
कहूँ कैसे कि दिल घायल नहीं है
( Kahoon kaise ki dil ghayal nahin hai )
कहूँ कैसे कि दिल घायल नहीं है
यहाँ कोई ख़ुशी का पल नहीं है
किसानों की निगाहें रो रही है
फ़लक पे दूर तक बादल नहीं है
बहुत मांगी दुआये भी ख़ुदा से
कोई भी काम होता हल नहीं है
सबब है भीड़ होने का ये ही तो
नगर में कोई भी पैदल नहीं है
न लग जाये नज़र उसको किसी की
लगाया उसनें क्यों काज़ल नहीं है
चलेगा धूप में तू किस तरह से
कि तेरे पास तो चप्पल नहीं है
मुहब्बत से करेगा बात क्या वो
कभी लहज़ा रहा कोमल नहीं है
बुझेगी प्यास आज़म किस तरह से
नदी में दूर तक अब जल नहीं है
शायर: आज़म नैय्यर, (सहारनपुर )
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