हैं कल के ही जनाजे, कान्धे बदल गये हैं | Hain kal ke hi janaze | Ghazal
हैं कल के ही जनाजे, कान्धे बदल गये हैं!
( Hain kal ke hi janaze,kandhe badal gaye hain )
हैं कल के ही जनाजे, कान्धे बदल गये हैं!
चेहरे बदल गये हैं , मातम बहल गये हैं!
तूफान जैसा आया, लगता है आजकल तो
खामोश कातिलों से , सीने दहल गये हैं!
नफरत की शुआओं से, बरसी है आग ऐसी
कई नाम बुझ गये हैं, कई लोग जल गये हैं!
सुलगे हुए हैं जेहन, अश्कों की भाप उठती
बरसों से रहे रिश्ते, उनमें उबल गये हैं!
मुद्दत से घुट रहे थे, हर साॅंस गमजदा थी
वो बेबसी के चेहरे , उठ कर संभल गये हैं!
दर्दों की चुभन दिल में,कम हो गई है कितनी
एहसान जिन्दगी के , घर से निकल गये हैं!
आजाद सपने पाकर , रोते हैं फूट कर वे
कानून बन गये जो , वो उनको खल गये हैं!
एहसासे दिलवरी के ,शोशे फिजूल है अब
वो सब वतन से काफी, आगे निकल गये हैं!
मंजिल नहीं मिली है, ताबीर की किसी को
ख्व्वाबों के सारे बादल,अश्कों में ढल गये हैं!
मिल रहे मुल्क को फिर,ऊॅंचाइयों के हासिल
“आकाश” छूने दिल के,अरमाॅं मचल गये हैं!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )