गुज़र जाते हैं | Guzar Jaate Hain
गुज़र जाते हैं
( Guzar jaate hain )
पल रहे क़ल्ब में मलाल गुज़र जाते हैं
आते जब नव्य,विगत साल गुज़र जातें हैं ॥
रंज शिकवे शिकायतें भी कही दम भर के
जश्न के साथ बहरहाल गुज़र जातें हैं ॥
शादमानी थी रही या कि रही ये नुसरत
ताज़े वादों के संग हाल गुज़र जातें हैं ॥
दौलत-ओ-नाम से भी जो नक़ाबिल-ए-हासिल
वक्त बेमोल बेमिसाल गुज़र जातें हैं ॥
ये नया,बंद पिटारा न जाने क्या उसमे
फिक्र बेख़ौफ़ ये फिलहाल गुज़र जातें हैं ॥
जाने-आने कि मुकरियाँ,अदद उमर की भी
ये मुअम्मे भी बेसवाल गुज़र जाते हैं ॥
ना नदामत न अहद कौल न कोई करती
दिन ये तजदीद में खुशहाल गुज़र जातें हैं ॥
राज-ए-पिन्हा है वक्त कौन समझ पाया है
यूंँ ही दुनिया के प्रश्नकाल गुज़र जातें हैं ॥
रात तो रौनक-ए- महफ़िल में गुजरती ‘याशी’
दिन पे दिन पूछने में हाल गुज़र जातें हैं ॥
सुमन सिंह ‘याशी’
वास्को डा गामा, ( गोवा )
शब्द
क़ल्ब=हृदय, दिल, मन, केंद्र
तजदीद =नवीनीकरण, नया बनाना, नवीनता
अहद = सौगंध लेना
कौल =वादा करना
राज-ए-पिन्हा =गुप्त रहस्य
शादमानी= असफलता
नुसरत = सफलता
मुकरिया= पहेलिया