामनाएं,
समस्त समस्या मूल समाधान ।
ह्रदय पट सद्भाव अभिव्यंजना ,
धर्म कर्म संग राघव आह्वान ।
विमल निश्छल अंतःकरण सह,
निर्मल स्नेह प्रेम सरित धार ।
रामचरितमानस,कलयुग में मोक्ष प्राप्ति द्वार ।।

शोभा उपमा राघवेंद्र महाग्रंथ,
रघुकुल इतिहास अलंकरण ।
मां पार्वती शिव शंकर वंदन,
ज्ञान दीप्ति हरिहर अवतरण ।
साक्षात दर्शन राम सिया हनुमंत,
कल्प वृक्ष सदृश महिमा अपरंपार ।
रामचरितमानस,कलयुग में मोक्ष प्राप्ति द्वार ।।

तिरंगे को निहार

राष्ट्र ह्रदय पुलकित,तिरंगे को निहार

नील गगन शीर्ष पताका,
अंतर शोभित नव संदेश ।
विश्व पटल अनूप अनुपम,
हमारा प्रिय भारत देश ।
केसरिया रंगी आभा संग,
वीरता पराक्रम उत्सर्ग निखार ।
राष्ट्र ह्रदय पुलकित,तिरंगे को निहार ।।

श्वेत वर्णी अप्रतिम शोभा,
शांति सौहार्द परिचायक।
हरित रंग अंतरतम रश्मियां ,
सदा सुख समृद्धि प्रदायक ।
नील वर्ण चक्र अभिलाषा,
सतत प्रगति पथ विहार ।
राष्ट्र ह्रदय पुलकित,तिंरगे को निहार ।।

राष्ट्र ध्वज साक्षात गवाह,
मातृभूमि रक्षा स्वाभिमान ।
परम साक्षी आजादी मंजर,
दर्शक रणबांकुरी बलिदान ।
पुनीत पावन प्रेरणा सानिध्य,
सदैव बुलंद कीर्तिमानी विचार ।
राष्ट्र ह्रदय पुलकित,तिंरगे को निहार ।।

वंदन स्नेह प्रेम भाईचारा,
देश प्रेम जागृति अहम सेतु ।
रक्षित निज गौरव प्रतिष्ठा,
नवगीत हिंद विजय श्री हेतु ।
प्रियल मोहक उपस्थिति सह,
गर्विल हर्षिल शान विसार ।
राष्ट्र ह्रदय पुलकित,तिंरगे को निहार ।।

प्यार होने लगा

प्यार होने लगा, तुम्हें देखकर

अंग प्रत्यंग नव यौवन,
घट पट उमंग लहर ।
संवाद पटल माधुर्य,
अंतर खुशियां महर ।
बारिश बूंदों सम मस्ती,
अपनत्व स्पर्श रेख पर ।
प्यार होने लगा,तुम्हें देखकर ।।

स्वर मधुरिमा रिमझिम,
जीवन उत्सविक अनुपमा ।
हरित श्रृंगार मनोरम,
दुल्हन सा प्रणय रमा ।
रग रग मिलन तरूणाई ,
तृषा तृप्ति सुलेख अधर ।
प्यार होने लगा,तुम्हें देखकर ।।

हिय पटल नेह सरोवर,
अभिव्यक्ति भाव अतरंग ।
शब्द सुरभि चाह ओतप्रोत,
चारु चंद्र सदृश मुस्कान संग ।
निशि दिन रमणीक प्रभा,
छवि वसित उन्मेख पर ।
प्यार होने लगा,तुम्हें देखकर ।।

अति सुरभित मन उपवन ,
विचार तरंगिनी अनुपम ।
चाल ढाल मोहक सोहक,
हाव भाव मंगल उत्तम ।
तन मन मंदिर सा पावन,
अनंत आनंद स्नेह आरेख़ भर ।
प्यार होने लगा,तुम्हें देखकर ।।

एक लड़की रिमझिम सावन सी

मस्त मलंग हाव भाव,
तन मन अति सुडौल ।
अल्हड़ता व्यवहार अंतर,
हिय प्रियल मधुर बोल।
अधुना शैली परिधान संग,
चारु चंद्र चंचल बिछावन सी ।
एक लड़की,रिमझिम सावन सी ।।

अंग प्रत्यंग चहक महक ,
नव यौवन उत्तम उभार ।
आचार विचार मर्यादामय ,
अंतःकरण शोभित संस्कार ।
ज्ञान ध्यान निज सामर्थ्य ,
हौसली उड़ान मनभावन सी ।
एक लड़की,रिमझिम सावन सी ।।

चाह अग्र कदम हर क्षेत्र ,
मिटा पुरात्तन सोच आरेख ।
ललक झलक प्रगति पथ,
प्रेरणा आत्मसात मीन मेख ।
तज अंध विश्वास कुरीतियां,
उर भावना पुनीत पावन सी ।
एक लड़की,रिमझिम सावन सी ।।

सहन समाज व्यंग्य बाण ,
लैंगिक कटाक्ष अनंत वहन ।
पग पग पहरा शील चरित्र ,
स्वतंत्रता बिंदु मनन गहन ।
अहम भूमिका परिवार राष्ट्र,
सुरभि अनंत खुशियां आवन सी ।
एक लड़की,रिमझिम सावन सी ।।

विश्व आदिवासी/जनजाति दिवस

वसुधा हित जीवन,पथिक सुख समृद्धि के

प्रकृति रक्षक पोषक उपासक,
अनादि संस्कृति अनूप पर्याय ।
संवाहक परा संस्कार परंपरा ,
इतिहास अंतर आनंद अध्याय ।
जल जमीन जंगल वंदन स्तुति,
सदा साधक पर्यावरण शुद्धि के ।
वसुधा हित जीवन,पथिक सुख समृद्धि के ।।

भौतिक चकाचौंध सह दूरी,
नैसर्गिक स्पर्श जीवन कला ।
जैव विविधता सतत अभिरक्षा,
प्रति पल संरक्षण ओर ढला ।
वन्य जीव जंतु पुनीत सेवा कर,
कदम धरते विकास संवृद्धि के ।
वसुधा हित जीवन,पथिक सुख समृद्धि के ।।

प्रकृति स्नेहिल पावन आंचल ,
जीवन सहज अर्थ परिभाषा ।
अनमोल प्राकृतिक धरोहर रक्षण,
समग्र कल्याण उर अभिलाषा ।
बिना शिक्षा दीक्षा ज्ञान सरोवर,
परिमार्जक अंतःकरण बुद्धि के ।
वसुधा हित जीवन,पथिक सुख समृद्धि के ।।

आदिवासी रीति रिवाज अद्भुत,
राष्ट्र पटल प्रेरणा पुंज स्थान ।
मस्त मलंग सम निश्चल चर्या ,
प्रकृति उत्संग खुशियां आह्वान ।
स्वराज परिकल्पना मूल आधार,
कारक उत्तरोत्तर वैभव वृद्धि के ।
वसुधा हित जीवन,पथिक सुख समृद्धि के ।।

भारत छोड़ो आंदोलन

एक और अगस्त क्रांति का समय आया है

उन्नीस सौ बयालीस अगस्त क्रांति,
फिरंगी हुकूमत विरुद्ध ।
स्वतंत्रता ध्येय ओतप्रोत,
अंतःकरण भाव परिशुद्ध ।
पर आज राज पाट सब अपना ,
फिर भी हर नागरिक घबराया है ।
एक और अगस्त क्रांति का समय आया है ।।

शासन प्रशासन रग रग ,
भ्रष्टाचार मुंह बोल रहा ।
सत्य आज मौन हुआ ,
असत्य जुबां खोल रहा ।
अनैतिकता तांडव नृत्य कर,
चारों ओर हाहाकार मचाया है ।
एक और अगस्त क्रांति का समय आया है ।।

लोकतंत्र फिजाओं अंतर,
धर्म जातिवाद जहर घुला ।
मतदान परम अधिकार,
अपनी ताकत शक्ति भुला ।
दर्श कर आर्थिक असमानता,
फिर गुलामी सा अहसास पाया है ।
एक और अगस्त क्रांति का समय आया है ।।

बापू खुशहाल राष्ट्र स्वप्न,
अब धूमिल दिशा ओर ।
समता समानता भाव,
यथार्थ परे कोहराई भोर ।
तज निज संस्कृति संस्कार,
पाश्चात्यता पर अपनत्व दिखाया है ।
एक और अगस्त क्रांति का समय आया है ।।

नारी मान सम्मान बातें ,
मात्र औपचारिक खेल ।
परिवार समाज संबंध पट,
फैली स्वार्थी विषैली बेल ।
अग्र कदम अधिकार हित,
कर्तव्यों हेतु दूरी रुख अपनाया है ।
एक और अगस्त क्रांति का समय आया है ।।

हरियाली तीज

देखो,इठलाती बलखाती हरियाली तीज आई

मृदुल मधुर हिय तरंगें,
परिवेश सारा मनभावन ।
नव यौवन अंग प्रत्यंग,
मस्त मलंग सा सावन ।
झूलों पर लोक गीतों संग,
सर्वत्र आनंद बहार छाई ।
देखो,इठलाती बलखाती हरियाली तीज आई ।।

आराधना परम भाव ,
शिवत्व भव्य वंदन ।
पार्वती सम रुप धर,
पूर्ण मनोकामना स्पंदन ।
मोहक सोलह श्रृंगार कर,
शिव शंकर अनुपम रिझाई ।
देखो,इठलाती बलखाती हरियाली तीज आई ।।

हरित परिधान शोभित,
प्रकृति सह नारी तन पर ।
दर्शित संस्कार परंपरा,
लोक जीवन अंतर्मन पर ।
पुनीत पावन संबंध अंतर,
अपनत्व अथाह अंगड़ाई ।
देखो,इठलाती बलखाती हरियाली तीज आई ।।

मनोरम उत्सविक श्रृंखला,
शुभ स्नेहिल श्री गणेश ।
अखंड सौभाग्य वर वृष्टि,
घर द्वार सुख समृद्धि प्रवेश ।
देख श्रावण अनूप अदाएं ,
जनमानस कली मुस्काई ।
देखो,इठलाती बलखाती हरियाली तीज आई ।।

आओ एक प्यारा सा पेड़ लगाएं

प्रकृति छटा अति मनोरम,
रज रज मृदुलता स्पंदन ।
पावन सानिध्य प्राणी जगत,
सर्वत्र अथाह आनंद मंडन ।
संतुलन बिंदु परम महत्ता ,
जीवन शुभ मंगल बनाएं ।
आओ,एक प्यारा सा पेड़ लगाएं ।।

वृक्ष अनुपमा मित्रवत सम,
सुख समृद्धि अनूप भंडार ।
उरस्थ परोपकार भावना ,
संकट बिंब सहयोग आधार ।
उद्गम श्रोत दिव्य प्राण वायु,
हर पल हर सांस महकाएं ।
आओ,एक प्यारा सा पेड़ लगाएं ।।

वृक्षारोपण अति श्रेष्ठ काज ,
हर व्यक्ति नैतिक जिम्मेदारी ।
धर्म कर्म उत्सव त्योहार बेला,
पौधा रोपण नित्य शुभकारी ।
अभिवृद्धित उच्च तापमान हित,
शीतलता ओर कदम बढ़ाएं ।
आओ, एक प्यारा सा पेड़ लगाएं ।।

निज संस्कृति संस्कार पटल,
मां छवि अद्भुत अनुपम विशेष ।
परम माध्य साध्य अवतरण,
उत्संग पट खुशियां अधिशेष ।
अपनत्व ओतप्रोत उत्तम पहल,
वृक्ष अंतर मातृ दर्शन पाएं ।
आओ, एक प्यारा सा पेड़ लगाएं ।।

हरियाली अमावस्या

हर का हरित वंदन,हरियाली अमावस्या पर

नभ शोभित कृष्ण घटा,
धरा उत्संग यौवन बहार ।
रग रग उत्साह उमंग,
रज रज स्नेह प्रेम धार ।
ब्रह्मांड गूंज हर हर महादेव ,
भक्त भाव विभोर कांवड़ तपस्या कर ।
हर का हरित वंदन,हरियाली अमावस्या पर ।।

श्रावण कृष्ण पक्ष अद्भुत,
दान दक्षिणा शुभम बेला ।
साधना स्तुति शिव पार्वती ,
अखंड सौभाग्य वर नवेला ।
विधिवत पूजन अर्चन बिंदु,
जन आह्लाद उर तस्या भर।
हर का हरित वंदन,हरियाली अमावस्या पर ।।

दृष्टि परिध हरित अनुपमा ,
स्वर्ग सम भू लोक नजारा ।
कल कल मधुर स्वर लहरी,
सरित निर्झर अमिय धारा ।
बम बम बोले उद्घोष अनूप ,
कांवड़ जोश रुद्र वस्या असर ।
हर का हरित वंदन,हरियाली अमावस्या पर ।।

पुनीत पावन मंगल पर्व,
समग्र प्रयास वृक्षारोपण ।
पेड़ मैत्री उपमा परम,
सदा प्रहरी पथ रोहण ।
प्रकृति रक्षा संरक्षण संकल्प ,
सदा सुख समृद्धि शस्या दर ।
हर का हरित वंदन,हरियाली अमावस्या पर ।।

अरे भारत! उठ, आंखें खोल

अनुभूत कर सनातन आभा,
निज संस्कृति ओर अग्रसर ।
तज पाश्चात्य जीवन शैली,
देख परा शुभ भोर असर ।
धूमिल हुए संबंध अंतर,
अपनत्व मधुरिमा घोल ।
अरे भारत! उठ, आंखें खोल ।।

धर्म आस्था पुनीत पावन,
सर्वदा मानवता हितकारी ।
जागृत सुषुप्त शक्तियां,
समस्या मूल उपचारी ।
शुद्ध सात्विक वैचारिकी संग,
चरित्र पट नैतिकता तोल ।
अरे भारत!उठ, आंखें खोल ।।

अंध भौतिक प्रगति पथ ,
नित्य मृग मरीचिका सम ।
यथार्थ परे भाव प्रदर्शन,
स्वार्थ निष्ठता हर कदम ।
यंत्र सदृश मनुज महत्ता ,
संकट काल मंद मेलजोल ।
अरे भारत! उठ, आंखें खोल ।।

संस्कार मर्यादा परंपराएं,
परिवार समाज अहम अंग ।
जननी जन्म धरा नारी वंदन ,
सर्वत्र खुशियां उत्साह उमंग ।
साहस शौर्य आत्म विश्वास संग ,
सदा बुलंद कर तिरंगी बोल ।
अरे भारत! उठ, आंखें खोल ।।

कांवड़ यात्रा

कांवड़ यात्रा,शिव शंकर परम स्तुति

सृष्टि पटल श्रावण अद्भुत,
पुनीत महत्ता अपरंपार ।
रज रज स्पंदन शिवत्व,
सर्वत्र आस्था भक्ति धार ।
पावन सर सरिता नीर संग,
रुद्र रिझावत अहम युक्ति ।
कांवड़ यात्रा,शिव शंकर परम स्तुति ।।

भक्त गण अखंड साधना,
ध्येय नीलकंठ विष हरण ।
जलाभिषेक दिव्य शिवलिंग,
रग रग अनंत आनंद संचरण ।
परिवेश छटा अति मनोरम ,
जन शोभित हर हर महादेव उक्ति ।
कांवड़ यात्रा,शिव शंकर परम स्तुति ।।

परशुराम जी प्रथम उपमा,
बृजघाट सह बागपत बिंदु ।
जलाभिषेक पुरा महादेव ,
वंदन अभिनंदन कृपा सिंधु ।
तदनंतर निर्वहन भव्य परंपरा,
सरस माध्य हर स्नेह अभिव्यक्ति।
कांवड़ यात्रा,शिव शंकर परम स्तुति ।।

वर्तमान काल सुखद अनुभूति,
समता समानता भाव दर्शन ।
जनमानस सेवा हित आतुर ,
सनातन संस्कृति मूल स्पर्शन ।
दृढ़ संकल्प प्रकृति जल संरक्षण,
साधक मनोकामना पूर्ण प्रस्तुति ।
कांवड़ यात्रा, शिव शंकर परम स्तुति ।।

सावन अति मनभावन

सृष्टि कण कण अंतर,
हर हर महादेव परम स्तुति ।
आचार विचार मृदु विमल,
शुद्ध सात्विक भाव प्रस्तुति ।
जीवन अग्रसर शुचिता पथ,
देह परिमार्जित पावन ।
सावन अति मनभावन ।।

रिमझिम स्वर मनोरम,
सर्वत्र आनंद बहार ।
प्रबल नव आशा उमंग,
उज्ज्वल भविष्य श्रृंगार ।
मोहक सोहक परिवेश,
संबंध अपनत्व बिछावन।
सावन अति मनभावन ।।

प्रकृति यौवन अंगड़ाई,
हरित सौंदर्य भरपूर ।
चहक रहा जनजीवन,
नैराश्य संकीर्णता दूर ।
खान पान मधुर आस्वादन,
संवाद पटल हास्य कावन ।
सावन अति मनभावन ।।

खेत खलिहान वन उपवन ,
सुख समृद्धि अनूप गीत ।
मुख मंडल मुस्कान अथाह,
हिय पटल शोभित प्रीत ।
व्यवहार पट सदाचार बिंब,
जनमानस आभा धावन ।
सावन अति मनभावन ।।

संघर्ष के आगे जीत है

स्व शक्ति यथार्थ आकलन ,
लक्ष्य निर्धारण अहम बिंदु ।
दृढ़ संकल्प समर्पण भाव ,
अथक श्रम चाह अंतर सिंधु ।
उचित समय सही मार्गदर्शन,
आत्म विश्वास परम मीत है ।
संघर्ष के आगे जीत है ।।

कंटक पथ पर अविचलित ,
साहस शौर्य संग सामना ।
अविस्मृत कर आलोचनाएं ,
उत्साह उमंग उर भावना ।
सकारात्मक सोच आत्मसात ,
कर्म साधना लक्ष्य प्रदीप है ।
संघर्ष के आगे जीत है ।।

असंभव शब्द विलोपित,
निज जीवन कोश पटल ।
अग्र कदम नव जोश भर,
अदम्य हौसली उड़ान अटल ।
अंतःकरण सूर्य चंद्र प्रभा,
नव श्रृंगार ओज शीत है ।
संघर्ष के आगे जीत है ।।

निशि दिन सुबह शाम,
संकल्प सिद्धि आराधना ।
आभा मंडल भव्य मुस्कान ,
राह शूल बाधा ललकारना ।
अनुशासित अनूप कार्यशैली,
मेहनत संग सफलता अनीत है।
संघर्ष के आगे जीत है ।।

सावन में प्रीत परवान चढ़ रही

उर हिलोरित उत्साह उमंग,
मृदुल मधुर पावन परिवेश ।
चैतन्य प्रभा परम बिंदु,
शुभ मंगल अंतर आवेश ।
प्रकृति नव यौवना सदृश,
परिणय स्वप्न गढ़ रही ।
सावन में प्रीत परवान चढ़ रही ।।

अंग प्रत्यंग मोहक सोहक,
अंतर्मन सरित नेह धारा ।
शुद्ध सात्विक आचार विचार ,
मस्त मलंग जीवन सारा ।
नयनन अति मंत्र मुग्ध,
प्रेयेसी छवि पढ़ रही ।
सावन में प्रीत परवान चढ़ रही ।।

वर्षा अमिय बूंदों संग ,
सुख समृद्धि अभिलाषा ।
अप्रतिम आशा संचरण,
संवाद पट प्रिय भाषा ।
धरा दुल्हन सा श्रृंगार कर,
हरित पथ पर बढ़ रही ।
सावन में प्रीत परवान चढ़ रही ।।

प्रकृति जवानी रवानी अनूप,
दर्श कर हर कोई कायल ।
सुन कल कल स्वर लहरियां,
संगीत झंकार सम पायल ।
रज रज विमल अनुपमा,
उरस्थ नैतिक भाव मढ रही ।
सावन में प्रीत परवान चढ़ रही ।।

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस

प्रकृति के उत्संग में,परम आनंद स्पंदन

पेड़ पौधे जीव जन्तु,
सदैव मनुज परम मित्र ।
नदी पर्वत व सागर सह,
स्वर्ग सदृश सुनहरे चित्र ।
सहेज मातृ वत्सल आभा,
जीवन सुरभित सम चंदन ।
प्रकृति के उत्संग में,परम आनंद स्पंदन।।

नैसर्गिक सानिध्य अंतर,
जीवन सदा आह्लादित ।
मृदुल मधुर मनोरम छवि,
अपनत्व अथाह आच्छादित ।
अनूप अनमोल विरासत संग,
उर कलियां अनुभूत रंजन ।
प्रकृति के उत्संग में, परम आनंद स्पंदन ।।

उत्साह उमंगी हरित आंचल,
सुख समृद्धि अनंत वरदान ।
दुःख दर्द कष्ट विलोपन,
रज रज उत्स्विक आह्वान ।
वृक्षारोपण अभियान अहम ,
सहर्ष सक्रिय सहभागिता मंडन ।
प्रकृति के उत्संग में, परम आनंद स्पंदन ।।

पुरजोर विरोध अतिदोहन बिंदु,
नैतिक महत्ता व्यापक प्रचार ।
रोक अंध भौतिक प्रगति रथ,
प्राकृतिक संतुलन प्रयास प्रसार ।
तज निज स्वार्थ समग्रता हित,
संरक्षण संकल्प मैत्री बंधन ।
प्रकृति के उत्संग में, परम आनंद स्पंदन ।।

मानस पटल सावन में

मानस पटल सावन में, शिवालय सा पावन

अंतर्मन अति प्रफुल्लित,
देख सावन मस्त बहार।
मृदुल मधुर सौम्य प्रकृति,
नेह जीवन परम आधार ।
नैराश्य संकीर्णता विलोपित,
कदम राह नैतिकता दामन ।
मानस सावन में, शिवालय सा पावन ।।

रज रज रग रग अंतर,
शुभता अथाह स्पंदन ।
हर्षित गर्वित उर कलियां,
कर हर हर महादेव वंदन ।
बम भोले दिव्य उद्घोष संग,
अप्रतिम धर्म आस्था प्रमाणन ।
मानस पटल सावन में, शिवालय सा पावन ।।

पुनीत मंगल कावड़ यात्रा,
शिव स्तुति अखंड साधना ।
अनूप जलाभिषेक शिवलिंग ,
सद्य: फल पूर्ण हर कामना ।
दुःख कष्ट पीड़ा मूल दूर ,
श्री गणेश सुख समृद्धि आवन ।
मानस पटल सावन में, शिवालय सा पावन ।।

धरा हरित सौंदर्य मनोरम,
सृजित नव आशा अभिलाषा ।
उद्गम उत्साह उमंग उल्लास ,
आनंद खुशियां सहज परिभाषा ।
सृष्टि बिंदु हर दृष्टि सुशोभित,
स्नेह प्रेम असीम बिछावन ।
मानस पटल सावन में ,शिवालय सा पावन ।।

कारगिल विजय दिवस  26 जुलाई

26 जुलाई दिवस अद्भुत,
कारगिल विजय भव्य बेला ।
सर्वत्र बखान शौर्य गाथा,
उत्सर्ग नमित भाव नवेला ।
रज रज दर्शन अदम्य साहस ,
जय हिंद उद्घोष हिल मिल ।
कारगिल हिल पर,तिरंगी शान झिलमिल ।।

हिंद जवानी रवानी अनूप,
शत्रु रणनीति धराशाही ।
खदेड़ दुश्मन सीमा पार ,
सेना अर्जित वाही वाही ।
पांच सौ सताईस शहादत,
नव जोश उमंग प्रेरणा चिल ।
कारगिल हिल पर, तिरंगी शान झिलमिल ।।

दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र अंतर ,
युद्ध कौशल कला परिचय।
तहस नहस शत्रु चौकियां,
उर विजय भव दृढ़ निश्चय ।
अथक संघर्ष विपरित परिस्थिति ,
हर प्रयास अभिवंदित गिल ।
कारगिल हिल पर, तिरंगी शान झिलमिल ।।

जीवन एक मात्र ध्येय,
हर्षित गर्वित राष्ट्र धरा ।
आंतरिक बाह्य सुख शांति ,
देश हित तत्पर कतरा कतरा ।
राष्ट्र प्रथम मूल मंत्र आत्मसात ,
प्राण आहुति सह जीवन खिल खिल ।
कारगिल हिल पर, तिरंगी शान झिलमिल ।।

हिंद की मुस्कान में

फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में

राष्ट्र इतिहास कारगिल युद्ध,
अदम्य साहस शौर्य गाथा ।
धूमिल शत्रु कुत्सित चालें,
विजय सुशोभित हिंद माथा ।
हौसली संघर्ष सह प्राण आहुति,
मातृभूमि रक्षा अरमान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में ।।

सन उन्नीस सौ निन्यानवें,
कारगिल युद्ध अद्भुत घड़ी ।
मई सह जुलाई त्रि मास ,
हिंद सेना जोश संग लड़ी ।
पांच सौ सत्ताईस उत्सर्ग शोभा,
तिरंगी आन बान शान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में ।।

नियंत्रण रेखा उल्लंघन बिंदु ,
कारगिल युद्ध अहम कारण ।
असफल दुश्मन हर योजना ,
हिंद विजय भव मंत्र धारण ।
दुर्जन पहाड़ियों संग रण खेलियां ,
अभिरक्षित राष्ट्र स्वाभिमान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए, हिंद की मुस्कान में ।।

रिझ न सके वीर जवान,
देख मेहंदी वाले सुंदर हाथ ।
मां बाप भाई बहनों का,
दे न सके पूरा साथ ।
भूल गए संबंध रिश्ते नाते,
राष्ट्र गौरव मान सम्मान में ।
फिर गुल बनकर खिल गए,हिंद की मुस्कान में ।।

मस्त मलंग सावन बहार

अंग प्रत्यंग नव यौवन ,
घट पट उमंग लहर ।
संवाद पटल माधुर्य,
सर्वत्र खुशियां महर ।
बारिश बूंद प्रेयेसी सम,
रग रग नेह दर्शन साकार ।
मस्त मलंग सावन बहार ।।

रिमझिम मधुर स्वर,
जीवन उत्सव अनुपमा ।
धरा हरितिमा चूनर ओढ़ ,
दुल्हन सा प्रणय रमा ।
रज रज तरूणाई अथाह,
तृषा स्पर्शित तृप्ति आगार ।
मस्त मलंग सावन बहार ।।

अल्हड़ता पूर्ण व्यवहार,
हास्य परिहास मित्रों संग ।
दामिनी उग्र अठखेलियां,
मेघ स्वर जीवन कंग ।
सुख समृद्धि वर वृष्टि,
विमुक्त दुःख कष्ट आधार ।
मस्त मलंग सावन बहार ।।

अति सुरभित वन उपवन ,
प्रकृति आंचल अनुपम ।
गगन आभा मोहक सोहक,
जलद घटा आरेख उत्तम ।
तन मन पुनीत पावन,
परिवेश उत्संग मधुर मल्हार ।
मस्त मलंग सावन बहार ।।

नारी सृष्टि का अलंकार है

मृदुल मधुर सरस भाव,
जीवन पावन शब्दकोश ।
त्याग समर्पण अर्थ व्यंजना ,
समग्र खुशियां परितोष ।
सृजन सह अठखेलियां,
उज्ज्वल भविष्य झंकार है ।
नारी सृष्टि का अलंकार है ।।

स्नेह प्रेम करूणा सागर,
अंतर सरित आशा उमंग ।
परिवार समाज भव्य कड़ी ,
हर कदम मान मर्यादा कंग ।
परम सेतु संस्कार परंपरा,
शिक्षा दीक्षा प्रगति टंकार है ।
नारी सृष्टि का अलंकार है ।।

संबंध अंतर अपनत्व संज्ञा,
भूमिका निर्वहन अनूप ।
अद्भुत ओज मुखमंडल ,
सतत श्रम संग छाया धूप ।
नित्य तत्पर हौसली उड़ान,
आत्मविश्वास मैत्री हंकार है ।
नारी सृष्टि का अलंकार है ।।

सभ्यता संस्कृति धर्म रक्षक,
शक्ति भक्ति अनुपम अध्याय ।
व्यक्तित्व कृतित्व अति उत्तम ,
भावी पीढ़ी मार्गदर्शन संकाय ।
पर हित निज सुख आनंद तज,
अनैतिक पथ नित इंकार है ।
नारी सृष्टि का अलंकार है ।।

मां की स्मृति में

झर झर आंसू बह रहे, मां की स्मृति में

जन्मदात्री उपमा बन,
ममता स्नेह लुटाया ।
अपनत्व सरित रूप धर,
आशा विश्वास जगाया ।
ज्ञान गंग विमल लहर ,
सरस स्पंदन हर कृति में ।
झर झर आंसू बह रहे, मां की स्मृति में ।।

