
शिक्षक दिवस
( Shikshak divas )
सतगुरु संत सुजान आपका,
कैसे मैं गुणगान करूं।
शरण पड़ा हूंआप उबारो,
नित चरणों में ध्यान धरूं।।
मैंअनजाना चला जा रहा,
मुझको पथ का ज्ञान नहीं।
घटा घिरी है दुख की भारी,
कैसे उबरूं भान नहीं ।
खुदआप बनो अनजान नहीं।
मैं विनती बारंबार करूं ।।
शरण पड़ा हूं आप उबारो,
नित चरणों में ध्यान धरूं।।
पाप कपट का खेल रचा है
,माया ने आ घेरा है।
अंधकारमय जीवन मेरा,
दिखता नहीं सवेरा है।
काल बली ने डाला डेरा
कौन जन्म का दंड भरूं।
शरण पड़ा हूं आप उबारो,
नित चरणों में ध्यान धरूं।।
जड़मति हूं अज्ञानी हूं मैं,
भटक रहा भवसागर में।
डगमग डोले नैया मोरी,
,पार लगाओ आकर के।
सत्य वचन मधुरस पाकर के,
खुले चमन में मस्त फिरूं।।
शरण पड़ा हूं आप उबारो,
नित चरणों में ध्यान धरूं।।
कच्ची माटी का हूं पुतला,
आकर तुम आकार भरो ।
देशभक्ति मानवता भर दो,
छल कपट अहंकार हरो।
जांगिड़ सच्चा प्यार भरो तुम,
पर सेवा उपकार करूं।।
शरण पड़ा हूं आप उबारो,
नित चरणों में ध्यान धरूं।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )