इज्जत बहुत गुलाब को
इज्जत बहुत गुलाब को

इज्जत बहुत गुलाब को, दी हमको सिर्फ धूल

( Izzat bahut gulab ko, di humko sirf dhool )

 

इज्जत बहुत गुलाब को, दी हमको सिर्फ धूल !
करने को फिर शिकायतें , आये हैं कुछ बबूल !!

 

रब से अता उस जैसे ‌ ही, काॅंटे हमारे पास !
क्यों वो है दिलफरेब पै, हम लोग नामाकूल !!

 

कहलाते अदालत मगर, रखते हो अदावत !
हम मान लेंगे किस तरह,आखिर कोई अदूल !!

 

उम्मीद ना रखना के हम, मानेंगे ये नज़ीर !
इंसाफ से ज्यादह अज़ीज़, हमको हैं उसूल !!

 

हम तो मिटा आये कई, नक्शों से कई मुल्क!
वो कौमें, ताज, नाम अब, हैं रास्तों की धूल !!

 

हों जिसकेबरख़िबलाफ हम,करते सुपुर्दे खाक!
यों ही नहीं इस दुनिया में हम लोग हैं मकबूल !!

 

हक ज़ीस्त का उसको नहीं, जो हमसे अलग है!
पर उसके जर जोरू को हम, कर लेते हैं कुबूल !!

 

दुनिया बहुत से पा चुकी है, हमसे तजुर्बात !
छेदा है हमने कितनों को , दे दे के खूब हूल !!

 

हमने लिया है नश्तरों से , चाहतों का काम !
दुनिया की नसीहत हमें, लगती है सब फिजूल !!

 

वो सारे हैं क़ाफ़िर जो , देश धर्म की सोचें!
हम मुल्क पे कब्जे की, इबादत में हैं मशगूल !!

 

हम बदल चुके पौधे कई, अब और बदलेंगे !
हम सा जो बन गया, गया, इंसानियत को भूल !!

 

हर दौर में सख्ती‌ से , हम ने काम लिया है
मासूम मुलायम कोई , हमको नहीं कुबूल !!

 

मोहसिन हमारा है बड़ा, “आकाश” का मालिक
नेमत में हम कर भी चुके, आधा जहाॅं वसूल !!

?

Manohar Chube

कवि : मनोहर चौबे “आकाश”

19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .

482 001

( मध्य प्रदेश )

 

यह भी पढ़ें :-

खोज | Poem khoj

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here