ज़िंदगी के वास्ते | Ghazal Zindagi ke Vaaste

ज़िंदगी के वास्ते

( Zindagi ke Vaaste )

जब इजाज़त उसने मांगी रुख़सती के वास्ते।
कह दिया हमने भी जा,उसकी ख़ुशी के वास्ते।

तीरगी फिर भी न मिट पाई हमारे क़ल्ब की।
फूंक डाला घर भी हमने रोशनी के वास्ते।

आग को पानी करे है और पानी को धुआं।
आदमी क्या-क्या करे है ज़िंदगी के वास्ते।

क्यों मैं जाऊं मयकदे की सम्त ऐ जान-ए-अदा।
आप की आंखें बहुत हैं मयकशी के वास्ते।

दिल से गर दिल का नहीं होता कोई रिश्ता यहां।
कोई फिर कुछ भी नहीं करता किसी के वास्ते।

आप मानें या न मानें फिर भी यह सच है सनम।
दिल धड़कता है हमारा आप ही के वास्ते।

कर लिया बर्बाद ख़ुदको हो गए ख़ब्ती से हम।
और क्या कीजे फ़राज़ अब शायरी के वास्ते।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़

पीपलसानवी

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