किया परिश्रम अथक,
क्लांत न आपको देखा ।
गुंजित रहती मंद्र गिरा,
आनन पर स्मित रेखा ।
संस्कार मर्यादा अप्रतिम,
पावनता दर्श मनोवृति में ।
झर झर आंसू बह रहे, मां की स्मृति में ।।

ज्ञान मार्ग दिग्दर्शक बन,
उज्ज्वल पथ दिखाया ।
प्रेरणा पुंज शक्ति बन ,
नैतिकता मंत्र सिखाया ।
ओजमयी सहजता संग,
धर्म आस्था प्रबल प्रकृति में ।
झर झर आंसू बह रहे, मां की स्मृति में ।।

अत्यंत स्नेहिल मृदु स्वभाव,
संवाद अंतर उमंग उल्लास ।
सात्विकता दर्शन हर कदम,
उत्संग पटल वत्सल उजास ।
कोटि कोटि नमन आभार वंदन,
कामना सदा आशीष आवृति में ।।

सुशोभित महाकाल

सावन के भाल में,अति सुशोभित महाकाल

रज रज अंतर पावनता,
प्रकृति छटा मनोहारी ।
सर्वत्र रिमझिम मधुर स्वर,
कृष्ण मेघ नेह अवतारी ।
हरित श्रृंगार धरा उत्संग,
यौवन अंगड़ाई बेमिसाल ।
सावन के भाल में,अति सुशोभित महाकाल ।।

नदी पर्वत छवि मनोरम,
आशा उमंग हर्ष अपार ।
मंगल आभा सर निर्झर ,
खुशियां जन्य अमिय धार ।
वन उपवन हर्षित पुलकित,
खेत खलिहान समृद्धि ताल ।
सावन के भाल में,अति सुशोभित महाकाल ।।

द्वादश मास अंतर श्रेष्ठता,
साधना स्तुति परम बेला ।
समुद्र मंथन दिव्य इतिहास ,
विष ग्रहण हर रूप नवेला ।
तीर्थ दर्शन सह कांवड़ यात्रा,
सर्वत्र भोले डमरू कमाल ।
सावन के भाल में,अति सुशोभित महाकाल ।।

चातुर्मास पट श्रावण अद्भुत,
शिव भक्ति पथ सहज सरल ।
धर्म आस्था लहर अप्रतिम,
जलाभिषेक संग हरण गरल ।
व्रत उपासना सद्य: सुफलित,
शिव कृपा जीवन आनंद ढाल ।
सावन के भाल में,अति सुशोभित महाकाल ।।

श्री गुरु चरण नित वंदन

मुदित अंतस ऋषि सम,
चिंतन मनन ज्ञान ध्यान ।
नीतिमान निष्कपट निष्ठ,
सतत निरत पथ निष्काम ।
शमन दमन कर आडंबर ,
सद्ज्ञान सुरभि सम चंदन ।
श्री गुरु चरण नित वंदन ।।

लावण्य प्रभा मुख शोभित,
ओजमयी मोहक मुस्कान ।
समाहार शिक्षण कला,
नवाचार विधा मृदु गान ।
अबोध मन स्नेह सिक्त कर,
आचार विचार आदर्श मंडन ।
श्री गुरु चरण नित वंदन ।।

क्लेश द्वेष उग्र आवेश हीन,
उज्ज्वल उन्नत कर्म प्रधान ।
भरण सुसंस्कार मर्यादा,
स्तुत निज संस्कृति शान ।
उत्साह उमंग उल्लास भर,
सकारात्मक वैचारिकी स्पंदन।
श्री गुरु चरण नित वंदन ।।

संकल्प नव युग निर्माण,
लक्ष्य शोभा विश्व पदवी ।
ज्ञान विज्ञान अठखेलियों संग ,
ओज अभिव्यंजना सदृश रवि ।
शिष्य अंतर प्रेरणा पुंज ज्योत,
सदा अनंत आभार अभिनंदन ।
श्री गुरु चरण नित वंदन ।।

आई लव यू

आई लव यू,अपनत्व की परम अभिव्यक्ति

प्रेम जप तप लगन ,
तन मन मुदित भाव ।
निहार अक्स आकर्षण,
जीवन सौम्य शीतल छांव ।
शब्द अर्थ अभिव्यंजना ,
हृदय श्रोत माधुर्य उत्पत्ति ।
आई लव यू,अपनत्व की परम अभिव्यक्ति ।।

अंतराल विलोप पथ,
मैत्री चाहना परिवेश ।
हर पल आनंद जन्य,
जीवन शुभता प्रवेश ।
ऊर्जस्वित चाल ढाल,
हर कदम प्रणय प्रस्तुति ।
आई लव यू,अपनत्व की परम अभिव्यक्ति ।।

हर रूप प्रतिरूप छवि,
सम्मोहन रग रग व्याप्त ।
अधर तृप्ति भावना,
साधना परम बिंदु प्राप्त ।
देव तुल्य दर्शन माला,
आहट स्वर गीत उक्ति ।
आई लव यू,अपनत्व की परम अभिव्यक्ति ।।

हिय प्रिय मृदु संवाद,
नेह अनुबंध प्रस्ताव ।
प्रीति रीति सौरभमय,
परवर सम स्तुत स्त्राव ।
सोच विचार मोहक आभा,
समर्पण सर्वस्व स्पर्श युक्ति ।
आई लव यू,अपनत्व की परम अभिव्यक्ति ।

(शहादत की सौरभ से सराबोर “झुंझुनूं”जिले के सम्मान में कुछ पंक्तियां सादर निवेदित हैं:)

शहादत की सौरभ से सराबोर “झुंझुनूं”

रज रज से रग रग तक, शौर्यता का उफान

हिंद पटल झुंझुनूं जिला,
सदा शहादत अनूप पर्याय ।
चार सौ पिचासी उत्सर्ग शोभा,
राष्ट्र इतिहास स्वर्णिम अध्याय ।
हर गांव ढाणी शहीद मूर्तियां,
नित्य आराधित सम भगवान ।
रज रज से रग रग तक, शौर्यता का उफान ।।

सेना भर्ती युवा पीढ़ी ध्येय,
अंतर स्वप्न देश रक्षा ।
धरा शांति खुशहाली हित ,
अग्र कदम अग्नि परीक्षा ।
प्राण आहुति कर्तव्य संग ,
सदा पूर्ण तिरंगी अरमान ।
रज रज से रग रग तक, शौर्यता का उफान ।।

अदम्य साहस बुलंद परिचय,
आतंक नक्सल सह मुठभेड़ ।
मातृभूमि रक्षा जीवन धर्म ,
सांस विराम शत्रु खदेड़ ।
तिरंगे सह लिपट घर लौट,
जीवन धन्य पा शहीद सम्मान ।
रज रज से रग रग तक, शौर्यता का उफान ।।

हाल जम्मू कश्मीर डोडा संघर्ष,
जिला पुनः शहादत निखार ।
जाबांज सैनिक अजय विजेंद्र ,
राष्ट्र रक्षा हित वीर गति विहार ।
अनंत नमन अभिवंदन उत्सर्ग,
नयनन सजल कर योद्धा बखान ।
रज रज से रग रग तक, शौर्यता का उफान ।।

हरि ने हर को सौंपा

हरि ने हर को सौंपा,सृष्टि संचालन प्रभार

देवशयनी एकादशी अनुपम,
बेला विष्णु क्षीरसागर प्रस्थान ।
चातुर्मास अद्भुत काल खंड ,
सर्वत्र शंकर स्तुति आह्वान ।
श्रावण मास आहट अनूप,
शिव कृपा स्वप्न साकार ।
हरि ने हर को सौंपा, सृष्टि संचालन प्रभार ।।

रिमझिम रिमझिम स्वर प्रभा,
मेह अंतर अनंत नेह वृष्टि ।
धरा हरीतिमा मोहक श्रृंगार,
पुनीत पावन सात्विक दृष्टि ।
कल कल सरिता सर निर्झर ,
कावड़ सह आनंद अपार ।
हरि ने हर को सौंपा, सृष्टि संचालन प्रभार ।।

सावन भाद्रपद आश्विन कार्तिक,
सनातन धर्म अप्रतिम महत्ता ।
सहज सरस व्रत उपासना ,
निशि दिन वंदन रूद्र सत्ता ।
शुभ मांगलिक अनुष्ठान विराम,
पर दर्शन सौभाग्य शिव दरबार ।
हरि ने हर को सौंपा, सृष्टि संचालन प्रभार ।।

चौमासा प्रकृति अलौकिक ,
द्वि देव वरदान अवसर ।
परम सानिध्य भोले भंडारी
आस्था बिंदु विभु प्रखर ।
परिवेश उत्संग नैसर्गिक सौंदर्य,
कण कण शिवत्व दिव्य बहार ।
हरि ने हर को सौंपा, सृष्टि संचालन प्रभार ।।

एक पेड़ मां के नाम

एक पेड़ मां के नाम,खुशियों की नई पहल

वृक्ष अनुपमा अद्भुत अनुपम,
मनुज जीवन अप्रतिम उपहार ।
प्राण वायु उद्गम बिंदु,
नैसर्गिक आनंद स्वप्न साकार ।
पुनीत पावन दिव्य दर्शन,
उत्साह उमंगी उत्सविक चहल ।
एक पेड़ मां के नाम,खुशियों की नई पहल ।।

प्राकृतिक संतुलन अहम कड़ी,
परोपकार परम संदेश ।
गाह पशु पक्षी जंतु जगत,
जैव विविधता संचेत उन्मेष ।
शुद्ध सात्विक परिवेश निर्माण ,
उपमा सृष्टि प्रदत्त अनूप महल ।
एक पेड़ मां के नाम, खुशियों की नई पहल ।।

अंग प्रत्यंग मानव हित,
उरस्थ अनंत मंगल कामना ।
आशा उमंग संचार सेतु,
सर्व कल्याण ध्येय साधना ।
उत्संग शीतल सरित प्रवाह ,
हरण भौतिकता जन्य कहल ।
एक पेड़ मां के नाम, खुशियों की नई पहल ।।

हर नागरिक परम कर्तव्य,
अग्र कदम वृक्षारोपण काज ।
हिय पटल मातृ वंदना भाव,
संबंध अंतर अपनत्व सरताज ।
सुख समृद्ध उज्ज्वल भविष्य,
जीवन पथ सदा सौम्य सहल ।
एक पेड़ मां के नाम, खुशियों की नई पहल ।।

सुभग जीवन

सुभग जीवन पथ,सेवा रुचिर भावों से

सर्वत्र सुख आनंद सरिता,
हर मनुज हिय कामना ।
परस्पर सहयोग सामंजस्य,
समूहगत समाधानिक सामना ।
समता समानता दिव्य दर्शन,
स्नेह श्रृंगारित निगाहों से ।
सुभग जीवन पथ,सेवा रुचिर भावों से ।।

प्रेम भाईचारा अपन्तव अथाह,
संस्कृति मर्यादा वंदित व्यवहार ।
सकारात्मक ऊर्जा कदम चाल,
भावभंगिमा संस्कारी बहार ।
संप्रेषण सेतु मृदुल मधुर,
शाब्दिक शीतल अदाओं से ।
सुभग जीवन पथ,सेवा रुचिर भावों से ।।

जीव जंतु प्रकृति जगत,
मानव आह्लाद पर्याय ।
निस्वार्थ कर्म अभिव्यंजना,
प्रेरणा पुंज नवल अध्याय ।
संघर्ष बाधा सदैव विजित,
अथक परिश्रमी धावों से ।
सुभग जीवन पथ,सेवा रुचिर भावों से ।।

आर्थिक बिंदु मूल विलोपन,
जीवन स्तर यथार्थ मापदंड ।
ईमानदार सदाचरित व्यक्तित्व,
परिवार समाज राष्ट्र मेरुदंड ।
कृतित्व परोपकार ओतप्रोत,
स्वर मधुरिमा समग्र प्रगति राहों से ।
सुभग जीवन पथ,सेवा रुचिर भावों से ।।

मुक्तिकामी स्त्री

मुक्तिकामी स्त्री,सभ्यता की सुरम्यता

कोमल निर्मल सरस भाव,
अंतर विमल विमल सरिता ।
त्याग समर्पण प्रतिमूर्ति,
अनंता अत्युत्तम कविता ।
सृजन उत्थान पथ पर,
शोभित समता लावण्यता।
मुक्तिकामी स्त्री,सभ्यता की सुरम्यता।।

स्नेहगार ,दया उद्गम स्थल,
अप्रतिम श्रृंगार सृष्टि का ।
पूजनीय कमनीय शील युत,
नैतिक अवलंब दृष्टि का ।
उमा रमा शारदा सरिस,
उत्संग विश्रांत आनंद भव्यता ।
मुक्तिकामी स्त्री,सभ्यता की सुरम्यता।।

अद्भुत तेज पुंज उज्ज्वल,
जग ज्योति अखंडित ।
हर युग अति गुणगान,
गरिमा महिमा शीर्ष मंडित ।
ऊर्जस्वित कर प्राण सकल ,
बुलंद हौसली उड़ान नव्यता ।।
मुक्तिकामी स्त्री ,सभ्यता की सुरम्यता ।।

संस्कृति संस्कार धर्म रक्षक,
परंपरा मर्यादा युक्त चरित्र ।
नैतिक सात्विक पथ गामिनी ,
व्यक्तित्व कृतित्व पवित्र ।
अथक श्रम उत्सर्ग साधना,
ध्येय आचमन संग तन्मयता ।
मुक्तिकामी स्त्री ,सभ्यता की सुरम्यता ।।

श्री कृष्ण नेह सुरभि

श्री कृष्ण नेह सुरभि,श्री मद्भागवत में

तीन सौ पैंतीस दिव्य अध्याय,
बारह प्रेरणा पुंज स्कंध ।
अठारह हजार श्लोक अनुपमा,
शब्द आभा आनंद बंध ।
कथा श्रवण परम सुअवसर ,
सुषुप्त सौभाग्य जगावत में ।
श्री कृष्ण नेह सुरभि,श्री मद्भागवत में ।।

हिंद वांग्मय मुकुटमणि प्रभा,
संपूर्ण वेदांत सार सरिता ।
पटाक्षेप उग्र आवेश मूल
मनुज चरित्र उन्मुख नमिता ।
प्रसंग दैनिकचर्या समावेशी,
परिवेश स्पंदन शोभा शाश्वत में ।
श्री कृष्ण नेह सुरभि,श्री मद्भागवत में ।।

परित्राण बिंदु सहज सरस,
सुख समृद्धि वैभव वृष्टि ।
सद्गुण सदाचार श्री वंदन,
स्नेह वत्सल आगार दृष्टि ।
कल्प वृक्ष सम ओज उपमा,
भक्ति शक्ति कान्हा रिझावत में ।
श्री कृष्ण नेह सुरभि, श्री मद्भागवत में ।।

पारिवारिक सुख शांति सागर,
सनातन धर्म संस्कृति विश्वकोश ।
अमिय धार मानवता उत्संग ,
अंतःकरण महा शुद्धि परितोष ।
विमल मन स्थिर चितवन संज्ञा,
साध्य असीम खुशियां बिछावत में ।
श्री कृष्ण नेह सुरभि,श्री मद्भागवत में ।।

चूड़ियों की खनक

चूड़ियों की खनक में,नारीत्व की परिभाषा

दिव्य सनातन धर्म संस्कृति,
कंगन कर कमल अलंकरण ।
परम प्रतिष्ठा दांपत्य शोभा,
सरित प्रवाह माधुर्य अंतःकरण ।
हर धर्म पंथ समाज क्षेत्र,
महिला शक्ति अनूप अभिलाषा ।
चूड़ियों की खनक में, नारीत्व की परिभाषा ।।

विविध वर्णी अनुपमता,
आकृति मोहक वृत्ताकार ।
कांच लाख अति प्रिय,
रजत स्वर्ण शीर्षता धार ।
हाथी दांत पीतल सह
अंतर्मन मर्म विमल भाषा ।
चूड़ियों की खनक में,नारीत्व की परिभाषा ।।

नारीत्व अर्थ सहज सरल,
सौलह श्रृंगार अंग उत्संग ।
स्वर सदा कर्णस्थ चाहना,
परिवेश आच्छादित नेह रंग ।
उत्सविक आनंद चार चांद,
स्पनंदित आह्लाद उमंग आशा ।
चूड़ियों की खनक में,नारीत्व की परिभाषा ।।

कंगना शोभना अप्रतिम ,
खुशियां उद्गम परम माध्य ।
प्रीति अनुबंध मृदु भाव,
संस्कार परंपरा पथ साध्य ।
आरोग्यता ध्वनि अभिव्यंजना,
तृप्ति मंगल तृषा जिज्ञासा।
चूड़ियों की खनक में,नारीत्व की परिभाषा ।।

शुद्धि से सिद्धि तक

शुद्धि से सिद्धि तक,शुभ्र जीवन पथ
मानव जीवन अहम ध्येय,
सुख आनंद प्रति क्षण ।
सद्गुण आदर्श सर्व व्याप्त,
सात्विकता रमण अक्षण ।
ऊर्जस्वित कदम अग्रसर,
अर्जन मनुज मनोरथ ।
शुद्धि से सिद्धि तक,शुभ्र जीवन पथ ।।

तन मन स्वस्थ स्वच्छ,
उत्पन्न नैतिक सोच विचार ।
पुलकित भाव तरंगिनी,
जड़ अस्त नैराश्य विकार ।
दया करुणा परहित काज,
कर मानव सेवा शपथ ।
शुद्धि से सिद्धि तक,शुभ्र जीवन पथ ।।

पावनता धारित परिवेश,
नित अथाह खुशियां वृष्टि ।
आदर सत्कार सर्व जन,
प्रेम अपार स्नेहिल दृष्टि ।
हिय स्पर्शन अलौकिकता,
परम दर्शन सदा सरथ ।
शुद्धि से सिद्धि तक,शुभ्र जीवन पथ ।।

असंभवता रूप विलोपन,
संभवताएं अनूप श्रृंगार ।
सहभागी रज रज आभा ,
अनुग्रह अंतर्संबंध आधार ।
जन्म जन्मांतर तिमिर अस्त,
उर ओज आरूढ़ रश्मि रथ ।।
शुद्धि से सिद्धि तक,शुभ्र जीवन पथ ।।

नेह अनुपमा विचित्र है

प्रसून सदा मस्त मलंग,
निहार उपवन हरियाली ।
कृष्ण मिलिंद सम्मोहित,
दर्श कर कुसुम लाली ।
दीप पतंगा मिलन अद्भुत,
भय रहित प्रणय चित्र है ।
नेह अनुपमा विचित्र है ।।

कुमुदिनी सुधाकर चाह अनूप,
धरा गगन दूरी विलोप ।
जीवन शीर्ष ध्येय दर्शन ,
उत्संग दिव्य प्रीति ज्योत ।
लैला मजनू कहानी संग,
प्रेम आराध्य सम पवित्र है ।
नेह अनुपमा विचित्र है ।।

मात पिता प्रीत अनुपम,
विष पीकर आशीष वृष्टि ।
सहन वहन कपूत अपमान,
पर उर पटल शुभता दृष्टि ।
गुरु शिष्य स्नेह अप्रतिम,
तिमिर पट प्रकाश जनित्र है ।
नेह अनुपमा विचित्र है ।।

सखा संबंध पुनीत पावन,
दुःख संकट सुरक्षा कवच ।
परम सेतु अंतरंगी आनंद,
प्रेरणा बचाव व्यर्थ प्रपंच ।
हंसी खुशी अनुराग उद्गम,
मूल आधार घनिष्ठ मित्र है ।
नेह अनुपमा विचित्र है ।।

देहरी की रौनक होती बेटियां

मनुज सौभाग्य जागृत,
असीम मंगलता गृह प्रवेश ।
सुख समृद्धि वैभव अनंत,
सौम्य सदाबहार परिवेश ।
दर्शन कर अनूप उपमा ,
सुलझती जीवन पहेलियां ।
देहरी की रौनक होती बेटियां ।।

हर कदम सृजन ओतप्रोत,
कुल वंश परिवार वंदन ।
धर्म कर्म परम शोभना,
मर्यादा सुसंस्कार मंडन ।
रक्षक राष्ट्र आन बान शान,
हृदय स्नेहिल अठखेलियां ।
देहरी की रौनक होती बेटियां ।।

रग रग शाश्वतता प्रवाह,
सशक्ति अनन्य गुणगान ।
आत्म विश्वास मैत्री बंधन,
संघर्ष पथ विजयी आह्वान ।
उत्तम श्रेष्ठ परिवार छवि,
माध्य साध्य मनोरम रैलियां ।
देहरी की रौनक होती बेटियां ।।

उत्संग प्रांगण अति शोभित,
स्तुति शीर्ष वत्सल श्रृंगार ।
अंतर्मन आनंद निर्झर,
संबंध मृदु अपनत्व आगार ।
पर्याय उद्गम ओज अनुपमा,
ध्येय सदा नतमस्तक चुनौतियां ।
देहरी की रौनक होती बेटियां ।।

प्रेम सदा उत्तीर्ण

निज स्वार्थ अस्ताचल बिंदु,
समता भाव सरित प्रवाह ।
त्याग समर्पण उरस्थ प्रभा,
स्पृहा मिलन दर्शन अथाह ।
पग पग कंटक शूल चुभन,
पर मुख मुस्कान तितिक्षा में ।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।

उच्च निम्न विभेद विलोपन,
दृष्टि आरेखित प्रियेशी छवि ।
विरोध कटाक्ष अपमान सर्वत्र,
सहन अनुपमा सदृश रवि ।
वृहत्त रूप जनमानस प्रश्न,
पर उत्तर शोभा दीक्षा में।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।

विष अंतर सुधा स्पंदन,
लोक हित आलोचना वहन ।
नेह अमिय धार अनंत,
प्रियल चाह नैतिकता गहन ।
आलोकित कर पर जीवन,
बाती श्रृंगार प्रणय अभिरक्षा में ।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।

संघर्ष बाधा पथ पर्याय,
संदेह चरित्र हाव भाव।
परंपरा मर्यादा प्रतिकूल बिंब,
परिवार समाज व्यंग्य घाव ।
शब्द स्वर द्विअर्थ अभिव्यंजना ,
वासना प्रहार शील संवीक्षा में ।
प्रेम सदा उत्तीर्ण,हर अग्नि परीक्षा में ।।

मेह अंतर नेह स्पंदन

अंग प्रत्यंग यौवन ,
घट पट उमंग लहर ।
संवाद पटल माधुर्य,
सर्वत्र खुशियां महर ।
बारिश बूंद प्रेयेसी सम,
रग रग चाह दर्शन वंदन ।
मेह अंतर नेह स्पंदन ।।

रिमझिम मधुर स्वर,
जीवन उत्सव अनुपमा ।
धरा हरितिमा चूनर ओढ़ ,
दुल्हन सा प्रणय रमा ।
रज रज तरूणाई अथाह,
तृषा भाव तृप्ति रंजन ।
मेह अंतर नेह स्पंदन ।।

अल्हड़ता पूर्ण व्यवहार,
हास्य परिहास मित्रों संग ।
दामिनी उग्र अठखेलियां,
मेघ मल्हार जीवन कंग ।
सुख समृद्धि वर वृष्टि,
विमुक्ति दुःख कष्ट बंधन।
मेह अंतर नेह स्पंदन ।।

अति सुरभित वन उपवन ,
प्रकृति आंचल अनुपम ।
गगन आभा मोहक सोहक,
जलद घटा आरेख उत्तम ।
तन मन पुनीत पावन,
परिवेश सुगंधि सम चंदन ।
मेह अंतर नेह स्पंदन ।।

डॉक्टर्स और सी.ए.,खुशियों के पर्याय

दैनिक जीवन शैली अंतर,
दोऊ भूमिका शुभ अहम ।
उत्तम उचित परामर्श प्रयास,
पेशा शपथ सफलता पैहम ।
सतत समर्पण श्रम अथाह,
प्रतिभा शीर्ष प्रेरणा अध्याय ।
डॉक्टर्स और सी.ए.,खुशियों के पर्याय ।।

मानव सेवा उत्थान ध्येय,
नैतिक धर्म अनूप निर्वहन ।
समस्या विकार तीव्र निदान ,
शोध अनुसंधान सदैव गहन ।
कदम चाल प्रगति संग,
अनुग्रह आरोग्य अर्थ संकाय।
डॉक्टर्स और सी.ए.,खुशियों के पर्याय ।।

राष्ट्र विकास परम योगदान,
स्वच्छ स्वस्थ जीवन कामना ।
अनुपालन विधिक प्रावधान,
कर्तव्य भाव सम आराधना ।
व्यक्ति सह उद्योग जगत,
सकारात्मकता अनंत प्रदाय ।
डॉक्टर्स और सी.ए.,खुशियों के पर्याय ।।

एक जुलाई अद्भुत विशेष,
पावन स्मृति श्री दिवस ।
वंदन अभिनंदन राष्ट्र पटल,
इतिहास व्यंजना पियस।
असीम हार्दिक शुभकामनाएं,
पुलकित हर्षित जीवन निकाय ।
डॉक्टर्स और सी.ए.,खुशियों के पर्याय ।।

हर हर गंगे,जय मां गंगे

हिंद उत्संग अति आह्लाद,
पुनीत दर्शन सरित छटा ।
मातृ उपमा संबोधन सेतु,
नित निर्माण आनंद घटा ।
दिव्य मर्म आंतरिक सौंदर्य,
स्कंद पुराण बखान कंगे ।
हर हर गंगे,जय मां गंगे ।।

हिमालय सुता मोहक अनुपमा,
जयेष्ठ शुक्ल दशमी अवतरण।
धन्य संपूर्ण देव धरा लोक,
सर्वत्र पावनता संचरण ।
महा रूपवती परम आभा,
मोहित सृष्टि रज रज मलंगे ।
हर हर गंगे, जय मां गंगे ।।

प्रथम दीर्घ सुआकार छवि,
पावन बहाव शृंगार उत्तम ।
उद्गम स्थल गंगोत्री हिमनद,
अंतस्थ भागीरथी अनुपम ।
मातृ वंदना अपनत्व संज्ञा,
मोक्षदायिनी प्रभा संगे ।
हर हर गंगे, जय मां गंगे ।।

भारतीय संस्कृति शोभना,
उपमित अनूप जीवन रेखा ।
अहम भूमिका कृषि उत्पादन,
हिंद तीर्थ परंपरा लेखा ।
नित वंदन अभिनंदन संकल्प,
संरक्षण प्रयास मूल रूप चंगे ।
हर हर गंगे, जय मां गंगे ।।

बारिश के मौसम में

बारिश के मौसम में,नेह परवान चढ़ रहा

उर हिलोरत आशा उमंग ,
धरा अनुभूत संसर्ग तृप्ति ।
बूंदों अंतर जीवन दर्शन,
रग रग उदय आनंद दीप्ति ।
प्रकृति रूप अल्हड़ जवां ,
परिणय स्वप्न अनूप गढ़ रहा ।
बारिश के मौसम में,नेह परवान चढ़ रहा ।।

परिवेश छटा नवल धवल,
रिमझिम प्रिय मधुर स्वर ।
मेघ दामिनी उग्र संवाद,
गर्जन उद्घोष सम सरवर ।
ग्रीष्म व्याकुल जीवन चक्र ,
स्नेह स्नेह विश्रांति ओर बढ़ रहा ।
बारिश के मौसम में, नेह परवान चढ़ रहा ।।

पेड़ पौधे जीव जंतु पटल ,
अनंत खुशियां संचरण ।
दृष्टि परिध हरित अनुपमा,
रज रज उल्लास अवतरण ।
हल हरकारी पुनीत श्रृंगार,
सुकाल मंगल मंत्र पढ़ रहा ।
बारिश के मौसम में, नेह परवान चढ़ रहा ।।

जीवन शैली मस्त मलंग,
सकारात्मक आचार विचार ।
दुःख कष्ट नैराश्य विलुप्त ,
जीवन उन्मुख आनंद विहार ।
प्रकृति अदा प्रियेसी सदृश,
मिलन अभिलाष हिय कढ़ रहा
बारिश के मौसम में, नेह परवान चढ़ रहा ।।

प्रणय से परिणय

प्रणय से परिणय तक,हर कदम चमक दमक

अलौकिकता अथाह दर्शन,
उरस्थ पुनीत कामनाएं ।
आशा उमंग उल्लास अथाह,
चितवन मृदुल भावनाएं ।
प्रति आहट मधुर स्वर,
जीवन प्रभा सम कनक ।
प्रणय से परिणय तक,हर कदम चमक दमक ।।

हर पल प्रियेसी संग,
मिलन हेतु सौम्य तत्पर ।
मुस्कान वसित भव्य छवि,
अनंत अंध विश्वास परस्पर ।
चाल ढाल परिधान अनूप,
मोहक हृदय स्वरिका खनक ।
प्रणय से परिणय तक,हर कदम चमक दमक ।।

