कभी तो देख | Kabhi to Dekh
कभी तो देख
( Kabhi to Dekh )
नकाब जब हटे ज़रा नज़र झुकी-झुकी मिले
कभी तो देख इक नज़र के लुत्फ़-ए-मयकशी मिले
सितारे चाँद चाहिए न चाँदनी भी अब हमें
फ़क़त है इश्क़ की ही ख़्वाहिशें ये बंदगी मिले
सितम हज़ार करते हैं दिलों जाँ पे सभी यहाँ
जिसे बता दूँ दास्ताँ कोई तो आदमी मिले
नज़र से तो गुज़र गए हजारों लोग ही मगर
मगर न मेहरबाँ कोई फ़क़त ये बेरुख़ी मिले
फ़रेब ही फ़रेब हैं ग़मों की भी है इंतिहा
जिगर ये ज़ार-ज़ार है कहीं कोई ख़ुशी मिले
क़दम-क़दम पे मुश्किलें लिखीं मेरे नसीब में
सियाह रात में दुआ करो कि रौशनी मिले
जवाँ है दिल जवाँ हैं धड़कने भी आरज़ू जवाँ
है इल्तिजा मेरी कि आपसे ही आशिक़ी मिले
तुम्हीं ख़याल हो सनम तुम्हीं हो मौसिक़ी मेरी
तुम्हीं से मेरा है सुख़न तुम्हीं से शायरी मिले
है बेक़रार दिल को बस तेरा ही इंतज़ार अब
के हो विसाल-ए-यार दिल को तेरी दिलबरी मिले
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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