वफ़ा करके | Ghazal wafa karke
वफ़ा करके
( Wafa karke )
वफ़ा करके भी कुछ भी तो नहीं मुझको हुआ हासिल
हुई है बस मुझे हर पल यहाँ तो हर जफ़ा हासिल
रहा हूँ ढूंढ़ता मैं तो हर किसी में ही वफ़ा मैं तो
वफ़ाए भी हुई मुझको मगर यारों कहा हासिल
यहाँ तो जख़्म मिलते है यहाँ दिल टूट जाते है
नहीं होती मुहब्बत है यहाँ मैंनें सुना हासिल
सकूं मिलता नहीं दिल से दुआ भी की बहुत रब से
नहीं मुझको हुई है वो ग़मे दिल की दवा हासिल
हुआ कोई नहीं है पल ख़ुशी का जिंदगी में ही
कहूँ मैं सच ग़मों का पल यहाँ होता रहा हासिल
गुनाहों का उतरेगा बोझ सर से ही सभी मेरे
मुझे यारों इबादत करके करना है ख़ुदा हासिल
किसी से भी नहीं खानी दग़ा की चोट आज़म
किसी से ही यहाँ मुझको मगर करनी वफ़ा हासिल