परिवेश बयार आनंदिका,
नैसर्गिक दृश्य मनमोहक ।
संसर्ग विचार पीठिका,
सृजन सृष्टि सदैव रोहक ।
अंतर बिंदु कमनीय स्पर्श,
हाव भाव सौरभ जनक।
प्रणय से परिणय तक,हर कदम चमक दमक ।।

सप्त जन्म सहगम अनुबंध,
रग रग दैविक आभा व्याप्त ।
आह्लाद जीवन सुपर्याय भाषा,
सर्वत्र खुशियां विलुप्त संताप ।
राधा कृष्णमय अंतरंग तरंग,
विभूति व्यवहार चिंतन सनक ।
प्रणय से परिणय तक,हर कदम चमक दमक ।।

हिंद छवि

हिंद छवि अति मनभावन

इतिहास अनूप प्रेरणा पुंज,
साहस शौर्य उमंग ओतप्रोत ।
विराट जनतंत्र वैश्विक मंच,
उत्संग धर्मनिरपेक्षता ज्योत ।
जन गण मन अभिवंदन संग,
समरसता रज रज बिछावन ।
हिंद छवि अति मनभावन ।।

तिरंगी आन बान शान रक्षा,
दृढ़ संकल्प परम ध्येय ।
संघर्ष सहर्ष स्वीकार्य ,
अंतर्मन स्वर सदा अजेय ।
सुख दुःख अंतर सहभागिता,
परिवेश स्वच्छ स्वस्थ पावन
हिंद छवि अति मनभावन ।।

कृषि उद्योग सेवा पटल ,
प्रगति वैभव अप्रतिम दर्शन ।
अथक श्रम जप तप लगन ,
नित्य सफलता स्पर्शन ।
शिक्षा विज्ञान प्रौद्योगिकी सह,
खुशियां अतुलित आवन ।
हिंद छवि अति मनभावन ।।

प्राकृतिक छटा अद्भुत अनुपम,
जनमानस सदैव प्रफुल्लित ।
परा विरासत अनंत महत्ता,
संस्कार मर्यादा आरेख ललित ।
वसुधैव कुटुंबकम् मूल मंत्र,
सौंदर्य प्रभा सदृश सावन ।
हिंद छवि अति मनभावन ।।

रानी दुर्गावती

रानी दुर्गावती आत्मोत्सर्ग, सदा अनंत वंदन

मां दुर्गा सम ओज अनुपमा,
हिंद इतिहास विराट व्यक्तित्व ।
हर कदम राष्ट्र स्वाभिमान रक्षा,
शौर्य पराक्रम शोभित कृतित्व ।
आन बान शान गोंडवाना साम्राज्य ,
राष्ट्र धर्म निर्वाह अंतर मंडन ।
रानी दुर्गावती आत्मोत्सर्ग, सदा अनंत वंदन ।।

मात पिता माहोबा कीर्ति सिंह ,
अवतरण बांदा कालिंजर ।
परिणय गढ़ा राजा दलपत शाह,
वीर नारायण संतति प्रखर ।
मुगली चालें सदा निष्फल,
युद्ध कला अंतर शत्रु कंदन ।
रानी दुर्गावती आत्मोत्सर्ग, सदा अनंत वंदन ।।

निपुण घुड़सवारी तीरंदाजी सह ,
तलवार बाजी अठखेलियां ।
शेर शिकार विहार अति प्रिय ,
साधक अबूझ रणनीति पहेलियां ।
देश रक्षा जीवन परम ध्येय,
सौंदर्य प्रज्ञा सुरभि सम चंदन ।
रानी दुर्गावती आत्मोत्सर्ग, सदा अनंत वंदन ।।

राजकाज अद्भुत अनुपम,
हर कदम जन कल्याण कारी ।
सहज सुलभ न्याय व्यवस्था,
मातृभूमि सेवा संकल्प धारी ।
अनंत नमन वीर धीर नारी,
हिंद रज रज गौरव स्पंदन ।
रानी दुर्गावती आत्मोत्सर्ग,सदा अनंत वंदन ।।

जय भारत माता

जयति जय जय भारत माता

उत्तर अनुपमा पर्वत राज,
दक्षिण शोभा हिंद महासागर ।
पूर्व सघन सदाबहार वन ,
मरुस्थल पश्चिम स्नेह गागर ।
विविधता अंतर एकता भाव,
सदा देशभक्ति उमंग जगाता ।
जयति जय जय भारत माता ।।

उत्संग दिव्य वत्सल प्रभा,
हर दुःख कष्ट विलोपन ।
उन्नत अरुणिम भव्य ललाट,
घट घट अनंत आनंद रोपन ।
शिक्षा संग संस्कार प्रवाह,
उज्ज्वल भविष्य दीप जलाता ।
जयति जय जय भारत माता ।।

मर्यादा परंपरा निर्वहन अहम,
निज संस्कृति मान सम्मान ।
जीवन शैली उत्सव सदृश,
समाज पटल खुशियां आदान ।
नारी शक्ति वंदन अभिनंदन,
प्रगति नव पंख लगाता ।
जयति जय जय भारत माता ।।

सर्व धर्म समभाव छटा,
संबंध अंतर अपनत्व दर्शन ।
रज रज गंगा जमुनी सौहार्द ,
प्रेम भाईचारा सरित स्पर्शन ।
सेवानिष्ठ पारदर्शी शासन तंत्र,
हर नागरिक भाग्य विधाता ।
जयति जय जय भारत माता ।।

प्रकृति

प्रकृति की अदाओं का, हर चित्र अनूप है
गगन आभा अद्भुत अनुपम,
हिय पटल अनंत विस्तार ।
आत्मसात समग्र संज्ञा भाव,
सदा पितृ चरित्र अंगीकार ।
पुनीत पावन सानिध्य अंतर,
सूर्य चंद्र तारे मेघ छाया धूप है ।
प्रकृति की अदाओं का, हर चित्र अनूप है ।।

धरा उपमा मातृ सदृश,
उत्संग प्रवाह अमिय धार ।
पेड़ पौधे जीव जंतु सह ,
संपूर्ण प्राणी जगत आधार ।
परस्पर संतुलन दिव्य प्रयास ,
अंतःकरण शोभा नेह कूप है ।
प्रकृति की अदाओं का, हर चित्र अनूप है ।।

नदी सागर झील पोखर ,
प्रगति आशा उत्साह दीप ।
पर्वत पठार छवि मोहक ,
जैव विविधता भाव संदीप ।
दुल्हन सी इठलाती वर्षा,
खिलाती जनमानस रंग रूप है ।
प्रकृति की अदाओं का, हर चित्र अनूप है ।।

मरुस्थल सिद्ध योगी सम,
अनवरत जप तप साधना ।
प्रतिकूलता संग आनंद तरंग,
अल्प नीर महत्ता स्वीकारना ।
प्रकृति संरक्षण नैतिक कर्तव्य,
सदा शुभ पहल मंगल कूच है ।
प्रकृति की अदाओं का, हर चित्र अनूप है ।।

योग

योग,आत्म परिष्कार व उन्नयन पथ

शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य मंत्र,
पुरात्तन भारतीय विज्ञान कला ।
तन मन सदैव मस्त मलंग ,
उरस्थ सकारात्मक ओज पला ।
सुख समृद्धि वैभव अनूप द्वार ,
आशा उत्साह उमंग भाव मथ ।
योग,आत्म परिष्कार व उन्नयन पथ ।।

निज सह सामाजिक आरोग्यता,
योग साधना सरल सरस सेतु ।
परिवेश उत्संग नैसर्गिक आह्लाद,
हर कदम समग्र कल्याण हेतु ।
चुस्ती फुर्ती भावनात्मक एकता,
बौद्धिक तीक्ष्णता मंगल अथ।
योग,आत्म परिष्कार व उन्नयन पथ ।।

लोकमानस समरसता दर्शन ,
व्यवहार अंतर अपनत्व अथाह ।
क्रोध वैमनस्य मूल विलोपन,
जीवन शैली सात्विकता प्रवाह ।
सहज समाधान हर समस्या,
व्यक्तित्व कृतित्व शांति गथ।
योग,आत्म परिष्कार व उन्नयन पथ ।।

वर्तमान भौतिक चकाचौंध पटल,
योग साधना महत्ती भूमिका ।
अंकुश अवांछित आचार विचार ,
व्यक्तित्व निर्माण नैतिक तूलिका ।
जीवन प्रति पल आनंद जन्य ,
अंतर्मन आरूढ़ आराध्यता रथ ।
योग,आत्म परिष्कार व उन्नयन पथ ।।

मां बहन की गालियां

मां बहन की गालियां,सभ्य समाज पर कलंक

शिक्षा विज्ञान प्रगति लघुत्तर,
सामाजिक परिवेश शर्मिंदा ।
लोक संवाद निम्न व्यंजना ,
नारी अपमान सूचक निंदा ।
हर वय व्यक्ति आचरण झलक,
अश्लील शब्द प्रहार सम डंक ।
मां बहन की गालियां, सभ्य समाज पर कलंक ।।

उच्च उपाधि शान शौकत,
आसपास सभ्रांत ख्याति ।
पद प्रतिष्ठा अनंत आय श्रोत,
भोग प्रसाधन भांति भांति ।
पर उग्र आवेश बिंदु बेला,
अपशब्द प्रयोग सदृश रंक ।
मां बहन की गालियां, सभ्य समाज पर कलंक ।।

घर बाजार कार्यालय सर्वत्र ,
नारी संबंधित कटु वचन ।
रूप श्रृंगार निहार विहार ,
व्यक्तित्व चरित्रहीन विवर्चन ।
निज बहु बेटी आदर सम्मान,
अन्य प्रति वासना गलंक ।
मां बहन की गालियां, सभ्य समाज पर कलंक ।।

ग्राम्य जीवन अभिन्न अंग,
वार्तालाप अंतर बहुधा प्रयुक्ति ।
पाश्विक सोच विचार दर्शन,
अनैतिकता पूर्ण अभिव्यक्ति ।
आदर्श राष्ट्र निर्माण हित ,
दूर अमानुषी विकृति अविलंब ।
मां बहन की गालियां, सभ्य समाज पर कलंक ।।

हिंदुस्तान हमारा

जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा

धरा अंतर सौंधी सुगंध,
अनंत स्नेह प्रेम वंदन ।
अद्भुत अनुपम संस्कृति,
रग रग अपनत्व स्पंदन ।
अतिथि देवो भव मूल मंत्र,
उत्संग समरसता पसारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा,शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।

अदम्य साहस शौर्य गाथा
स्वाभिमान रक्षित इतिहास ।
प्रतिदिन उत्सविक परिवेश,
संघर्ष सह विजय उल्लास ।
सर्व धर्म समभाव सर्वत्र,
नित अंकुरित भाई चारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा,शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।

विविधता अंतरंग एकता,
जनमानस देशभक्ति सराबोर ।
शिक्षा विज्ञान अग्र कदम,
विकास क्षेत्र कीर्तिमानी भोर ।
नारी जगत सशक्ति पर्याय,
घर द्वार प्रगति उजियारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।

संबंध शोभा समर्पण भाव ,
मर्यादा संस्कार अनुपालन ।
परा परंपरा अमूल्य विरासत,
अंतःकरण आत्मीयता बिछावन ।
पर्यावरण संरक्षण चेतना अथाह,
वसुधैव कुटुंबकम् वत्सल धारा ।
जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा ।।

वीर शहीद अजय कुमावत

शहीद अजय के वंदन में,श्रद्धा सुमन अर्पित हैं

धन्य वीर प्रसूता धरा जाखल,
अजय कुमावत शहादत उपमा ।
अठारह जून उत्सर्ग वात्सरिकी ,
रज रज अभिभूत राष्ट्र प्रेम रमा ।
दिव्य भव्य मूर्ति प्रतिष्ठा स्थल,
अथाह देश भक्ति लहरें दर्शित हैं ।
शहीद अजय के वंदन में,श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।।

दो हजार बीस अद्भुत वर्ष,
राष्ट्र रक्षा हित वीर गति ।
सियाचिन ग्लेशियर कर्तव्यरत,
तेरह वर्ष सैन्य सेवा सह जति ।
नायक अंतर महानायक दर्श,
सदा तिरंगी अठखेलियां हर्षित हैं ।
शहीद अजय के वंदन में,श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।।

वीर परिवार राष्ट्र अनुपमा,
देश हेतु अप्रतिम बलिदान ।
मात पिता विद्या जी परमेश्वर जी,
सदैव ऋणी आभारी हिंदुस्तान ।
देख वीरांगना पूनम वीर पुत्री हंसवी,
नयनन अश्रुधार संग गर्वित हैं।
शहीद अजय के वंदन में,श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।।

शहादत स्मृत बेला अनूप,
समस्त ग्राम वासी भाव विभोर ।
अंतःकरण राष्ट्र सेवा रक्षा भाव,
परिवेश अजय जयकार सराबोर ।
युवा पीढ़ी जोश उत्साह अनंत
अंतर्मन राष्ट्र संकल्पनाएं उत्सर्जित हैं ।
शहीद अजय के वंदन में,श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।।

लव एंगल

लव एंगल,नेह की मृदुल अभिव्यक्ति

प्रेम जप तप लगन ,
तन मन मुदित भाव ।
निहार अक्स आकर्षण,
जीवन सौम्य शीत छांव ।
संकेत अर्थ अभिव्यंजना ,
मधुर श्रोत चाहना युक्ति ।
लव एंगल,नेह की मृदुल अभिव्यक्ति ।।

पुनीत पावन अंतःकरण,
मैत्री अभिलाष परिवेश ।
हर पल आनंद जन्य,
शुभ मंगल उर भावेश ।
स्नेहिल कदम चाल ढाल,
मुखमंडल मुस्कान प्रयुक्ति ।
लव एंगल, नेह की मृदुल अभिव्यक्ति ।।

हर रूप प्रतिरूप छवि,
सम्मोहन रग रग व्याप्त ।
अधर तृप्ति भावना,
साधना परम बिंदु प्राप्त ।
देव तुल्य दर्शन माला,
हर आहट अनुराग स्वरोक्ति ।
लव एंगल, नेह की मृदुल अभिव्यक्ति ।।

हिय प्रिय संवाद सेतु,
प्रीत अनुबंध प्रस्तावक ।
हाव भाव सौरभमय,
परवर सम स्तुति धारक ।
सोच विचार मोहक आभा,
प्रणय पटल समर्पण उक्ति।
लव एंगल, नेह की मृदुल अभिव्यक्ति ।।

मणिकर्णिका

मणिकर्णिका,अदम्य साहस की अवतारी

संघर्षमय जीवन गाथा,
बाल्यावस्था मातृ हीन ।
पितृ छाया प्रेरणा बिंब,
राष्ट्र धर्म अंतर तल्लीन ।
उर आंग्ल प्रतिशोध ज्वाला ,
देश रक्षा दृढ़ संकल्प धारी ।
मणिकर्णिका,अदम्य साहस की अवतारी ।।

शस्त्र शास्त्र सिद्ध हस्त,
शत्रु विरुद्ध हौसली ललकार ।
परिणय झांसी नरेश संग ,
लक्ष्मी बाई नाम श्री आधार ।
अथाह वेदना पति पुत्र बिछोह ,
पर अविचल राष्ट्र धर्म जयकारी ।
मणिकर्णिका,अदम्य साहस की अवतारी ।।

प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन,
अनूप प्रेरणा पुंज भूमिका ।
तांत्या टोपे सह रणनीति ,
नारी सशक्ति दल नीतिका ।
सैन्य सौष्ठव मोहक रोहक,
प्रदत्त प्रमुख पद झलकारी ।
मणिकर्णिका,अदम्य साहस की अवतारी ।।

अंग्रेजी दमन नीति रीति ,
मनु हर कदम प्रतिकार ।
छबीली जोश उत्साह अनंत,
पवन सारंगी बादल सूत्रधार ।
सौंदर्य चातुर्य अनुपमा अद्भुत,
हिंद रज रज सदा आभारी ।
मणिकर्णिका,अदम्य साहस की अवतारी ।।

मोबाइल के चक्कर में

जीवन शैली बदल रही, मोबाइल के चक्कर में

मोबाइल क्रांति अद्भुत अनुपम,
हर व्यक्ति पहुंच सहज सरल।
समय महत्ता गौण बिंदु ,
आधिक्य प्रयुक्ति मधुर गरल ।
एकांकी आनंद अनुभूत अथाह ,
पर नैसर्गिक दूरियां मक्कर में ।
जीवन शैली बदल रही, मोबाइल के चक्कर में ।।

दिशा भ्रमित युक्ति अनुप्रयोग ,
सही गलत समझ अभाव ।
परिवार जन हस्तक्षेप राह ,
शत्रुवत प्रयोगकर्ता बर्ताव ।
अनावशक सामग्री दर्शन कर,
मनो व्यवहार अवांछित टक्कर में ।
जीवन शैली बदल रही, मोबाइल के चक्कर में ।।

उठना बैठना खाना पीना ,
हर काम संग उपयोग अति ।
एकाग्रता मूल तहस नहस ,
लघु स्तर मनुज मति गति ।
हर वय व्यक्ति जकड़न परिध ,
भविष्य चिंता आरेख़ दर्श लक्कर में ।
जीवन शैली बदल रही, मोबाइल के चक्कर में ।।

परिवार समाज मुस्कान मंद,
रिश्ते नाते महज औपचारिक ।
स्व चल यंत्र महत्ता परम,
वैचारिक स्तर कृत्रिम अनैतिक ।
मौलिक संवाद विलोपन पथ ,
मानवता संवेदनहीन फक्कर में ।
जीवन शैली बदल रही, मोबाइल के चक्कर में ।।

जीत की प्रीत में

जीत की प्रीत में, अग्नि जिगीषा अंगीकार कर

निज शक्ति यथार्थ आकलन ,
लक्ष्य निर्धारण अहम बिंदु ।
दृढ़ संकल्प समर्पण भाव ,
अथक श्रम चाह अंतर सिंधु ।
उचित समय सही मार्गदर्शन,
आत्म विश्वास मैत्री आगार भर ।
जीत की प्रीत में, अग्नि जिगीषा अंगीकार कर ।।

संघर्ष पथ पर अविचलित ,
साहस शौर्य संग सामना ।
अविस्मृत कर आलोचनाएं ,
उत्साह उमंग उर भावना ।
सकारात्मक सोच आत्मसात ,
सतत कर्म साधना लक्ष्य धार पर ।
जीत की प्रीत में, अग्नि जिगीषा अंगीकार कर ।।

असंभव शब्द विलोपित,
निज जीवन कोश पटल।
अग्र कदम नव जोश भर,
अदम्य हौसली उड़ान अटल ।
अंतःकरण सूर्य चंद्र प्रभा,
शीतल ओज नव श्रृंगार धर ।
जीत की प्रीत में,अग्नि जिगीषा अंगीकार कर ।।

निशि दिन सुबह शाम,
संकल्प सिद्धि आराधना ।
आभा मंडल भव्य मुस्कान ,
पथ कंटक बाधा सामना ।
अनुशासित अनूप कार्यशैली,
सफलता सदा श्रम फलन असर ।
जीत की प्रीत में, अग्नि जिगीषा अंगीकार कर ।।

बारिश की पहली बूंद

बारिश की पहली बूंद, प्रेयसी सम

रज रज तरूणाई दर्शन,
तृषा भाव तृप्ति ओर।
स्वप्न पटल यथार्थ पंख,
जीवन अंतर आशा भोर ।
धरा हरित श्रृंगार आतुर ,
प्रणय उमंग हर कदम ।
बारिश की पहली बूंद, प्रेयसी सम ।।

हाव भाव मस्त मलंग,
अल्हड़ता अंग प्रत्यंग ।
मृदुल मधुर स्वर अधर,
मेघ मल्हार जीवन कंग ।
निहार दामिनी शेख अदाएं ,
अंतर्मन खुशियां ज्योत उत्तम ।
बारिश की पहली बूंद, प्रेयसी सम ।।

भीनी भीनी सौरभ सर्वत्र,
विहंग अनूप अठखेलियां।
अति आह्लादित प्राणी जग,
हिया जिया मयूरी रंगरलियां ।
रग रग नव अंकुरण ओज ,
कृषि जोत संसर्ग श्री प्रक्रम ।
बारिश की पहली बूंद, प्रेयसी सम ।।

सुरभित उपवन बाग बगीचे ,
प्रकृति उत्संग आनंद संचार ।
गगन आभा मोहक सोहक ,
सकारात्मकता जीवन आधार ।
तन मन नवयौवन उभार ,
चाह नेह सुख समृद्धि रिदम ।
बारिश की पहली बूंद, प्रेयसी सम ।।

सावित्री आराधना

अखंड सौभाग्य वर वृष्टि,वट सावित्री आराधना से

ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या अद्भुत,
सर्वत्र धर्म आस्था सरित प्रवाह ।
अविरल सुखद दांपत्य चाहना,
अंतर्मन ज्योत दिव्यता अथाह ।
नारी शक्ति भक्ति पथ अनुपम,
रग रग अभिभूत समर्पण भावना से ।
अखंड सौभाग्य वर वृष्टि,वट सावित्री आराधना से ।।

सावित्री सम दृढ़ संकल्पित,
सृष्टि पटल हर सुहागिन ।
स्मृत सत्यवान प्राण रक्षा ,
श्रृंगार सदृश दिव्य जोगिन ।
सुख समृद्धि आरोग्यता संग ,
दीर्घ वय कामना अनूप साधना से ।
अखंड सौभाग्य वर वृष्टि वट सावित्री आराधना से ।।

बरगद वृक्ष अनुपमा अप्रतिम,
पर्ण पटल मुरलीधर वास ।
ब्रह्मा विष्णु महेश आभा,
वट उत्संग स्थाई निवास ।
नित्य प्राप्त पावन आशीष,
अंतःकरण मंगल याचना से ।
अखंड सौभाग्य वर वृष्टि,वट सावित्री आराधना ।।

हिंद संस्कृति सावित्री चरित्र,
सदैव प्रेरक आराधित व्यक्तित्व ।
उपमा वेद मां गायत्री सरस्वती ,
लोक गुणगान दर्शित अपनत्व ।
सुहागिन महाव्रत भव्य बेला,
परिवेश सुरभित आध्यात्म सुवासना से ।
अखंड सौभाग्य वर वृष्टि, वट सावित्री आराधना से ।।

विश्व पर्यावरण दिवस

आओ कदम बढ़ाएं, पर्यावरण संरक्षण की ओर

प्रकृति छटा अद्भुत अनुपम,
रज रज मृदुलता स्पंदन ।
पावन सानिध्य प्राणी जगत,
सर्वत्र अथाह आनंद मंडन ।
संतुलन बिंदु परम महत्ता ,
सदा शुभ मंगल जीवन भोर ।
आओ कदम बढ़ाएं, पर्यावरण संरक्षण की ओर ।।

वृक्ष अनुपमा मित्रवत सम,
सुख समृद्धि अनूप भंडार ।
उरस्थ परोपकार भावना ,
संकट बिंब सहयोग आधार ।
उद्गम श्रोत दिव्य प्राण वायु,
हर पल नियंत्रित श्वांस डोर ।
आओ कदम बढ़ाएं, पर्यावरण संरक्षण की ओर ।।

वृक्षारोपण अति उत्तम काज ,
हर व्यक्ति नैतिक जिम्मेदारी ।
धर्म कर्म उत्सव त्योहार बेला,
पौधा रोपण नित्य शुभकारी ।
अभिवृद्धित उच्च तापमान हित,
वृक्षारोपण समग्र प्रयास पुरजोर ।
आओ कदम बढ़ाएं ,पर्यावरण संरक्षण की ओर ।।

भूमि पुनर्स्थापना पहल संग,
मरुस्थलीकरण अंकुश अहम ।
अकाल आपदा सहज निदान ,
जीवन अंतर नैसर्गिक पैहम।
तज अंध भौतिक प्रगति पथ,
शपथ प्रकृति अभिरक्षा छोर ।
आओ कदम बढ़ाएं, पर्यावरण संरक्षण की ओर ।।

लोकतंत्र का विजय पर्व

हिंद के उत्संग में, लोकतंत्र का विजय पर्व

चार जून दो हजार सौ चौबीस,
अद्भुत अनुपम विशेष ।
लोकसभा चुनाव परिणाम बेला,
राष्ट्र पटल खुशियां अधिशेष ।
मतदाता समर्थन शिरोधार्य,
अति आह्लादित जनतंत्र नर्व ।
हिंद के उत्संग में,लोकतंत्र का विजय पर्व ।।

दल उम्मीदवार हार जीत ,
मात्र एक समीक्षात्मक बिंदु ।
चयनित प्रतिनिधित्व समग्र क्षेत्र,
हिय अंतर सम भाव सिंधु ।
प्रजातंत्र प्रकृति नित मनोरम,
प्रगति पथ सहभागिता सर्व ।
हिंद के उत्संग में,लोकतंत्र का विजय पर्व ।।

अठारहवीं लोकसभा दिव्य भव्य,
पक्ष विपक्ष उत्तम आदर्श छवि ।
पूर्व राज काज परिवर्तन मंथन,
नव ओज अनुपमा सदृश रवि ।
नीति रीति अनूप राष्ट्र निर्माण हित ,
चर्चा वाद विवाद सार्थकता तर्व ।
हिंद के उत्संग में,लोकतंत्र का विजय पर्व ।।

अनंत हार्दिक शुभकामनाएं ,
समस्त माननीय नव सदस्यगण ।
राष्ट्र अभिलाषाएं चैतन्य राह,
असीम आनंद भारती श्री चरण ।
उज्ज्वल भविष्य आतुर देश धरा ,
सदा शोभित सुरभित तिरंगी गर्व ।
हिंद के उत्संग में,लोकतंत्र का विजय पर्व ।।

नागरिक धर्म निर्वहन

नागरिक धर्म निर्वहन को, पुकार रही मां भारती

स्वच्छ स्वस्थ भव्य परिवेश,
प्रकृति संग गहरा नाता ।
सबल तन मन अनुपमा,
सदा भारत भाग्य विधाता ।
सर्व धर्म समभाव पटल,
स्नेह प्रेम भाईचारा निहारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

भौतिक मृग मरीचिका तज,
नैसर्गिकता संग गठबंधन ।
अहम भूमिका वृक्षारोपण,
जीवन सुरभि सम चंदन ।
दया करुणा जीव जंतु जगत,
मानवता शीर्ष भाव बिसारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

मोबाईल यथोचित प्रयोग,
हर व्यक्ति संचेतन बिंदु ।
समय महत्ता सदा अनमोल ,
सदुपयोग सफलता सिंधु ।
निज संस्कृति संस्कार वंदना,
वरिष्ठजन श्री चरण पखारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

शिक्षित सभ्य परिवार समाज,
विकसित राष्ट्र परम धुरी ।
सकारात्मकता रज रज व्याप्त,
नारी सशक्ति प्रगति पंखुरी ।
स्नेहिल तिरंगी छात्र छाया अंतर,
देश भक्ति प्रेरणा बन हलकारती ।
नागरिक धर्म निर्वहन को,पुकार रही मां भारती ।।

प्रणय से प्रणव तक

प्रणय से प्रणव तक,सदा अलौकिक अनुभूति

सृष्टि अंतर नेह दिग्दर्शन,
ओंकार अनूप परिभाषा ।
दृष्टि पट नैसर्गिक बिंब,
स्नेहिल स्पर्शन अभिलाषा ।
हर पल आनंद निर्झर,
तन मन चाह श्रृंगार भभूति ।
प्रणय से प्रणव तक,सदा अलौकिक अनुभूति ।।

जीवन अनुपमा अद्भुत,
रज रज वसित प्रियल छवि ।
रग रग स्पंदन मंगलता ,
अभिव्यक्ति ओज सम रवि ।
अंतर्मन प्रीत उद्गम बिंदु,
परस्पर संबंध अपनत्व विभूति ।
प्रणय से प्रणव तक,सदा अलौकिक अनुभूति ।।

प्रसूनी सौरभ कंटीली राह,
अधर शोभित भव्य मुस्कान ।
उत्साह उमंग उर ज्योति ,
संघर्ष बाधा विजय आह्वान ।
शब्द अर्थ उत्तमा अनुपम,
समर्पण तत्पर प्रेरणा सूक्ति ।
प्रणय से प्रणव तक,सदा अलौकिक अनुभूति ।।

मृदुल मधुर आहट स्वर,
प्रति आकृति सौंदर्य झलक ।
चिंतन आरेख सकारात्मकता,
उग्र आवेश विसर्गी ललक ।
उर कलियां मस्त मलंग,
सदैव आतुर संसर्ग संभूति ।
प्रणय से प्रणव तक,सदा अलौकिक अनुभूति ।।

