गुरु शिष्य का भाग्य संवारते
गुरु शिष्य का भाग्य संवारते

गुरु शिष्य का भाग्य संवारते

( Guru shishya ka bhagya sanwarte )

 

किस्मत का ताला खुल जाता,
गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।
ज्ञान ज्योति जगा घट घट में,
अंतर्मन उजियारा लाता।

 

शिल्पकार मानव निर्माता,
शत शत वंदन हे गुण दाता।
बुरे मार्ग से हमें बचाओ,
प्रगति का मार्ग दिखलाओ।

 

गढ़कर नित नये सोपान,
शिखर तक गुरु पहुंचाता।
राष्ट्र गौरव पाठ पढ़ाकर,
गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।

 

सदा स्नेह की वर्षा करते,
आशीशो से झोली भरते।
देश प्रेम की बहाकर धारा,
राष्ट्र नव निर्माण करते।

 

कला कौशल ज्ञानदाता,
अंधकार पथ से मिट जाता।
वंदन करता पूज्य हमारे,
गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।

 

संस्कार पावन भर देते,
पग पग मार्गदर्शन देते।
कला कौशल ज्ञानदाता,
अंधियारा सारा हर लेते।

 

कृपा बरसा जीवन हमारा,
खुशियों से गुरु महकाता।
करे वंदन अभिनंदन हम,
गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।

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कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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