हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता
हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता
हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता
हर रोज़ ख़ुदा से फ़िर फ़रयाद नहीं करता
हाँ शहर में होते कितने क़त्ल न जाने फ़िर
इक मासूम को वो जो आजाद नहीं करता
मैं पेश नहीं आता फ़िर उससे अदावत से
उल्फ़त में अगर वो जो बेदाद नहीं करता
फ़िर सिलसिला होता ग़म का नहीं जीवन में
मेरी जिंदगी वो जो नाशाद नहीं करता
की आज न घर बिकता पुशताना फ़िर
पैसे वो अगर यारों बरबाद नहीं करता
वो सिर्फ़ दिखावा करता तेरे आगे झूठा
उल्फ़त किसी से जाने तेरे बाद नहीं करता
ख़त इसलिए उसका आज़म अब नहीं आता है
बो भूल गया मुझको अब याद नहीं करता