हमारी बेवकूफियां

हमारी बेवकूफियां | Kavita

हमारी बेवकूफियां

( Hamari Bewakoofiyaan )

 

सचमुच कितने मूर्ख हैं हम
बन बेवकूफ हंसते हैं हम
झांसा में झट आ जाते हैं
नुकसान खुद का ही पहुंचाते हैं
सर्वनाश देख पछताते हैं
पहले आगाह करने वाले का ही
मज़ाक हम उड़ाते हैं
न जाने क्या क्या नाम उन्हें दे आते हैं
शर्मिंदा हो आंख भी न मिलाते हैं
केवल इशारों में हाथ ही हिलाते हैं
देखो आज ही के दिन हमने
कोरोना भगाने को थी ताली बजाई
बने थे हंसी के पात्र
हुई थी जगहंसाई
आज एक वर्ष बाद कोरोना ने
ज़ोरदार वापसी की है
सबकी जान सांसत में अटकी है
लाकडाउन के दिन गिन रहे हैं
टीका भी धीमी चाल से ही ले रहे हैं
जाने कब अक्ल होगी हमें
चेहरा आईना में देखी क्या तने?

?

नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें : –

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *