इस जहाँ से मुझे शिकायत है
इस जहाँ से मुझे शिकायत है
इस जहाँ से मुझे शिकायत है
क्यों दिलों में यहाँ हिकारत है
गुल खिला लो अभी मुहब्बत के
जान जाओ यही इबादत है
क्यों किसी से करें मुहब्बत हम
जब सभी की लुटी शराफ़त है
उँगलियाँ वक्त पर करो टेड़ी ।
ये पुरानी सुनो कहावत है
प्यार करना कोई गुनाह नहीं
धोखा देना बुरी ये आदत है
गलतियां हो गई अगर उससे
माफ़ कर दो यही निज़ाम़त है
स्वार्थ का नाम भी न हो जिसमें
आज उसकी हमें जरूरत है
भूलता मैं नही कभी रिश्ते
बस इसी वास्ते मुसीबत है
बात इतनी बड़ी नही कहता
पास रखता प्रखर लियाकत है

महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
यह भी पढ़ें:-