गुरु वंदना

( Guru Vandana )

 

करता हूं बारंबार ,सौ -सौ बार नमन मैं

पूजूं वह पावन पूज्य, गुरुदेव चरन मैं।

 

जिनकी ही कृपा से मन के भेद है मिटें,

अज्ञानता की यामिनी में रोशनी मिले,

कर सका हूं लोकहित में सच्चा करम मैं,

करता हूं बारंबार ,सौ -सौ बार नमन मैं।

 

जीवन के सच्चे अर्थ को जिसने है बताया ,

कौशल कुशलता ज्ञान को जिसने है सिखाया,

सम्मान समझता हूं जिनका पहला धरम मैं,

करता हूं बारंबार ,सौ -सौ बार नमन मैं।

 

जीवन को संवारा है बन कुम्हार की तरह,

हर एक को जगाया हर एक बार की तरह,

देवों के देव गुरुदेव का, पूजूं चरन मैं,

करता हूं बारंबार ,सौ-सौ बार नमन मैं।

 

नन्हीं सी अंगुलियों में लेखनी को पकड़ना,

दुःख दर्द मुसीबत में खुद से खुद को संभलना,

गुस्से में जिनके प्यार का देखा हूं अमन मैं,

करता हूं बारंबार ,सौ -सौ बार नमन मैं।

 

अक्षर अक्षर शब्द का जो अर्थ बताया

अंतर्मन में ज्ञान की जो ज्योति जलाया

कृपा से जिनके चांद पर रखा कदम मैं,

करता हूं बारंबार ,सौ -सौ बार नमन मैं।

 

 

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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