साये चले | Ghazal Saaye Chale
साये चले
( Saaye Chale )
ऐसे ऐसे अंधेरे कि साये चले
पाँव डर डर के हम भी बढ़ाये चले
जश्न तेरी ख़ुशी का मनाये चले
अश्क पलकों में अपनी छुपाये चले
अपनी हर इक ख़ुशी का गला घोंटा कर
तेरी महफ़िल को रंगीं बनाये चले
रात चमकी थी कुछ देर नन्ही किरण
हम उसी दम पे अरमां जगाये चले
रोयें पढ़ पढ़ के क्यों अपनी रूदादे- ग़म
नक़्श अपने यूँ सब हम मिटाये चले
ग़म गुसारों की क्या हम कहानी कहें
पहले अपने उठे फिर पराये चले
कितनी पुरदर्द है मेरी साग़र ग़ज़ल
अश्क वो भी तो दो इक बहाये चले
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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