इस तरह याद आया न कर
इस तरह याद आया न कर
तू मुझे इस तरह याद आया न कर
मेरी ही धुन में तू वक़्त ज़ाया न कर
तेरी महफ़िल में चल के अगर आ गया
तो नज़र मुझसे दिलबर चुराया न कर
गुल में भी तू नज़र आए जान-ए- ग़ज़ल
हर किसी के दिलों को यूँ भाया न कर
काफ़िया हूँ मैं तेरा तू मेरा रदीफ़
देखकर इसलिए तू लजाया न कर
कल की मालूम मुझको नहीं ज़िन्दगी
आज का वक़्त है इसको ज़ाया न कर
पैसों को देखकर इश्क़ होता है अब
ऐसे आशिक़ से रिश्ता बनाया न कर
सिलसिला गुफ़्तगू का बढ़ा है ‘सुमन’
है अगर इश्क़ दिल में छिपाया न कर

सुमंगला सुमन
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