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जिजीविषा सदा विजयंत | Jijeevisha

जिजीविषा सदा विजयंत

 

मानव जन्म सृष्टि पटल,
अलौकिक अनुपम छवि ।
देवत्व प्रभा मुखमंडल,
ओज पुंज सदृश रवि ।
स्नेह दया सहयोग मूल,
सदा गमन नैतिकता पंत ।
जिजीविषा सदा विजयंत ।।

दुःख कष्ट सम धूप छांव ,
प्रति पल परिवर्तन कारी ।
सुख आनंद नेह संविदा,
धर्म आस्था अंतर धारी ।
जीव जंतु प्रकृति मानव,
परस्पर स्नेह सद्भाव अत्यंत ।
जिजीविषा सदा विजयंत ।।

सतत प्रयास अथक श्रम,
सफलता हेतु अभिन्न अंग ।
सकारात्मक सोच विश्वास,
लक्ष्य अर्जन उत्सल कंग ।
आशा उमंग उल्लास संग,
व्यक्तित्व आदर्श कृतित्व मनंत ।
जिजीविषा सदा विजयंत ।।

अजर अमर आत्मिकता,
श्री इतिश्री कायिक रूप ।
मान सम्मान स्वाभिमान रक्षा,
उर तरंग सात्विकता अनुभूत ।
अधर मुस्कान हिय आह्लाद,
परहित तत्पर शोभना संत ।
जिजीविषा सदा विजयंत ।।

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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