
हुंकार भरो
( Hunkar bharo )
तेल फुलेल क्रीम कंघी से, नकली रूप बनाओगे।
या असली सौन्दर्य लहू का, आनन पे चमकाओगे।
रक्त शिराओ के वेगों को, रोक नही तुम पाओगे।
क्राँन्ति युक्त भारत पुत्रों के,सामने गर तुम आओगे।
हम आर्यो के वंशज है जो, दुर्गम पथ पर चल कर भी।
धर्म नही छोडे है अपना, मस्तक के कट जाने पर भी।
दस मुख मर्दक दशरथ नन्दन, ने मर्यादा सीख लाया।
श्री कृष्ण ने गीता ज्ञान दे, कर्म की महिमा बतलाया।
क्यों अज्ञानी बना उलझा है, मूरखो के प्रोपेगेंडा में।
अन्तर्मन को जान सनातन, हुंकार इन फंदों से।
अपने कर्म से डिगो नही, अपने पूरखों को याद करों।
रक्त शिराओं मे भर करके, आज पुनः हुंकार भरो।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )