ग्रहों का कुंभ
ग्रहों का कुंभ
नीलाभित नभ में लगा, कुंभ ग्रहों का मीत।
रूप राशि शशि को पुलक शुक्र निहारे रीत।।
दिनकर हँस स्वागत करे, उषा रश्मि शुभ स्नान।
सिंहासन आसीन गुरु, पा श्रद्धा-सम्मान।।
राई-नौन लिए शनि, नजर उतारे मौन।
बुध सतर्क हो खोजता, राहु-केतु हैं कौन?
मंगल थानेदार ने, दिया अमंगल रोक।
जन-गण जमघट सितारे, पूज रहे आलोक।।
हर्षल को शिकवा यही, कर न सका व्यापार।
नैपच्यून ने मान ली, कर विरोध निज हार।।
धरती धरती धैर्य दे, हर ग्रह को आशीष।
रक्षा करिए शारदा, चित्रगुप्त जग ईश।।
आप अपर्णा पधारीं, शिव गणपति के संग।
कार्तिकेय सौंदर्य लख, मोहित हुए अनंग।।
रमा रमा में मन रहा, हरि का वृंदा भूल।
लीन राधिका साधिका, निरख कान्ह-ब्रज धूल।।
नेह नर्मदा नहाए, गंगा थामे हाथ।।
सिंधु ब्रह्मपुत्रा जमुन, कावेरी के साथ।।

संजीव सलिल
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