Hunkar ki poetry

रंग नहीं है अब कोई भी | Hunkar ki poetry

रंग नहीं है अब कोई भी

( Rang nahin hai ab koi bhi )

 

रंग नही हैं अब कोई भी,

जीवन  की  रंगोली में।

 

जाने कितने जहर भरे हैं,

अब लोगों की बोली में।

 

चेहरे पर भी इक चेहरा है,

कैसे  किसको पहचाने,

 

भीड़ मे भी हुंकार अकेला,

रंगहीन  इस  होली में।

 

वर्षो गुजर गए

 

मिलते रहे ख्यालों में हम, सुबह दोपहर शाम,
वर्षो  गुजर  गए ना उसको, देखा हैं हाय राम।

तन्हा  कटी  हैं  रातें सारी, बेबस सी हो लाचार,
मिलती हूँ बस ख्यालों में ही,सुबह दोपहर शाम।

 

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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