Hasane mein rulane mein
Hasane mein rulane mein

हंसाने में रुलाने में

( Hasane mein rulane mein )

 

 

हंसाने में रुलाने में मेरे दिल को जलाने में

तेरा ही हाथ है जालिम मेरी हस्ती मिटाने में

 

तलब थी थे मुझे कब से तेरे दिल में जगह लूंगा

कहां आकर फंसा हूँ मैं तेरे इस क़ैदखाने में

 

कोई दौलत का वहशी है कोई है जिस्म का प्यासा

मुझे दिलकश नहीं लगता कोई भी इस जमाने में

 

धड़कता दिल नहीं अब तो तेरे आने से  ए जानम

नहीं अब फ़र्क कोई तेरे ही  आने न आने में

 

वो  दिन अब याद आते है गुजारे थे जो बचपन में

कई रातें गुजरती थी कहानी इक सुनाने में

 

कहां अब दौर है पहला कहां पहली मुहब्बत है

कहां अब वो मज़ा था जो पुराने उस तराने में

 

जहां देखो वहां अब तो बसी है बेहयाई ही

वो घर ही और थे तहजीब बसती थी घराने में

 

बहाना चंद दिनों का करके जाते हो मगर फ़ैसल

ये इतना व़क्त क्यूं लगता है तुमको लौट आने में

 

?

 

शायर: शाह फ़ैसल

( सहारनपुर )

यह भी पढ़ें :-

किन सोचो में गुम हो फ़ैसल | Ghazal

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here