घसीटा और अन्न संकट | Hindi satire
घसीटा और अन्न संकट
पत्रकार समाज के लिये प्रतिबद्ध था। उसे पत्रकार वार्ता के लिये मंत्री जी ने बुलवाया था। वह केमरा मेन लेकर चला गया। उसने देश पर छाये अनाज संकट के बारे में मंत्री जीे से प्रश्न पूछा मंत्री जी ने रहस्योदघाटन किया कि चूंकि गरीब लोग दिन में दो बार खाना खाने लगे है अतः देश में अनाज संकट के बादल छाने लगे है।
पत्रकार को गरीबों पर क्रोध आया जिनके दो बार खाना खाने पर मन्त्री जी और हम अमीर आदमी को परेशानी होने लगी गरीब दिन में एक ही बार खाना खाता रहता तो ये लोग खुश रहते। इन्हें मुफ्त के मजदूर उपलब्ध रहते।
अतः वह गरीबी देखने और गरीबों को समझाने के लिये गांव आया। एक गरीब का पता तो मन्त्री जी ने ही दिया था जो गांव का सरपंच था।
पत्रकार गांव के सरपंच के महलनुमा घर में पहुॅचा । सरपंच पत्रकार को देख कर गदगदायामान हो गया । सरपंच की गौशाला में दो ट्रेक्टर बंधे थे और दरवाजे पर मंहगी कार पूंछ हिला रही थी।
सरपंच अमर होना चाहता था । अतः पत्रकार को जनानखाना के एकदम पहले वाले “ड्राइंग रूम” में ले गया। प्रभावोत्पादक “सिचुयेशन“ बनाई गई। केमरा चालू हुआ तो पत्रकार ने पूछा “सरपंच जी इस गांव में गरीब कौन है ?“
सरपंच ने बत्तीसी के पीछे का भी हिस्सा दिखाते हुए जवाब दिया “असली गरीब तोे मैं ही हॅू । मेरे पास तीन चार गरीबी रेखा के प्रमाण पत्र पड़े हुये है। मेरे पास मात्र तीन सौ एकड जमीन है। पत्रकार चकरा गया। अगर यह गरीबी है तो वह स्वयं तो भिखमंगा ही हुआ। उसने कहा “नहीं, वह जो दिन में दो बार खाना खाने लगा है और मंत्री के अनुसार जिसके कारण देश पर अन्न संकट छाने लगा है।”
सरपंच ने छूट जवाब दिया “वह तो साला घसीटा है जो पंगत में तेरह रोटियां गपा जाता है और मना नही करता। जब पूरी पंगत उठ जाती है तो मजबूरन उसे भी उठना पड़ता है। मुझे तो शक्कर की बीमारी है मैं तो दिन में एक बार मात्र दो रोटी थोड़े से चावल के साथ खाता हंॅू।”
मगर वह फिर भी चोरी से दस बारह रोटियाॅ बांध कर ले जाता है। वह इस समय उसके खेत में काम कर रहा होगा।“ हालांकि सरपंच के पहले ही “सर“ लगा हुआ है पर उसने पत्रकार से कहा “सर मैं चलूं आपके साथ”। “नहीं, हम उसे ढंूढ़ लेगे।“ फिर उसका केमरा लम्बे लम्बे सुसज्ज्ति कमरों से होता हुआ ट्रेक्टरों और कार को क्लोज अप लेता हुआ गांव में आ गया गांव की गलियों से होता हुआ वह खेत में पहुंच गया। घसीटा खेत में हल बक्खर चला रहा था
घसीटा काले रंग का आदमी था जो फटीवन्डी पहने था। पसीना उसके माथे से चूकर जमीन पर टपक रहा था। वह भरी दुपहरी हल बक्खर चला रहा था। पत्रकार ने पूछा “क्या आप ही घसीटा है”? घसीटा ने जवाब दिया हंओ। और हमारे आगे जो जानवर आंय वे बैल आंये।
बैलो और हमारे बीच में हल बक्खर आये जा से जमीन खोदी जाय है । हम जे पे खडे है वा जमीन आय और हमारे अलावा जिनकी परछाई जमीन पे पड़ रही है वे पेड़ आंय । पेड़ो पे जोन जानवर बैठ के चिचिया रये है वे पंच्छी आंय।
पत्रकार चकरा गया। उसने पूछा “ये तुमसे किसने पूछा ? घसीटा बोला “हूजूर कुछ पडवे वारे मोड़ा मोड़ी और कछू साव लोग इते आके जई पूछत आंय”। पत्रकार ने पूछा “नहीं सर, हम तो ये पूछनें आये है कि क्या आप गरीब है ? घसीटा बोला “अबे नइये” तीन चार दिन बाद हो जे है”
पत्रकार फिर चकरा गया उसने पूछा “समझ में नहीं आया सर।” घसीटे ने सूचना दी “हजूर गरीबी को सार्टीफिकेट देवे सरपंच सचिव पच्चीस रूपैय्या मांग रओ है। अबे पन्द्रह रूपैय्या इकटठे हो गये है। परसो तक पच्चीस हो जावेंगे फिर ले ले हों ।” जब लो “सार्टिफिकेट नई होय तब लो गरीबी के कछू सरकारी फायदा नई मिलने।”
पत्रकार को दुःख हुआ। मगर चूंकि भ्रष्टाचार एक अलग मुद्दा था अतः उस पर न जाकर उसने पूछा घसीटा सर, आप दिन में कितनी बार खाना खाते है ?
घसीटा बोला “तीन टैम हूजूर” पत्रकार की आंखे फटी की फटी रह गई। उसने सोचा अगर देश के तीस करोड़ घसीटे दो के बजाय तीन बार प्रतिदिन खाना खाने लगे है तो अनाज संकट होना ही है।
अगर मंत्री जी को मालूम होता कि सदियों से गरीब लोग अब तीन समय खाना खाकर अपनी सदियों की भूख मिटाने लगे है तो वे जरूर “कितने टाइम खाना” नामक एक सचिवालय खोल देते और “कितने टाइम खाना” नामक इन्सपेक्टर गांव गांव भिजवा देते जो तीसरे टाइम खाने वाले को जेल भिजवा देते।
इतने में घसीटी दोपहर का खाना ले आई। उस खाने में छः मोटी मोटी रोटियां और प्याज का एक गटा था। उन मोटी मोटी रोटियों में पत्रकार को देश पिसता दिखाई दे रहा था। घसीटे ने पत्रकार को खाने का निमंत्रण दिया। उन मोटी रोटियों और प्याज के गटे को देखकर पत्रकार ने विनम्रता पूर्वक वह निमन्त्रण ठुकरा दिया ।
घसीटे ने प्रेमपूर्वक वह “लंच” लिया। जो टुकडे जमीन पर गिर गये थे उन्हे भी उठा कर खा लिया। एक भी टुकड़ा रोटी का नही छोड़ा । पत्रकार को मंत्री द्वारा दिये गये पाॅच सितारा हांेटल के लंच और डिनर की याद आई जहाॅ दो नान के लिए बीस नान बरबाद कर दिये जाते है।
शहर की हर दिन होने वाली जन्म दिन पार्टियों की याद आई जहो टनो अनाज बरबाद कर दिया जाता है। उन शादियों के लंच और डिनर की खाद आई जहां टनो अनाज पैरों तले रौद दिया जाता है ।
अमीरों के उन कुत्तो की याद आई जिन्हे मना मना कर बिस्कुट खिलाये जाते है और यहा मेहनत कश खेतिहर मजदूूरो के पेट भर खाने पर आपत्ति उठाई जा रही है। देश का हर तीसरा आदमी ज्यादा खाने से डायबिटीज का और ब्लड प्रेशर का शिकार है और गरीब के दो टाइम खाने पर आपत्ति उठाई जा रही है।
अन्त में उसने अपना कमजोर होता हुआ प्रश्न पूछा “घसीटे जी मंत्री की कह रहे है” कि गरीब लोग दो वक्त रोटी खाने लगे है इसलिये देश में अनाज का संकट है।
घसीटा बोला “हुजूर हम हर साल में अठारह बोरा गेहूॅ पैदा करत है।” ओ में से दस बोरा सरपंच और सरकार ले लेथे।
अब मानो मुल्क में तैतीस करोड़ लोग से जे दस दस बोरा लेवें ले तो कित्तो ले लेथे और ऊ खों बरबाद कर के सिवाय का करथ है “पहले ऊ बरबादी रोकी जावे हुजूर फिर हमारी रोटियों पें नजर लगाई जावे।”
लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)