हैरत ही सही | Hairat hi Sahi
हैरत ही सही
( Hairat hi Sahi )
मुझको सच कहने की आदत ही सही
हो अगर तुझको तो हैरत ही सही
तंज़ और तल्ख़ी का आलम तौबा
उनकी बातों में हक़ीक़त ही सही
हम ज़ुबां रखते हैं मुहब्बत की
तेरे लब पे है कुदूरत ही सही
दिल को भाए जो वही करते हैं
देते वो हमको नसीहत ही सही
हम नहीं देते किसी को धोखा
अपनी फ़ितरत है तो फ़ितरत ही सही
आज भी हूँ मैं वफ़ा की मूरत
उनके होठो पे शिकायत ही सही
छोड़ के आपको जाना ही नहीं
आती हिस्से में हो जन्नत ही सही
रोज़ आएंगे तेरे ख़्वाबों में
पास आना हो मुसीबत ही सही
उसको पाने की है हसरत मीना
ज़िंदगी हो गई रुख़सत ही सही
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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