जाने क्यों बेख़बर नहीं आती

जाने क्यों बेख़बर नहीं आती

जाने क्यों बेख़बर नहीं आती

जाने क्यों बेख़बर नहीं आती
ढ़ाने मुझपर कहर नहीं आती

ताकते क्यों हो तुम गली उसकी
आजकल वो नजर नहीं आती

मैं हूँ मजबूर आज जीने को
याद वह इस कदर नहीं आती

देखकर हार बैठा दिल जिसको
वो भी लेने ख़बर नहीं आती

तू उसे खोजता है क्यों दर दर
वो कभी इस डगर नहीं आती

इतने वादों के बाद भी मुझसे
यार मिलने नगर नहीं आती

माँ की तबियत ख़राब होती तो
देखने क्या वो घर नहीं आती

दूर कर दे अँधेरा जीवन का
कोई ऐसी सहर नहीं आती

मैं भला भी अगर प्रखर होता
मिलने फिर भी इधर नहीं आती

Mahendra Singh Prakhar

महेन्द्र सिंह प्रखर 

( बाराबंकी )

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