कभी तो कोई बात होना चाहिये | Ghazal Kabhi to
कभी तो कोई बात होना चाहिये
( Kabhi to koi baat hona chahiye )
बाद मसरूफ ही सही , कभी तो कोई बात होना चाहिये
लाख फासले हो, फिर भी ‘होने’ का एहसास होना चाहिये
समझ लो हमारी ज़िद या तकाज़ा-ए-वक्त इसको
मगर न कहना, मौजू-ए-गुफ्तगू भी कुछ होना चाहिये
खामोश रहना तुम, न कहेंगे कुछ हम भी
दिल को दिल से इर्तिआ’श भी होना चाहिये
कुरबत-ए-तवील होने को , धड़कनों का
ब’एक-वक्त हम असर भी होना चाहिये
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )