हिन्दी कविता मजदूर
( Hindi Kavita Majdoor )
मजदूर का न कोई नेता
न मजदूर की कोई सरकार ।
किसे सुनाए दुखड़ा अपनी
किसकी करे पुकार ।
एक मजदूर गया मजदूरी को
काम हुआ,पच्चास का
मालिक ने दिया तीस
बुदबुदा के बोला
अब नही आऊंगा,
है मालिक तानाशाह
घर आकर देखा
पत्नी लिए चारपाई
तप रही थी ज्वार से,
न थी कोई दवाई,
मजदूर दौड़ा-दौड़ा गया
हकीम जी के पास,
हंफते-हांफते बोला
अच्छी दवा ज्वार की
हकीम जी दो तत्काल
पैसा लेकर हकीम
हंस के लगा कहने ,
ये पिछले दवा के
कट गये उधार
आज की दवा के
पहले दो सरकार ।
करुण भाव में थका-थका
वापस घर आया,
सो गया धरा-धूल में
भूखा पैर पसार ।
मजदूर का न कोई नेता
न मजदूर की कोई सरकार,
मेहनत मजदूर का नेता है,
मजबूरी है सरकार ।।
रोशन सोनकर
ग्राम व पोस्ट जोनिहां,तहसील बिंदकी,
जनपद फतेहपुर ( उत्तर प्रदेश )
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