Jeevan Adarsh
Jeevan Adarsh

जीवन आदर्श 

( Jeevan adarsh )

 

मैने देखा
एक छोटी सी
जिंदगी की
अहमियत,
और इसके
साथ
सहूलियत।
मैंने देखा
उस नन्हीं सी
कली को
खिलते,
विकसित
होते,
जीने की
आशा लिए
प्रसन्नचित्त।
न भविष्य का
भय
न अतीत की
चिंता,
बस
कोमल
पंखुड़ियों से
अपनी सुन्दरता
खूबसूरती
और आदर्शता को
लोगों में
खुशबू से बांटते,
उसे देखा।
लोगों में छोड़
जाना
अपनी पहचान,
माइने नहीं
रखती
जीवन का लम्बा
होना
या होना
थोड़े दिन का
मेहमान।
अब वह
विकसित कली
देखते देखते ही
फूल बन
गयी थी,
और फिर
हल्की हवाओं
के झोंके से
टूटी और सदा के लिए
अपने जड़ समेत
समूल डाल से
बिदा हो
चली थी।

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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