हरियाली जमीं | Hariyali Jameen

हरियाली जमीं

( Hariyali Jameen ) 

 

कहीं हरियाली कहीं बंजर जमीं रहती है
मेरे यार ज़ब बारिश अपनी बूँद जमीं रखती है
है कौन खुशनुमा इस गर्दीशे जहाँ में
जिसपर उसकी माँ की हरपल नजर रहती है
कोई घर से दूर रहकर भी सुकूँ पाता है
किसी को अपनों के सँग भी कमी रहती हैं
कहीं हरियाली कहीं बंजर जमीं रहती है
बड़ी सी नदी और नदी का किनारा
किनारे पर तुम मेरे डूबते का सहारा
मैं कैसे कहूँ यार तुझको जरा मुझको बता
मेरे दिल में हरपल तेरी कमी रहती है
कहीं हरियाली कहीं बंजर जमीं रहती है
ये अपने,बेगाने और तरंन्नुम तराने
न जाने यहाँ किसको कैसे पहचाने
चेहरे पर हमेसा मुस्कुराहट लिए
आँखों में सदा जिनके नमी रहती है
कहीं हरियाली कहीं बंजर जमीं रहती है

 

कवि : अंकुल त्रिपाठी निराला
(प्रयागराज )

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