होगा निश्चय सबेरा
होगा निश्चय सबेरा
अधिकार है सबको जीने का
राजा रंक और फकीर,
तृप्त होता कोई ख़्वाब देखकर
हँसकर काटता कोई गम के जंजीर।
लाख उलझनें हो जीवन में
ख़्वाब सभी सजाते हैं,
किसी के ख़्वाब पूरे होते
किसी के अधूरे रह जाते हैं।
नीद में देखता ख़्वाब कोई
कोई सो नही पाता है,
न सोने वाला ही जीवन में
ख़्वाब पूर्ण कर पाता है।
जब ख़्वाब न पूरे होते
कुछ लोग उड़ाते हैं खिल्ली,
पूर्ण होते ही जीवन के सपने
बनते यही लोग हमदर्द दिल्ली।
ख़्वाब देखें हँसते रहें
डाले रहें कर्मपथ पर डेरा,
कुछ देर भले ही हो जाये
छटेगा अंधकार होगा निश्चय सबेरा।
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लेखक: त्रिवेणी कुशवाहा “त्रिवेणी”
खड्डा – कुशीनगर
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