हिंदी दिवस | Hindi diwas kavita
हिंदी दिवस
( Hindi diwas )
मै हाल-ए-दिल अपना किसको सुनाऊँ,
अपनी घुटन को कहाँ ले के जाऊँ।
बुलंदी पे अपना कभी मर्तबा था ,
मै चाहू उसे फिर भी वापस ना पाऊँ ।
मै हिन्दी हूँ ,मुझको किया गैर सबने,
मै अपनो की जिल्लत को कैसे भुलाऊँ ।
एक शाम मै बहुत खुश थी
खुशी का कोई ओर छोर ना था
मै बहुत इठला रही थी
सखियों मे भाव खा रही थी
सबको घुमा घुमा के दिखारही थी
देखो ,देखो
इधर देखो ,उधर देखो ,घूम घूम के हर तरफ देखो
देखो ,और याद करो अपने तानो को
क्या कहा था रे अँग्रेजिया तूने
मेरे अपने मुझसे प्रेम नही करते
अब देख मेरे अपनो को
सब कैसे खुश है मेरे लिये
देख इस बच्चे को मुझपे निबंध लिख रहा
देख इसको मुझपे कविता लिख रहा
इधर देख ये मुझपे भाषण की तैयारी कर रहा
हर विद्यालय और दफ्तर मेरे रन्ग से सजाया जा रहा
हर तरफ मेरा ही गीत गाया जा रहा
मेरे अस्तित्व की रक्षा का संकल्प उठायाजा रहा
खुशी इतनी थी की रात भर ना सो पाई
सुबह हुई तो फिर दौड़ कर चली आयी
कभी यहाँ कभी वहाँ मै दौड़ति ही रही
खुशी मे अपनी मै दिनोरात खोई रही
हुई जो अगली सुबह खुद को तन्हा मै पाई
दौड़ दौड़ कर सब सखियां मुझसे मिलने आईं
दिला के याद मेरी बातो का ,वो सब मुस्काई..!!
लेखिका: नजमा हाशमी
(JRF रिसर्च स्कॉलर जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली )
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