आओ जानें, अपने भारत देश को

वसुधैव कुटुंबकम् मूल मंत्र,
विविध सांस्कृतिक अनुपमा ।
क्षेत्रफल सप्तम वृहत आकार,
जनसंख्या द्वितीय स्थान रमा ।
विशालतम लोकतंत्र राष्ट्र छवि,
अनंत नमन तिरंगी सर्वेश को ।
आओ जानें,अपने भारत देश को ।।

दिव्य भव्य अठाईस राज्य,
आठ केंद्र शासित प्रदेश अनूप ।
सात सौ सत्तानवे जिले मोहक,
उत्तर शोभा हिमालय भूप ।
दक्षिण हिंद सागर पूर्व बंगाल खाड़ी,
पश्चिम अरब सागर आतुर भू प्रवेश को।
आओ जानें,अपने भारत देश को ।।

भारत वर्ष जंबू द्वीप हिन्दुस्तान सह ,
आर्यावर्त अजनाभ संबोधन संज्ञा ।
हिम वर्ष अलहिंद ग्यागर फग्युल संग,
लियानझू होडू परा उपनाम प्रज्ञा ।
आंग्ल राज इंडिया प्रचलन,
दिग्भ्रमित कर जन आवेश को।
आओ जानें, अपने भारत देश को ।।

दुग्ध पशुधन जूट बाजरा आम व ,
अदरक केला सर्वाधिक उत्पादन ।
स्वर्ण आभूषण उपभोग प्रथमा,
कृषि अर्थव्यवस्था अहम संसाधन ।
पंचम विकसित आर्थिक तंत्र ,
आय अर्जन श्रेय सेवा क्षेत्र परिवेश को ।
आओ जानें ,अपने भारत देश को ।।

सुमंगलता का आह्वान,स्वस्तिक वाचन से

हिंदू संस्कृति कर्म धर्म अंतर,
स्वस्तिक मंत्र अति महत्ता ।
पुनीत अंतर्मन कामनाएं,
सहज सानिध्य परम सत्ता ।
चहुं दिशा सह्रदय अभिवंदन ,
दैवीय स्पंदन सुवासन से ।
सुमंगलता का आह्वान, स्वस्तिक वाचन से ।।

परिणय पूजन यज्ञ सह,
हर काज सुफलन सहज सेतु ।
सुकारक सुख समृद्धि शांति,
त्वरित समाधान उग्र राहु केतु ।
पौराणिक रक्षा कवच अनुपमा,
आनंद अथाह परावर्तन से ।
सुमंगलता का आह्वान, स्वस्तिक वाचन से ।।

विनायक शारदे अंबिका अन्य देव,
स्नेहिल आहूत परिध क्षेत्र ।
अंतःकरण नैतिकता परिसंचरण,
सुगम्य पथ प्रशस्त तृतीय नेत्र ।
प्रेरणा पुंज सकारात्मक प्रभाव ,
मांगलिक अनुष्ठान निष्पादन से ।
सुमंगलता का आह्वान, स्वस्तिक वाचन से ।।

तन मन धन अभिवृद्धि ,
आरोग्य वैभव अपार ।
सरित प्रवाह उत्साह उमंग,
उर स्वर ओज जय जयकार ।
सृष्टि दृष्टि उत्तम चिन्मय श्रृंगार ,
सर्व कल्याण भव प्रतिपादन से ।
सुमंगलता का आह्वान, स्वस्तिक वाचन से ।।

चाहत के मौन गलियारों में, नेह का मृदुल स्पंदन

अंतरंग नवल आभा,
अधर सौम्य मुस्कान ।
परम स्पर्शन दिव्यता,
यथार्थ अनूप पहचान ।
मोहक स्वर अभिव्यंजना,
परिवेश उत्संग सुरभि चंदन ।
चाहत के मौन गलियारों में, नेह का मृदुल स्पंदन ।

अनुभूति सह अभिव्यक्ति ,
मिलन अहम अभिलाषा ।
कृत्रिमता विलोपन पथ,
प्रस्फुटित नैसर्गिक भाषा।
अंतर्नाद मंगल मधुर,
नैतिकता व्यवहार मंडन ।
चाहत के मौन गलियारों में, नेह का मृदुल स्पंदन ।।

हर पल हर आहट पर,
भव्यता अथाह अवतरण ।
कल्पना मूर्त रूप अल्पना ,
आनंद असीम परिसंचरण ।
मुखमंडल अति ओज प्रभा,
पुनीत दर्शन अनंत वंदन ।
चाहत के मौन गलियारों में, नेह का मृदुल स्पंदन ।।

सुबह शाम निशि दिन,
हिय वसित एक ही रूप।
धूप छांव बिंब परिलक्षित,
अनुपम मोहिनी प्रतिरूप ।
अभिस्वीकृति प्रस्ताव संकेतन,
प्रेम अनुबंध आदर अभिनंदन ।
चाहत के मौन गलियारों में, नेह का मृदुल स्पंदन ।।

नौ तपा अंतर, मस्त मलंग मानसूनी बहार

नौ दिवस प्रचंड उष्ण अनुपमा,
सहज सरस नौ तपा परिभाषा ।
ज्येष्ठ मास श्री गणेश बेला,
तपन जपन मानसून अभिलाषा ।
सूर्य देव रोहिणी नक्षत्र प्रवेश बिंदु,
आद्रा संग वर्षा दर्शन साकार ।
नौ तपा अंतर, मस्त मलंग मानसूनी बहार ।।

पच्चीस मई सह दो जून तक,
वर्तमान वर्ष नौ तपा काल ।
अरुण देव अरुणिमा अद्भुत,
अति उष्ण शोभा वसुधा भाल ।
साधना उपासना शीर्ष स्तर ,
मानव उन्मुख सेवा परोपकार ।
नौ तपा अंतर, मस्त मलंग मानसूनी बहार ।।

शीतल पेय दुग्ध दधि सह ,
नारियल जल सेवन उचित ।
आधिक्य समय गृह विश्राम,
व्यर्थ भ्रमण सर्वदा अनुचित।
धरा धीर वंदन अभिनंदन ,
उष्ण बचाव उपाय जीवन सार ।
नौ तपा अंतर, मस्त मलंग मानसूनी बहार ।।

भास्कर अवनि नेह अप्रतिम,
दूरी विलोपन भाव समीप ।
रश्मि पुंज भू अपनत्व असीम,
अनिरुद्ध पथ स्नेहिल दीप ।
अनंत स्तुति भास्कर श्री चरण ,
सुवृष्टि कृपा आनंद अपार ।
नौ तपा अंतर, मस्त मलंग मानसूनी बहार ।।

लू की आहुतियों संग

लू की आहुतियों संग,रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी

उच्च उष्ण मरुस्थल अंतर,
रज रज सरित ताप प्रवाह ।
विचलित जनमानस प्रभा,
सर्वत्र सावधानी बचाव अथाह ।
मानव सह जीव जंतु व्याकुल,
पेयजल हित दर्शित मारामारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।

बालू माटी तपीश अद्भुत ,
तज जीवन संग प्रीत ।
पेड़ पौधे खड़े साधक सम,
छाया माया आशा गीत ।
शांत विश्रांत परिवेश उत्संग,
हाव भाव सकल आज्ञाकारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।

अस्त व्यस्त अनिवार्य सेवाएं ,
विद्युत पेयजल गहन संकट ।
शासन प्रशासन चौकस बिंदु ,
उचित प्रबंध समस्या विकट ।
शीघ्र वैकल्पिक समाधान बिंब,
प्रयास संतुलित व्यवस्थाएं सारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।

उष्ण रूप रुद्र विकराल ,
प्रभावित जनजीवन रंग ढंग ।
विरान सदृश सड़क बाजार ,
शीतलता सानिध्य जीवन कंग ।
दर्श कर प्राणी जगत पीड़ा,
पेयजल सेवा हर मनुज नैतिक जिम्मेदारी ।
लू की आहुतियों संग, रेगिस्तानी तप यज्ञ जारी ।।

संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में

सर्व समाज पाणिग्रहण संस्कार,
दिव्य अनुष्ठान सदृश महत्ता ।
श्री वंदित मर्यादा परंपरा,
सुसंचालन कारक सृष्टि सत्ता ।
पर विगत कुछ वर्ष अंतर,
योग्य वर परिभाषा दर्शन स्वाह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।

हर वधु मात पिता दिग्भ्रमित,
ध्येय सरकारी सेवक चाहना।
विस्मृत कर चाल चरित्र गुण,
बस अभिलाषा निर्मूल सराहना ।
राजकीय सेवा मृग मरीचिका सम,
अनंत सर्वश्रेष्ठ वर निजी क्षेत्र गाह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।

लघु मानसिकता परिणाम,
वर वधु परिणय वय पार ।
असंतुलित दांपत्य जीवन ,
विचलन पथ आहार विहार ।
समाज समक्ष ज्वलंत प्रश्न,
अब उत्तर बिंब हर निगाह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।

समुदाय पटल हर काम उत्तम,
अनंत जीविका श्रोत माध्य ।
नैतिक कर्तव्य निर्वहन संग,
हर पल प्रेम खुशियां साध्य ।
चिंतन मनन बेला बुद्धिजीवी वृंद ,
प्रदत्त सही मार्गदर्शन वैवाहिकी राह में ।
संकीर्ण सोच रोड़ा बनी, लड़कों के विवाह में ।।

शब्दाक्षर

शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार

हिंदी उत्संग मोहक रोहक,
सहज सरस भाषाई बोध ।
शब्द अक्षर ब्रह्म अनुपमा,
अर्थ अभिव्यंजना पथ शोध ।
आरेख छवि हर्षल प्रियल,
प्रदत्त शिक्षण अधिगम सौम्य आकार
शब्दाक्षर अंतर,सरित अमिय धार ।।

स्वर व्यंजन दिव्य योग,
भाव धरातल अति उत्तम ।
वाक्य निर्माण अद्भुत कला,
लिखना पढ़ना आराध्य श्रम ।
लिपि संग आह्लाद अनंत,
चितवन अनुभूत अपनत्व अपार ।
शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार ।।

गद्य पद्य व्याकरण अनूप,
शोभित संज्ञा सर्वनाम विशेषण ।
कारक संधि पर्याय विलोम ,
उपसर्ग प्रत्यय शुद्धता अन्वेषण ।
काव्य श्रृंगार मनोरम छटा ,
अविरल मस्त मलंग नव रस बहार ।
शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार ।।

नेह उद्गम गुरु शिष्य वृंद घट,
प्रतिभा उन्नयन सतत प्रयास ।
मृदुल समाधान क्लिष्टता पट,
राष्ट्र भक्ति उत्कर्ष उल्लास ।
हर विधा पुलकित पारंगत,
प्रगति सफलता स्पंदन सार ।
शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार ।।

विश्व दूरसंचार दिवस

इंटरनेट की अदाओं पर,सारी दुनिया मरती है

वैश्विक पटल इंटरनेट महत्ता,
आज प्राण वायु सम अहम ।
हर वय जन कायल घायल,
पुलकित अंग प्रत्यंग पैहम ।
युक्ति प्रयुक्ति आलोक पुंज,
सदा सघन तिमिर हरती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर, सारी दुनिया मरती है ।।

दैनिक जीवन काम काज,
अंतर जाल मृदुल स्पंदन ।
त्वरित निष्पादन पारदर्शिता,
पुष्टि त्रुटि सहज संदेश मंडन ।
दक्षता कौशल अभिजागर बन,
प्रगति नव पथ प्रशस्त करती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर,सारी दुनिया मरती है ।।

शिक्षा चिकित्सा व्यापार क्षेत्र,
अदम्य हौसलों संग उड़ान ।
संभव कर स्वप्न मालाएं,
नित नव कीर्तिमानी जड़ान ।
गमन कर समाधान पथ पर ,
समस्या मूल कारण परखती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर, सारी दुनिया मरती है ।।

मोबाइल सही उचित प्रयोग,
वर्तमान समय मंथन बिंदु ।
सदुपयोग अंतर मैत्री भाव
ज्ञान विज्ञान नवाचारी सिंधु ।
प्रतिभा उत्कर्ष प्रेरणा रूप धर,
जीवन पट अनंत खुशियां भरती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर, सारी दुनिया मरती है ।।

अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस

खुशियों के प्रसून खिलते,अपनत्व के उपवन में

पुलकित प्रफुल्लित अंतरतम,
प्रेम सुधा सरित प्रवाह ।
सुख समृद्धि शांति सद्भाव ,
उत्संग पटल नैतिकता अथाह ।
मान सम्मान मर्यादा परंपरा,
सुसंस्कार दीप्ति चितवन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

विपन्नता संकट स्थिति,
एकता रूप दिव्य कवच ।
अप्रतिम परस्पर दर्शन बिंब,
स्वप्न मालाएं स्पंदन सच ।
याचनाएं नित्य अवतरित,
त्रुटि भूल मन कर्म वचन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

नेह सिंधु अंतर शोभा,
आत्मिक स्पर्श प्रति पल ।
पटाक्षेप एकाकी भाव ,
कर कदम प्रतिरूप सकल ।
विलोप संकीर्ण मानसिकता,
सकारात्मकता दर्शन उन्नयन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

संघर्ष पथ सहभागी प्रयास,
सफलता संग उत्सविक आह्लाद ।
समस्या समाधान समग्र चिंतन,
वरिष्ठ आशीष उमंग प्रतिपाद ।
उत्तम चरित्र निर्माण कला,
संबंध महत्ता उन्मेष कनन जनन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

तिलक शुभता का परिचायक

हिंदू संस्कृति मस्तक शोभा,
आध्यात्मिक सात्विक पहचान ।
आत्मविश्वास अभिवृद्धि कारक,
उत्तम व्यक्तित्व ओजस्वी शान ।
मेघा बिंदु संचेतन अथाह,
ग्रह शांति अमोध फलदायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

नर नारी दोऊ सम महत्ता,
पूजा अर्चना अभिन्न अंग ।
धर्म आस्था आत्मिक स्पर्श,
आवेश हरण शीतलता कंग ।
नैतिक विचार सरित प्रवाह,
रग रग सकारात्मकता नायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

मृतिका भस्म चंदन रोली सह
सिंदूर गोपी विविधा प्रकार ।
पृथक विधान मत परंपरा,
जीवन शैली उत्सविक आधार ।
एकाग्रता स्मरण शक्ति संग,
अनंत आरोग्य आनंद विधायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

सुषुम्ना इड़ा पिंगला शोभना,
दिव्य चक्षु परम स्थान ।
आज्ञा चक्र जागृत बिंब,
तेजपुंज ललाट वरदान ।
अंतर्मन नित निर्मल पावन,
सुख समृद्धि वैभव प्रदायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

