Jaise tum ho paas kahin
Jaise tum ho paas kahin

जैसे तुम हो पास कही

( Jaise tum ho paas kahin )

 

ऐसा क्यो महसूस हो रहा, जैसे तुम हो पास कही।
तेरे तन की खूशबू लगता’ मुझको जैसे पास अभी।

शायद  है  ये  वहम  मेरा  या, मेरा पागलपन है,
हुंकार हृदय तुझमे ही डूबा,तुझको ये एहसास नही।

 

इक कोरा कागज हूँ मैं

 

जिस रंग चाहे रंग लो मुझको, इक कोरा कागज हूँ मैं।
हाँ ये मेरा वर्तमान है, पर तेरा तो भविष्य हूँ मै।

रंग दे चाहे जिस भी रंग में, पर रंग तेरा है प्यारा,
रंग केसरिया रंग दे मुझको, इसी रंग का बना हूँ मै।

 

सुदामा

 

धीरे धीरे शाम तलक ये रस्ता कट जाएगा।
फिर से तुमको देख सकू शायद ये हो पाएगा।

यही सोच कर चले सुदामा दुख भंजन कर सखा मेरे,
तुमसे मिल कर पाप मेरे शायद कम हो जाएगा।

 

तेरी इस बेरूखी ने मुझको

 

खाक को धूल मे मिला कर मिट्टी बना दिया।
तेरी इस बेरूखी ने मुझको, संगदिल बना दिया।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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