भवंर
( Bhanwar )
चित्त का भवंरजाल
भावनाओं की उथलपुथल
एक बवंडर सा अन्तस में
और हैमलेट की झूलती पक्तियां
टू बी और नाॅट टू बी
जद्दोजहद
एक गहन..
भौतिक वस्तुएं
आस पास रहते लोग
सामाजिक दर्जे और हैसियत
क्षणिक और सतही खुशी
के ये माध्यम
नही करवा पाते
चित्त को आनन्द की अनुभूति…
स्व से प्रश्न करता स्व
ये कुंठा, उग्रता, अहम
के अथाह सागर
क्या कभी पार किए जा सकेंगे???
पसंद-नापसंद से परे
सोच न पाना
इन्सानी जज्बातों की बढ़ती बेकद्री
क्या कभी मानवीय मूल्यों का दहन बंद हो पाएगा???
नफे-नुक्सान की परिधियों से
ऊपर उठ
प्राण ऊर्जा के
सदुपयोग से
क्या मानवता को बेहतर आयाम दिए जा सकेंगे???
( प्रोफेसर और द्विभाषी कवयित्री )