
तुम कैसा इंसान हो
( Tum kaisa insan ho )
बांट बांट कर धरती सागर
बांटते आसमान हो,
तुम कैसा इंसान हो!
जाति धर्म में रंग बटा है
अब बांटते इमान हो,
पशु भी बांटा पक्षी बांटा
क्यूं बांटते श्मशान हो,
तुम कैसा इंसान हो!
भाषा बोली पुस्तक बांटा
बांट रखे परिधान हो
प्यार मोहब्बत अब न दिखता
बस बांटते गुमान हो,
तुम कैसा इंसान हो!
बांट सको तो पानी बांटो
पीते सुबहो शाम हो
इस चार दिन के जिंदगी में
क्यूं बनते हैवान हो,
तुम कैसा इंसान हो!
बांट सको तो वायु बांट लो
बनते जो बलवान हो
धूप चांदनी तारें बांटो
बनते बड़े सयान हो,
तुम कैसा इंसान हो।
बांट सको तो ज्ञान बांट लो
मानव गर संज्ञान हो
मानवता से जी लो साथी
करना गर कल्याण हो।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )