Geet Bhulna Acha Lagta Hai
Geet Bhulna Acha Lagta Hai

भूलना अच्छा लगता है

( Bhulna Acha Lagta Hai )

 

वो काली अंधियारी रातें, अपनों की तीरों सी बातें।
रह रहकर दर्द दे जाए, संकट में ना साथ निभाते।
भूलना अच्छा लगता है

बीत गई जो दुख की घड़ियां, यादें चैन नहीं दे पाती।
चिंता चिता स्वाहा करके, जिंदगी को आग लगाती।
अपमान ईर्ष्या घृणा विष, नैनो से अंगार बरसता है।
शब्द वाण हृदय पीड़ा, मन का घाव नहीं भरता है।
भूलना अच्छा लगता है

उन राहों को उन भूलों को, जीवन पथ शूलों को।
बाधाएं बुलंदियों को रोके, गैरों के उसूलों को।
गम भरे पल वो दुखदाई, अश्रुओं के मूलों को।
जीवन का पतझड़ हो जाए, सावन के झूलों को।
भूलना अच्छा लगता है

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :

आसमान तक पहुंच हो

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here