कभी यूँ ही अपने मिजाज बदला कीजिए
कभी यूँ ही अपने मिजाज बदला कीजिए
कभी यूं ही अपने मिजाज बदला कीजिये
दिल मांगे आपका तो जाँ निसार कीजिये
हंसते हसते जिन्दगी की शाम हो जायेगी
बीती रात की सुबह का इन्तजार कीजिए
आकाश सूना दिखे तारे हो खामोश जहाँ
धीमे से मध्यम झरनों सी रागनी सुना
फूल गुलिस्ता में खिलखिलाकर जब हँसा
चुप्पियों की रुनझुन पायलियाँ सी बजा
मन का अनन्त आसमान ख्वाबो से सजा
साझ की डोली में बैठ एक नया जहाँ बसा
जब भी आवाजे देने लगे तुझको तन्हाइयाँ
आस की गठरी थामें धीमे धीमे तू मुस्कुरा
किसी की चाहतो में क्यूँ फंसता जाता रे मन
बेपरवाह सी डगर पे क्यूं बढ़ता अनवरत
एसे ही तुझसे बाँधे कुछ अहसास मीठे से
बिन डोरी के मोती गूंधे कैसे तू माला बना
बीमार से उसका हाल कभी दिल से पूछिये
सूखे गुलाबो की दास्ता किताबो में ढूढिये
जिंदा रहने के लिए कुछ कसमे लीजिए
मुलाकात का मीठा जहर धीरे से पीजिए
?
लेखिका : डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर – देहरादून