हमदम मेरे | Humdum Shayari
हमदम मेरे
( Humdum Mere )
हमदम मेरे कब आओगे
या ऐसे ही तड़पाओगे
वक़्त है अब भी आ जाओ तुम
वक़्त गया तो पछताओगे
उतना ही उलझेंगी काकुल
जितना इनको सुलझाओगे
आ भी जाओ बाहों में अब
कब तक यूं ही तरसाओगे
फोन पे ही फ़रमा दो दिलबर
हम पे करम कब फ़रमाओगे
खोल भी दो घू़ंघट के पट अब
कब तक ऐसे शर्माओगे
जब – जब हमको ढूंढोगे तुम
अपने ही दिल में पाओगे
भूल पे अपनी सुन लो इक दिन
ख़ुद – बा – ख़ुद तुम लज्जाओगे
फ़िरकी सा नाचोगे कब तक
इक दिन तुम भी थक जाओगे
साथ फ़राज़ अब ले लो उन को
वरना तन्हा घबराओगे
पीपलसानवी