मैं हूं एक जग भिक्षुक
मैं हूं एक जग भिक्षुक
मैं भिक्षुक हूं यारों बस, इस सारे जमाने का,
कुछ नहीं है मेरे पास, लोगों को दिखाने का।।
जरिया भी नहीं है मेरे पास रोटी कमाने का,
साधन भी नहीं खुद को जग से मिटाने का।।
मैं कोई गीत भी नहीं हूं जमाने के गुनगुनाने का,
मैं सरगम भी नहीं हूं दीवाने के तान आने का।।
न आस्तित्व है न ईमानदारी है न मेरी पहचान है,
न तो मेरे पास झूठ बोलने की कोई दुकान है।।
मैं ठहरा गरीब,खाने के लिए मोहताज हूं रोटी का,
सुना था ऊंची दुकान है तो फीका का पकवान है।।
गरीबी में जूझ रहा आज मेरा सारा हिंदुस्तान है,
फिर भी मेरा प्यारा हिंदुस्तान जग में सबसे महान है।।
न अब जग में सच्चाई है न कोई अब बची खुद्दारी है,
चारों तरफ यारों बस बिकती गद्दारी ही गद्दारी है।।
अमीरों को छोड़ो सिर्फ गरीबों को बचा सताने का।
मैं भिक्षुक हूं यारों बस, इस सारे जमाने का।।
प्रभात सनातनी “राज” गोंडवी
गोंडा,उत्तर प्रदेश
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