मातृ वंदना दिवस

हे मां तुझे प्रणाम

नेह सिंधु अथाह मधुरिम,
पुलक हुलस भाव सरस ।
उमड़ घुमड़ लहर लहर,
रिमझिम रिमझिम बरस ।
स्नेहिल मोहक उत्संग प्रभा,
अपनत्व अर्णव मंगल धाम ।।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

प्रति पल संतति व्याकुलता,
तरस तरस दृग वृष्टि।
तृषित तप्त उर पीर,
तपन हर हृदय पुष्टि ।
धर मुस्कान आभा मंडल,
सुसंस्कार मंडन अविराम ।।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

नीरस शुष्क दग्ध तन मन ,
दर्शन कर आनंद तृप्ति ।
शीतल सजल छाया कंग
अंतरतम आलोक युक्ति ।
प्रेरणा सेतु उत्सविक ज्योत,
उत्साह उमंग जोश सुकाम ।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

पुनीत दर्श परम सौभाग्य,
घट मंदिर सदैव पावन।
पेय माध्य मृदु सरस सुधा ,
मानस खुशियां बिछावन ।
आशीष वर रज रज धन्य,
परिवेश छवि ललित ललाम ।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

प्रकृति के उत्संग में

प्रकृति के उत्संग में, अथाह उत्साह उमंग

खिलखिलाकर हंसना,
प्रसून सदा सिखाते ।
देख कलिका श्रृंगार,
हम मंद मंद मुस्काते ।
घृणा क्रोध नित्य दूर,
उर सरित नेह तरंग ।
प्रकृति के उत्संग में,अथाह उत्साह उमंग।।

किसलिय अनुपमा संग,
झूमता यह संसार ।
डाली सदृश झुकना सीख,
दर्शित शिष्ट व्यवहार ।
कमनीय रमणीय भाव,
नित्य शोभित अंतरंग ।
प्रकृति के उत्संग में,अथाह उत्साह उमंग ।।

चारु चंद्र मरीचि अंतर,
शीतलता अनंत प्रवाह ।
कृष्ण मेघ पावन बूंदों सह,
राग मल्हार पनाह ।
अंतर्मन मृदुल पावन,
जीवन शैली संस्कारी रंग ।
प्रकृति के उत्संग में,अथाह उत्साह उमंग ।।

कोकिला स्वर लहरियां,
अप्रतिम मधुरता कारक ।
दिनकर ओजस्विता अनंत,
सघन तिमिर मूल तारक ।
पुनीत स्नेहिल स्पर्श सानिध्य,
संचरित स्फूर्ति अंग प्रत्यंग ।
प्रकृति के उत्संग में, अथाह उत्साह उमंग ।।

मैं तुम्हें चाहने लगा

नेह के अनुबंध पर,मैं तुम्हें चाहने लगा

प्रीत पथ लागी लगन ,
तन मन हो गए मगन ।
देख दिव्य अक्स तुम्हारा,
हृदय मधुर अब गाने लगा ।
नेह के अनुबंध पर,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

मुझे लगी जो सनक ,
सबको हो गई भनक ।
हर घड़ी हर पल ,
नशा सा अब छाने लगा ।
नेह के अनुबंध पर, मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

हर जगह तुम्हारा रूप ,
ढलने लगा उसी अनुरूप ।
अधरों पर सबसे पहले
नाम तुम्हारा अब आने लगा ।
नेह के अनुबंध पर, मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

अंतर्मन घुंघुरू बजने लगे ,
तुम्हारी तरह सजने लगे ।
देखकर तुम्हें धीरे धीरे,
जगत मोह अब जाने लगा ।
नेह के अनुबंध पर, मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

श्रुतिपुट तुम्हारा स्वर ,
विरह बिंदु तुम्हीं परवर ।
तुम्हारी अप्रतिम सौरभ संग,
असीम आनंद अब आने लगा ।
नेह के अनुबंध पर,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

भारत मां श्री चरण नित वंदन

शीर्ष लोकतंत्र वैश्विक श्रृंगार,
शासन प्रशासन नैतिक छवि ।
सुशोभित प्रथम स्थान संविधान,
लिखित रूप अंतर ओज रवि ।
प्राण प्रियल राष्ट्र ध्वज तिरंगा,
शौर्य शांति समृद्धि भाव मंडन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

बाघ उपमित राष्ट्रीय पशु,
देश पक्षी शोभना मोर ।
विमल कमल राष्ट्र पुष्प,
हिंदी उत्संग भाषाई भोर ।
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ,
सत्य अहिंसा प्रेरणा स्पंदन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

राष्ट्रीय वाक्य सत्य मेव जयते,
नदी पुनीत पावन मां गंगा ।
देश खेल हॉकी संग नित्य,
तन मन हर्षल चंगा ।
आस्वादन राष्ट्र मिठाई जलेबी,
परिवेश चेतन माधुर्य बंधन।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

छब्बीस जनवरी पंद्रह अगस्त सह,
दो अक्टूबर राष्ट्रीय पर्व ।
राष्ट्र गान जन गण मन,
उर हिलोरित उल्लास गर्व ।
राष्ट्र गीत वंदेमातरम वंदना,
देश प्रेम सुरभि सम चंदन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

मुद्रा रुपया चिह्न अशोक स्तंभ,
राष्ट्रीय फल फलराज आम ।
पोशाक खादी लिपि देवनागरी,
परम देशभक्ति प्रतीक पैगाम ।
मृदुल सानिध्य राष्ट्र वृक्ष बरगद ,
संस्कृति अंतर संस्कार प्रबंधन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

विश्व हास्य दिवस

हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत

पटाक्षेप एकल जीवन,
समूह भाव पुरजोर ।
नैराश्य अस्ताचल बिंदु,
आशा संचरण चारों ओर।
तन मन नित सौम्य जवां,
परिवेश खुशियां ओत प्रोत
हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत ।।

गायन कविता चुटकलों संग,
समाविष्ट नाट्य नृत्य कला ।
संकीर्ण मानसिकता विलोप,
अंतर विस्तीर्ण दीप जला ।
सुलझ जाती गुत्थियां सारी ,
जीवन आरूढ़ उत्साह उमंगी पोत ।
हास्य सकारात्मक सोच का श्रोत ।।

योग साधना सम महत्ता,
दैनिक जीवन अभिन्न अंग ।
उद्गम स्थल समस्या समाधान,
श्रृंगार सेतु लोक राग रंग ।
दूर जाति धर्म लिंग विभेद
सदा समता समानता भाव न्योत ।
हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत ।।

मृदुल मधुर विचार प्रवाह,
संप्रेषण पट मैत्री आह्लाद ।
स्नेह प्रेम भाईचारा कारक,
परिवार समाज मुस्कानी संवाद ।
आराधना स्तुति सदृश फलन,
उरस्थ प्रज्वलन आनंद ज्योत ।
हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत ।।

हे पार्थ गांडीव उठा और युद्ध कर

रण भूमि अनुपमा अद्भुत,
पक्ष विपक्ष दोनों भाई भाई ।
रिश्ते नाते मोह बंधन,
जीवन प्रभा अथाह अकुलाई ।
कर कंपन कदम अविचल,
पर सुन कर्म चेतना शुद्ध स्वर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

परम सौभाग्य संग्राम काल,
प्रतीक्षारत दिव्य स्वर्ग द्वार ।
पटाक्षेप मूल उर वेदना,
विस्मृत विगत प्रेम दुलार ।
अनुभूत योद्धा विराट छवि,
दूर कर सारे अंतर्द्वंद असर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

अधर्म अनैतिकता अवसान,
रण बांकुरी दृढ़ प्रतिज्ञा ।
सत्य नित विजय भव,
युद्ध विमुखता कर्तव्य अवज्ञा ।
संकलित अनंत शौर्य ओज,
विजय अधर्म मार्ग अवरूद्ध पर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

निष्काम कर्म प्रेरणा पुंज,
परिणाम चिंता भाव गौण ।
सहर्ष निर्वहन युद्ध संहिता ,
पाप विनाश ध्येय कोण ।
बाण चला शत्रु दल पर,
कर धर्म रक्षा हित अनिरुद्ध समर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

कृष्ण जीवन

वेणु संग शंख स्वर,कृष्ण जीवन गीतिका में

कान्हा जीवन अद्भुत अनुपम,
अवतरण पूर्व मृत्यु भय ।
बिछोह वेदना जन्म दात्री,
लालन पालन संघर्षमय।
पर आमोद प्रमोद स्पंदन,
गौ गोप गोपियां रीतिका में।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक सह,
सर्वकालिक दिव्य छवि ।
जीवन समस्त पक्ष व्यंजना ,
हर दशा सकारात्मक सोच नवि।
समग्र विधा अप्रतिम श्रृंगार,
दूरी परस्पर संबंध मरीचिका में ।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

श्री कृष्ण उपदेश अनुपमा,
कर्तव्य निर्वहन ओतप्रोत ।
कर्म योग निष्काम पथ,
धर्म रक्षा परम आनंद श्रोत ।
मानव देव संत योगी उपमित,
दया करुणा प्रीत सुरभि नीतिका में ।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

भूत भविष्य चिंता व्यर्थ ,
वर्तमान महत्ता सदा अहम ।
समय काल अनंत शक्ति बिंब,
विजय भव उर मंत्र पैहम ।
प्रेम समर्पण जीवन परिभाषा,
निस्वार्थ भाव आराधना रिक्तिका में।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

सत्य धर्म स्वीकार्यता

सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में

सूर्य पुत्र कर्ण अद्भुत,
धनुर्विद्या दानवीरता पर्याय ।
पर जीवन अंतर्द्वन्द अथाह,
कदम कदम श्रेय हीन अध्याय ।
मूल कारण ज्ञात उत्कंठा,
प्रश्न प्रस्तुति मार्मिक प्रवाद में ।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

मातृ त्याग अवैध संतति कलंक,
गैर क्षत्रिय गौ बाण कारण शापित।
समय पट ज्ञान विस्मृतता,
गुरु परशु राम दोषारोपित ।
धर्म संकट दर्शन युद्ध बेला,
कुंती आज्ञा अप्रतिम प्रमाद में ।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

ध्यान पूर्वक कर्ण पक्ष सुन,
कन्हाई निज व्यथा सुनाई ।
जन्म कारागार मृत्यु भय,
वय पार संदीपनी शिक्षा पाई ।
प्रणय चाह परिणय वंचित,
जन्म संग मात पिता दूरी निर्विवाद में ।।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

परस्पर निज पक्ष उत्तम,
अंत श्री कृष्ण यथार्थ उजागर ।
नियति नियत सदा अटल,
चुनौती संघर्ष मर्म भवसागर ।
तज निज कर्म वर्चस्व फल,
नित सहर्ष तत्पर शाश्वतता धन्यवाद में ।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

श्रमिक दिवस 01 मई

श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है

शाश्वतता अहम श्रृंगार,
सृष्टि अलौकिक नियम ।
आशा उमंग उल्लास अथाह,
समृद्धि चाहना अत्युत्तम ।
पटाक्षेप कर सघन तिमिर,
आलोक पथ बखानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

लोभ मद लालच अहंकार,
सदैव जड़ मूल अस्त ।
धर अदम्य साहस शौर्य,
आसूर्य स्वभाव पस्त ।
यथार्थ अप्रतिम आईना ,
अवरोधक दानवी मनमानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

समाज राष्ट्र दैनिक जीवन,
शुभ मंगल फलदायक ।
समस्या सही समाधान,
आदर्श चरित्र महानायक ।
धूमिल झूठ पाखंड आडंबर,
दृढ़ संकल्पी नैतिक राह दिखानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

स्नेह स्नेह विलोपन डगर,
मनगढ़ंत स्वार्थी परिभाषाएं ।
नैराश्य मरणासन्न बेला ,
उभरती आनंदी अभिलाषाएं ।
विकास प्रगति सलिल धारा,
दर्शित राष्ट्र धरा मोहक धानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

वासंतिक नवरात्र चतुर्थ

पिंड से ब्रह्मांड तक,मां कूष्मांडा का सहारा

चतुर्थ नवरात्र अहम आभा,
सर्वत्र भक्ति शक्ति वंदना ।
असीम उपासना स्तुति आह्लाद,
दर्शन आदर सत्कार अंगना ।
अनंत नमन मां मंद मुस्कान,
त्रिलोक आलोक मंगल धारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

अनूप छवि अष्ट भुजाधारी,
रज रज ओज प्रसरण।
भक्तजन अलौकिक स्पर्शन,
तन मन कांति संचरण ।
सौर मंडल अधिष्ठात्री मां,
पटाक्षेप सघन तिमिर सारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

वनराजारूढ़ अक्षय फलदायिनी,
मां रूप भव्य श्रृंगार निराला ।
कर कमंडल धनुष बाण कमल चक्र गदा,
अमृत कलश सिद्धि निधि जपमाला ।
सुख सौभाग्य कृपालु मैया,
सर्व दुःख कष्ट संकट पार उतारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक,मां कूष्मांडा का सहारा ।।

सृष्टि रचना महाकाज,
त्रिदेव अप्रतिम सहयोग ।
हरित वर्ण अति प्रिया मां ,
चाहना कुम्हड़ बलि योग ।
दैहिक दैविक भौतिक ताप मुक्ति,
बोलो मां आदि शक्ति जय जयकारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

कदम तरंगिनी चाह में

तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में

अंध अनुकरण अज्ञान वश,
दिशा भ्रमित मनुज पथ ।
मृग मरीचिका चमक दमक,
अर्जित अंतराल यथार्थ रथ ।
विलोप निज प्रतिभा शक्ति,
प्रतीक्षित अनुपम गाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

अस्वस्थ परस्पर प्रतिस्पर्धा,
गौण नैसर्गिक जीवन आधार ।
प्रदर्शन मंचन भौतिक सुख,
आलिंगन बिंदु स्वर हाहाकार ।
स्नेह प्रेम अपनत्व रिक्ति,
स्वार्थ सिद्धि अनंत निगाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

उत्साह उमंग रसातल,
उग्र आवेश अस्थिर चितवन ।
संसर्ग अभिलाष प्रणय पथ,
वासना आच्छादित मधुवन ।
तन सुख अनुबंधित क्षणिकाएं,
अनवरत स्पंदन जीवन थाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

अतुलित सामर्थ्य भाग्य विभेद,
कर्म धर्म निष्ठा परिणाम ।
चिन्मयी प्रभा विस्मृत बिंब,
हित निहित साध्य प्रणाम।
अपूर्ण धूमिल स्व आकलन,
लक्ष्य साधना पर सलाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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