Ishq-e-darakht

इश्क़-ए-दरख़्त | Ishq-e-darakht

इश्क़-ए-दरख़्त

( Ishq-e-darakht ) 

 

खिड़कियों से आती हवा के झोंके सी सुहानी,

मन के भीतर धुंधलाती यादों सी रूमानी,

मैं कौन, अधुरी सी एक प्रेम कहानी

आँसुओं से भीगी; कुछ जिस्मानी कुछ रूहानी..

 

मरूधरा पर उठते थमते कुंठा और संशय के बवंडर

कुछ जद्दोजहद करते, दम तोड़ते भावों के भवँर

मैं कौन, रात्रि का वो ठहरा सा एक पहर

असीम पीड़ादायी; भाग्य का जिसमें ढहता कहर..

 

घुमड़ते बरसते बादलों से भीगा हुआ दश्त

हर धर्म, हर जात को पनाह देती गज भर काश्त

मैं कौन, गहरे फैली जड़ों वाला इश्क़-ए-दरख़्त

नन्हें डग भरती गिलहरी; इरादतन सख़्त..

 

डाॅ. शालिनी यादव

( प्रोफेसर और द्विभाषी कवयित्री )

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