दीवारों के कान
दीवारों के कान

दीवारों के कान

( Geet : deewaron ke kaan )

 

कितने घर उजाड़े होंगे, सारे भेद ले जान।
सारी दुनिया ढोल पीटते, दीवारों के कान।

 

मन की बातें मन में रखना, सोच समझ ले इंसान।
राम को वन में भिजवा दें, दीवारों के कान।

 

कहीं मंथरा आ ना जाए, घर में कृपा निधान।
भाग्य बदल दे घरवालों के, दीवारों के कान।

 

संभल संभल चलना प्यारे, होठों पर धर मुस्कान।
उर के भाव कहां ले जाए, दीवारों के कान।

 

उथल-पुथल मचा सकते हैं, करते सबको हैरान।
सिंहासन तक हिला देते, दीवारों के कान।

 

दरबारों में हाजिर रहते, बन रहस्य अनजान।
परिवर्तन का कारण बनते, दीवारों के कान।

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कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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