हमने अब स़ख़्त जान कर ली है
हमने अब स़ख़्त जान कर ली है
हमने अब स़ख़्त जान कर ली है
दूरी अब दरमियान कर ली है
मिट गयी आन बान है सारी
ख़तरे में और जान कर ली है
करने दीदार हमने हूरों का
आस्माँ पे दुकान कर ली है
इस परिंदे ने माँ से मिलने को
आज लंबी उड़ान कर ली है
रोज़ कह -कह के यूँ ग़ज़ल ऐसे
कैसी हमदम थकान कर ली है
उम्र सोलह को पार करके अब
ज़िंदगी ये जवान कर ली है
उम्र जब से ढ़लान पर आयी
बंद अपपनी ज़ुबान कर ली है
क़ाफ़िया थे ग़ज़ल के कम लेकिन
कहने में खींचतान कर ली है
पढते गीता कुरान हम मीना
याद सारी अज़ान कर ली है
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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