ऊँ जय माँ शारदे!
ऊँ जय माँ शारदे!
1
माँ दुर्गा ममतामयी, अद्भुत है श्रृंगार।
दुर्गा दुर्गविनाशिनी, भक्त करें जयकार।।
2
माँ मेरी विनती सुनें, हरेन सकल संताप।
वरद हस्त धर शीश पर, हृदय विराजें आप।।
3
दुर्गा दुर्गति दूर कर, सुगम बनातीं राह।
रोगनाशिनी तारिणी, करतीं पूरी चाह।।
4
पापमोचनी कालिका, मंगलमय हैं काम।
दुर्गम की संहारिणी, तब से दुर्गा नाम।।
5
घट- घट वासी मातु से, छुपे न कोई बात।
अंतस् में जिसके बसीं, उसे बड़ी सौगात।।
6
रक्षा करतीं हैं सदा, रहें हमेशा साथ।
माता की पूजा करूँ, लिए पताका हाथ।।
7
जो भी बोले प्रेम से, माता की जयकार।
दयामयी पल में करे, सारे कष्ट निवार।।
8
करो मातु नवरात्रि में, हम सबका कल्याण।
हरो सकल संताप को, हर्षित हों मन-प्राण।।
9
कष्टों की बरसात में, भीग रही हर बार।
माँ सिर पर छाया करो, आऊँ जब भी द्वार।।
10
नवरातों में माँ मिले, यह अनुपम सौगात।
हम सब मिल कर दे सकें, बीमारी को मात।।
11
आई विपदा अब टले, भागें सारे रोग।
हिल-मिल कर हम सब रहें, बना रहे संयोग।।
12
करो दया अब मातु तुम, सब जन हों खुशहाल।
हाथ पसारे हैं खड़े, माता तेरे लाल।।
13
पापमोचनी कालिका, मंगलमय हैं काम।
दुर्गम की संहारिणी, तब से दुर्गा नाम।।
14
सिर पर सोहे मातु के, घण्टा चन्द्राकार।
स्वर्ण रंग दश हैं भुजा, होतीं सिंह सवार।।
15
परम शान्तिदायक तथा, देतीं जग को त्राण।
मातु चन्द्रघण्टा करें, सदा जगत- कल्याण।।
16
सुन घण्टे का घोर स्वर, भयाक्रान्त हों दुष्ट।
भक्तों पर माँ की दया, कभी न होतीं रुष्ट।।
17
अण्डरूप में है हुआ, माता का अवतार।
कूष्माण्डा माँ की सदा, महिमा अपरंपार।।
18
स्कंदमातु जगदंबिका, षड्मुख की हो मात।
करो पराजित शत्रु को, गहूँ चरण जलजात।।
19
हे महिषासुरमर्दिनी, करूँ तुम्हारा ध्यान।
वर मुद्रा कात्यायनी, चढ़े शहद अरु पान।।
20
सप्तम काली कालिका, कालरात्रि तव नाम।
गर्दभ रहें सवार माँ, खड्ग धर त्राहि माम।।
21
सकल सिद्धि की दायिनी, शत – शत तुम्हें प्रणाम।
चरणों में जगदंबिका, मिले शरण अविराम।।
रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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