Internet ko Jamano
Internet ko Jamano

इंटरनेट को जमानों

( Internet ko jamano )

 

आज काल रे टाबरिया न मोबाइल रो घणों चसको,
काम काज काई होवें कोनी न रियो उणरे बस को।
कड़वी बोली अर घमण्ड माय भूलरिया परिवार वो,
खावें है हर मिनट-मिनट में गुटको तंबाकू दस ‌को।।

पल-पल मं बदल है कपड़ा ध्यान रख न शरीर को,
मैगीं-चाउमीन खावें और पाणी पीवे वो फ्रीज को।
फेसबुक व वॉट्सएप चलावें मोबाइल इंटाग्राम वो,
यू ट्यूबा मं फिल्मा देखें यह आधी आधी रात को।।

जाणे है सगला फंगसन वो गूगल बेंकिंग फ़ोन को,
वीडियो काल सू बात करें व चैटिंग करें दोस्त को।
न जावें छोटों स्कूल और ना जावें बड़ों काॅलेज वो,
ऑनलाईन ही पढ़ा हां अट्ठें समझावें माॅं-बाप को।।

होग्यो है नशा मं आज पूरो विश्व इंटरनेट फ़ोन को,
अमेज़न व फ्लिपकार्ट बेचरया सामान संसार को।
कानां माईने घाल स्पीकर आज घूमें चारों और वो,
बेचदयो चाहें गहणो ज़मीन होवें फ़ोन ऐप्पल को।।

सुणें न सामले बात किसी की चिल्लाओ जोर-को,
डांडा-इंसान पानी पीता कदी एक हीं तालाब को।
पीवर दूध घी खाता पीता सारो पहरान पहरता वो,
खुली हवा मं नसंग सो जाता डर कोन्हों चोर को।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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