गीली रहती अब आँखें है
उल्फ़त की खायी राहें है!
गीली रहती अब आँखें है
आती नफ़रत की बू अब तो
प्यार भरी कब बू सांसें है
पास नहीं है दूर हुआ वो
आती उसकी अब तो यादें है
तल्ख़ ज़बां आती है करनी
न करे उल्फ़त की बातें है
तन सूखा है दोस्त कभी भी
न मुहब्बत की बरसाते है
चोट मिली ऐसी उल्फ़त में
दिल से निकली बस आहें है
दोस्त मिले जिसपे ही खुशियां
ढूंढ़े आज़म वो राहें है