स्त्री हृदय

( Strī hridaya ) 

 

प्यार भरा हृदय
आंखों में हया है,
फिर भी यह जीवन
तो सवालों से घिरा है
माना अहसास है एक
अपने अगल होने का हमें
स्त्री का खुलकर जीना भी
क्या यहाँ कोई सजा है ???????
बिखरे रंगों से पुस्पों की भांति ही
सजाते हैं हम रंगोली प्रतिपल नई
अपने ही विचारो की दुनिया में
खोजते कुछ नया ही हर पल !
नादान हैं थोड़ा हा थोड़ा वचपना हैं
ये दिल किसी का मोहताज कहा हैं
अपनी ही पाठशाला खोल बैठा है
बूझो तो जाने की ये कोन वला है
कदर दान हुआ ये दिलवालो का यहां
झूठ से अपना न कोई सिलसिला है ।
इस छोटी सी जिंदगी का
एक बड़ा सा ही मायना हैं
ये दिल झूठा तो नही………
हां खुदार बड़ा हैं।।

 

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

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