![Ulfat mein Ghazal ulfat mein](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2021/12/Ulfat-mein-696x464.jpg)
उल्फ़त में
( Ulfat mein )
उल्फ़त में ऐ यार किसी की ऐसा लूटे है
क्या हाल सुनाये इतना अंदर से टूटे है
क्या है तेरा मेरा रिश्ता समझें क्या तुझको
ख़्वाबों से तेरे रोज़ सनम हम महके है
जो चाहे हम हल हो पाता काम नहीं कोई
दौड़े है बद क़िस्मत मेरे पीछे पीछे है
जीवन से हर इक ग़म दूर ख़ुदा कर दें ये अब
रोज़ ख़ुशी को रब जीवन हर पल ही तरसे है
वो रोज़ नज़ाकत के हुस्न में रहा डूबा ही
उल्फ़त है रोज़ बहुत उससे हम तो बोले है
उल्फ़त से पेश हमेशा आते थे जो हमसे
बोले वो खूब न जाने क्यों हमसे कड़वे है
रोज़ किताबें पढ़कर हासिल न हुआ कुछ भी तो
ठोकर खाकर जीवन को ही जीना सीखे है
याद भुलाने की आज़म कोशिश की उसकी खूब
उतना ही उसकी हर पल यादों से भीगे है